Jammu Kashmir: अभिनेत्री कंगना रनोट करेंगी रानी दिद्दा के गुमनाम शौर्य को फिर जिंदा, जानें क्या है कश्मीर की रानी की शौर्यगाथा
अभिनेत्री कंगना रनोट की फिल्म द लीजेंड ऑफ दिद्दा से रानी दिद्दा का गुमनाम शौर्य फिर जिंदा हो रहा है। कंगना रानी दिद्दा की भूमिका में दिखेंगी। इंटरनेट मीडिया में रानी दिद्दा पर आनी फिल्म की खूब चर्चा है।महमूद गजनवी की 35 हजार सैनिकों को खदेड़ दिया था।
जम्मू, नवीन नवाज। झांसी की रानी जैसी वीरांगनाओं की एक और गुमनाम वीरगाथा है, कश्मीर की रानी दिद्दा की, जिसने मुट्ठी भर सैनिकों के दम पर कश्मीर पर धावा बोलने वाले महमूद गजनवी की 35 हजार सैनिकों को खदेड़ दिया था। अभिनेत्री कंगना रनोट की फिल्म 'द लीजेंड ऑफ दिद्दा' से रानी दिद्दा का गुमनाम शौर्य फिर जिंदा हो रहा है। कंगना रानी दिद्दा की भूमिका में दिखेंगी। इंटरनेट मीडिया में रानी दिद्दा पर आनी फिल्म की खूब चर्चा है।
इतिहासकार कल्हण ने राजतरंगिणी में भी दिद्दा रानी की दिलेरी का उल्लेख किया है। वह बहादुर होने के साथ कूटनीतिज्ञ व कुशल शासक के अलावा क्रूर मानी जाती थी। इतिहासकार दावा करते हैं कि वह लोहार वंश की राजकुमारी थी। रानी दिद्दा का जन्म अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हुआ था। 10वीं शताब्दी में वहां हिंदू शाही वंश का शासन था। उत्पल वंश के राजा क्षेमेंद्र गुप्त से उसकी शादी हुई थी। वह काबुल के हिंदू शासक भीम शाही की पौत्री थी।
45 मिनट में युद्ध जीता था: रानी दिद्दा ने अपने भाई उदयराज के पुत्र संग्राम राज को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। रानी दिद्दा की 1003 ईस्वी में मृत्यु होने पर संग्रामराज ने सत्ता संभाली थी। उसने कश्मीर में अराजकता को समाप्त करने और उसकी सीमाओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभायी। उसने दो बार महमूद गजनवी को हराया था। इतिहासकार दावा करते हैं कि रानी दिद्दा ने 500 सैनिकों के साथ महमूद गजनवी के 35 हजार सिपाहियों पर अचानक धावा बोल 45 मिनट में युद्ध जीता था। उससे मिली हार के कारण ही महमूद गजनवी ने भारत में दाखिल होने के लिए अपना रास्ता बदल लिया था।
दिद्दा ने अपंग होने के बावजूद युद्धकला सीखी : दिद्दा जन्म के समय दिव्यांग थी। उसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया था। उसे महल में काम करने वाली एक नौकरानी ने पाला। वह अत्यंत सुंदर भी थी। दिव्यांग होने के बावजूद युद्धकला सीखी। वह कुशल घुड़सवार थी। क्षेमेंद्र गुप्त शिकार के शौकीन थे। कहा जाता है कि शिकार पर निकले क्षेमेंद्र दिद्दा को देख उस पर मोहित हो गया। उसने दिद्दा की दिव्यांगता को नजर अंदाज कर उससे शादी की। क्षेमेंद्र का यह दूसरा विवाह था। विवाह के बाद दिद्दा ने राजकाज में रुचि लेना शुरू कर दी।
क्षेमेंद्र गुप्त ने उसके नाम पर सिक्का भी जारी कराया
दिद्दा इतनी प्रभावशाली हो गई थी कि क्षेमेंद्र गुप्त ने उसके नाम पर सिक्का भी जारी कराया। वह इतिहास का पहला ऐसा शासक है, जिसके नाम से पहले उसकी पत्नी का नाम आता है। क्षेमेंद्र को दिद्दाक्षेम भी कहा जाता है। दिद्दा और क्षेमेंद्र का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम अभिमन्यु था। क्षेमेंद्र कमजोर शासक था। दिद्दा अत्यंत मजबूत और कुशल प्रशाासक थी। उसने दरबार में अपनी पूरी पकड़ बना रखी थी।
दिद्दा ने बड़ी होशियारी से क्षेमेंद्र की पहली पत्नी को सती करा दिया
क्षेमेंद्र गुप्त की मृत्यु पर दिद्दा के विरोधियाें ने उसे रास्ते से हटाने के लिए उसे सती प्रथा का हवाला देते हुए पति संग सती होने का दबाव बनाया, लेकिन दिद्दा ने बड़ी होशियारी से इस चाल काे नाकाम बनाते हुए क्षेमेंद्र की पहली पत्नी को सती करा दिया। इसके बाद उसने अपने नाबालिग पुत्र अभिमन्यु को राजा बनवाया और खुद राजकाज चलाने लगी। वह अपने समय के किसी भी अन्य राजा की तरह ही चालाक और क्रूर थी। उसने अनेक प्रेम सम्बन्ध बनाए और उसका उपयोग अपने शासन को सुरक्षित रखने में किया। जब वे उसके लिए ख़तरा बने या अनुपयोगी हुए तो दिद्दा ने उन्हें रास्ते से हटा दिया।
दिद्दा ने अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु केे बाद उसके तीनों पुत्रों की भी हत्या कर दी
दिद्दा ने अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु के बाद उसके तीनों पुत्रों की भी हत्या कर दी। अभिमन्यु के दो पुत्र नंदिगुप्त औेर त्रिभुवन को उसने उनके सत्तासीन होने के एक-दो साल बाद ही मरवा दिया था। अभिमन्यु के तीसरे पुत्र भीम गुप्त ने पांच साल तक राज किया, लेकिन जब उसने अपनी दादी दिद्दा और उसके प्रेमी तुंग के खिलाफ कार्रवाई की तो दिद्दा ने मरवा दिया और खुद राजगद्दी संभाली। तुंग पुंछ का एक गडरिया था, जो बाद में दरबारी बना था।