कश्मीर की अंतिम हिंदू रानी कोटा ने कभी पिता तो कभी भाई के साथ लड़ी जंग, सब गंवाने के बाद भी झुकी नहीं
कश्मीर में अपनी संस्कृति और हिंदू शासन कायम रखने के लिए कोटा रानी ने पिता के हत्यारे रिनचिन से विवाह रचा लिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह प्रस्ताव भी कोटा रानी ने दिया था।
श्रीनगर, नवीन नवाज। इतिहास के पन्नों से निकल कोटा रानी फिर चर्चा में हैं। कश्मीर की अंतिम हिंदू रानी को भले ही अलग संदर्भ में अब याद किया गया हो लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि उनका संघर्ष यूं ही नहीं भुलाया जा सकता। ऐसे समय में जब कश्मीर के शासक विदेशी आक्रांताओं से मुकाबले का साहस नहीं दिखा पा रहे थे, तब कभी पिता और कभी भाई के साथ कोटा रानी हर मोर्चे पर डटी रही। अंत में सब गंवाने के बाद भी वह कभी झुकी नहीं और अपनी जान देना बेहतर समझा। एक फिल्म निर्माता कंपनी के उनके शौर्य पर फिल्म बनाने घोषणा की है।
इतिहासकार बताते हैं कि सन 1301 में कश्मीर में सहदेव नामक शासक ने गद्दी संभाली। उनके दो विश्वासपात्र थे, लद्दाख से खदेड़े गए बौद्ध राजकुमार रिनचिन और स्वात घाटी से आया मुस्लिम प्रचारक शाहमीर। कोटा रानी सहदेव के सेनापति रामचंद्र की बेटी थीं। सन 1319 में 70 हजार सैनिकों के साथ तातार सेनापति डुलचु ने कश्मीर पर धावा बोला तो सहदेव को भाई उदयन देव के साथ किश्तवाड़ भागना पड़ा। डुलचू ने हजारों कश्मीरियों को गुलाम बनाकर तातार भेजा। पर कुछ माह बाद वह एक हिमस्खन में साथियों संग मारा गया। उसकी मौत के बाद किश्तवाड़ के राजाओं ने कश्मीर पर काबिज होना चाहा, लेकिन रामचंद्र ने उन्हें पराजित कर खुद को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया। पर रिनचिन ने शाहमीर के साथ मिलकर विद्रोह कर रामचंद्र का धोखे से कत्ल कर दिया।
यही वह समय है जब कोटा रानी के जीवन में नया मोड़ आया। कश्मीर में अपनी संस्कृति और हिंदू शासन कायम रखने के लिए उसने पिता के हत्यारे रिनचिन से विवाह रचा लिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह प्रस्ताव भी कोटा रानी ने दिया था।
विवाह के बाद धीरे-धीरे उसने रिनचिन को भारतीय धर्म और संस्कृति का इतना प्रेमी बना दिया कि वह हिंदू धर्म स्वीकार करने की योजना बनाने लगा। स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार उसकी इच्छा को तत्कालीन हिंदू समुदाय के एक वर्ग द्वारा नकारने से खफा होकर उसने इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम मलिक सदरुद्दीन रख लिया। वह कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक हुआ। कोटा रानी की कहानी उसके बाद भी कई मोड़ लेती रही पर है वह हर बार अपनी संस्कृति को आगे रखती रही। इसी बीच सहदेव के भाई उदयन देव ने फिर कश्मीर पर हमला बोला लेकिन हार ङोलनी पड़ी। हमले में रिनचिन गंभीर रुप से घायल हो गया और 1326 में उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद उसका छोटा बेटा हैदर गद्दी पर बैठा, लेकिन राजकाज की बागडोर कोटा रानी के हाथ में ही थी। इतिहासकार बताते हैं कि कश्मीर की सुरक्षा व अपनी संस्कृति को बनाए रखने की ललक के चलते कोटारानी ने उदयन देव के साथ विवाह कर उसे कश्मीर सौंप दिया।
तातार सेनाओं को खदेड़ दिया रानी ने
शासन की बागडोर फिर कोटा रानी के हाथ में ही रही। कोटा रानी के दो विश्वासपात्र थे-एक भिक्षण देव और दूसरा शाह मीर। भिक्षण देव रानी कोटा का भाई था। कश्मीर में हालात सामान्य होते इससे पूर्व तातार सेनाओं ने फिर हमला कर दिया। उदयन देव मुकाबला करने के बजाय कश्मीर और रानी को छोड़ तिब्बत भाग गया। कोटा रानी ने मोर्चा संभाला और उसने अपने सैनिकों को जमा कर उन्हें युद्ध के लिए तैयार किया। उसने अपने भाई भिक्षण भट्ट और शाहमीर की मदद से दुश्मन सेना को खदेड़ दिया। उसकी देशभक्ति की अपील ने स्थानीय नागरिकों पर असर किया और वह भी युद्ध का हिस्सा बन गए। खतरा टलने के बाद उदयन देव वापस आया और उसने शाहमीर और उसके बेटों को महत्वपूर्ण पद दिए। इस प्रकार कश्मीर पर हिंदू शासन बनाए रखने में रानी सफल रही।
शाह मीर ने रची साजिश
सन 1341 में उदयन देव की मृत्यु हो गई। उस समय कोटा रानी और उदयन देव का बेटा छोटा था, अत: रानी ने एक बार फिर से राजकाज संभाला। मगर शाहमीर सत्ता पर काबिज होने की साजिश रचने लगा था। उसने पहले तो भिक्षण भट्ट को अपनी साजिश में शामिल करने के लिए लालच दिया, जब वह नहीं माना तो उसकी धोखे से हत्या करा दी। फिर उसने कोटा रानी के खिलाफ विद्रोह कर उसे पराजित किया। इस प्रकार कश्मीर पर इस्लाम का शासन काबिज़ हुआ।
स्वयं दे दी अपनी जान
कहा जाता है कि शाहमीर ने कोटा रानी को विवाह का प्रस्ताव दिया था, और उसे निकाह के लिए मजबूर भी कर दिया। जब वह रात में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो उसके सामने पूरे सिंगार में आई रानी ने अपने पेट में खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली थी, और उसके आख़िरी शब्द थे, यह है मेरा जबाव!