Rubia Sayeed kidnapping case शुरू से ही सवालों के घेरे में रहा है, अपहरण मुफ्ती सईद का ही सियासी ड्रामा था!
कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा के इतिहास में रुबिया सईद का अपहरण सबसे अहम माना जाता है जिसने आतंकी हिंसा को एक नया रुख देने के साथ साथ कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के लिए जमीन पूरी तरह तैयार कर दिया।
जम्मू, नवीन नवाज : 33 वर्ष बाद डा. रुबिया सईद ने अपने अपहरणकर्ताओं को पहचान लिया। वह अपहरणकर्ता, जिन्हें कश्मीर में ही नहीं देश दुनिया में कश्मीर के हालात पर नजर रखने वाला हरेक व्यक्ति जानता है। यह वह घटना थी, जिसने कश्मीर में आतंकी हिंसा को गति देते हुए अलगाववादियों और आतंकियों के साथ-साथ आम लोगों में यह संकेत दिया कि भारत सरकार किसी आम आदमी की मौत से फर्क पड़े या न पड़े, लेकिन किसी बड़े नेता के स्वजन को हाथ लगाने पर पूरा तंत्र नतमस्तक हो सकता है।
कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा के इतिहास में रुबिया सईद का अपहरण सबसे अहम माना जाता है, जिसने आतंकी हिंसा को एक नया रुख देने के साथ साथ कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के लिए जमीन पूरी तरह तैयार कर दिया। निजाम-ए-मुस्तफा का नारा देने वाले जिहादी तत्वों द्वारा लगातार निशाना बनाए जा रहे कश्मीरी हिंदू जो अपने समुदाय के लोगों के कत्ल और अपनी बहू-बेटियों के साथ होने वाले अत्याचार के बावजूद घाटी छोड़ने को तैयार नहीं थे, वे भी इस घटना के बाद कश्मीर से बाेरिया-बिस्तर समेटने लगे थे।
रुबिया सईद अपहरण कांड हमेशा से जम्मू कश्मीर में बहस का विषय रहा है। सिर्फ मुख्यधारा की सियासत करने वाले या कश्मीरी हिंदू ही नहीं, बल्कि एक अलगाववादी नेता ने भी इसे अपहरण कांड को मुफ्ती मोहम्मद सईद, जेकेएलएफ और कुछ अन्य अलगाववादी नेताओं की मिलीभगत करार दिया है। पीपुल्स पोलीटिकल पार्टी के चेयरमैन इंजीनियर हिलाल वार जो हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख घटकों में शामिल रहे हैं, उन्होंने अपनी किताब- द ग्रेट डिस्कलोजर, सीक्रेट अनमास्क्ड में इस विषय पर खुलकर लिखा है। उन्होंने सीधे शब्दों में लिखा है कि यह सिर्फ एक ड्रामा था जो तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सिर्फ अब्दुल्ला परिवार को जम्मू कश्मीर की सियासत में कमजोर करने और अपने निजी राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए जेकेएलएफ चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक के साथ मिलकर रचा था।
दैनिक जागरण के साथ फोन पर बातचीत में इंजीनियर हिलाल वार ने कहा कि मुफ्ती मोहम्मद सईद चाहते थे कि फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिर जाए। इसके लिए उन्होंने जगमोहन को राज्यपाल बनवाने का पूरा प्रयास किया और उसमें वह कामयाब भी रहे। उन्होंने बताया कि 1989 में दिसंबर की शुरुआत में ही मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जेकेएलएफ के एक कमांडर और कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में शामिल मियां सरवर की तत्कालीन पुलिस महानिदेशक गुलाम जिलानी पंडित के मकान पर एक गुप्त बैठक कराई थी। इसमें डा. गुरु भी शामिल हुए थे। डा. गुरु जेकेएलएफ के विचारकों में गिना जाता था। डा. गुरु को बाद में हिजबुल मुजाहिदीन के आतकियों ने कत्ल कर दिया था। इसी बैठक में डा. रुबिया सईद के अपहरण की पूरी साजिश तैयार हुई थी।
बढ़ती हिंसा के बीच गृहमंत्री की बेटी पैदल बस स्टाप पर क्यों पहुंची : हिलाल वार ने कहा कि उस समय कश्मीर में आतंकी हिंसा लगातार बढ़ रही थी। अंदाजा लगाइए कि देश के गृहमंत्री की बेटी अकेली ही अस्पताल से बिना किसी सुरक्षा के निकलती है और पैदल ही बस स्टाप पर पहुंचती है। मिनी बस में बैठती है और फिर कुछ आगे जाकर उसे अगवा कर लिया जाता है। बस में जेकेएलएफ के आतंकी पहले से सवार होते हैं। नौगाम बाईपास के पास एक जगह डा. गुरु अपनी मारुति कार में मिनी बस का इंतजार करता है और जैसे ही मिनीबस वहां पहुंचती है तो रुबिया सईद अपने अपहरण का कथित प्रतिरोध करते हुए जेकेएलएफ के आतंकियों के साथ नीचे उतरती है और डा. गुरु की कार में सवार हो जाती है।
दो बार मुख्यमंत्री रहते मुफ्ती सईद ने कार्रवाई क्यों नहीं की : हिलाल वार ने कहा कि अपहरण के बाद रुबिया सईद को कहां रखा जाएगा, इसके बारे में तत्कालीन डीजीपी समेत मुफ्ती मोहम्मद सईद को पता था। उन्होंने कहा कि इसी अपहरण में सहयोग के लिए मोहम्मद यासीन मलिक को मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए एक प्रमख अलगाववादी नेता के रूप मे प्रचारित कराया। बरसों तक यह मामला अदालत में लटका रहा, क्यों? मुफ्ती साहब एक बार नहीं दो बार मुख्यमंत्री बने, उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
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