जम्मू-कश्मीर में नौकरियों में आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती, इस दिन होगी सुनवाई
जम्मू-कश्मीर आरक्षण नियमों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसमें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षित श्रेणियों के लिए सीटें आरक्षित करने पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आरक्षण नीति 2011 की जनगणना पर आधारित है और इसे लागू करते समय कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया।

जागरण संवाददाता, जम्मू। सरकारी नौकरियों व शिक्षा संस्थानों में आरक्षित श्रेणियों के लिए सीटें आरक्षित करने वाले जम्मू-कश्मीर आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। हाईकोर्ट ने प्रदेश प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए 23 जुलाई को केस की अगली सुनवाई निर्धारित की है।
हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप के बाद मौजूदा व भावी नियुक्तियां अब हाईकोर्ट के अंतिम फैसले पर निर्भर करेगी। जहूद अहमद व अन्य की ओर से दायर याचिका में जम्मू-कश्मीर के आरक्षण नियमों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि आरक्षण नीति वर्ष 2011 के जनगणना सर्वेक्षण पर आधारित है। इसे लागू करते समय कोई सर्वे नहीं किया गया।
याचिका में कहा कि अनुसूचित जाति का कोटा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया। ओबीसी का कोटा दो प्रतिशत से बढा़कर आठ प्रतिशत किया गया। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए दस प्रतिशत कोटा निर्धारित कर दिया गया।
ऐसे में सरकारी नौकरियों व शिक्षा संस्थानों में 70 प्रतिशत सीटें आरक्षित श्रेणी के लिए रखी जा चुकी है और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए मात्र 30 प्रतिशत संभावनाएं बची है।
याचियों ने तर्क दिया कि पिछले 14 वर्षों में जेकेएएस में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार केवल 41 प्रतिशत सीटें ही हासिल कर पाए। शेष सभी सीटें आरक्षिण श्रेणी के उम्मीदवारों के हिस्से में आई। यहीं हाल सिविल जजों की नियुक्ति में हुआ। याचिका में तर्क दिया कि सरकार की ओर से आरक्षिण श्रेणी के लोगों की जनसंख्या को जानने के लिए न तो सर्वे करवाया और न आयोग का गठन हुआ।
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