Punjab News: जालंधर में अवैध कॉलोनियां कटीं, सीवरेज लाइन पर बोझ बढ़ा; बारिश में जलभराव होना तय
पंजाब के जालंधर में वर्षा के दौरान जलभराव का असर बस्तियों और स्लम आबादियों को ही झेलना पड़ता है। इस साल लोगों को को ज्यादा मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। शहर में अब तक जलभराव से बचाव के लिए उपाए नहीं किए गए हैं। हर साल एक जुलाई से कंट्रोल रुम बनाया जाता है। इसके लिए टीमों की तैनाती, मशीनरी उपलब्ध करवाने का काम 15 जून के आसपास कर लिया जाता है।

जालंधर में अवैध कॉलोनियां कटीं, सीवरेज लाइन पर बोझ बढ़ा (File Photo)
जागरण संवाददाता, जालंधर। मानसून सिर पर है और जमीन पर इंतजाम नाकाफी है। इस बार बादल खूब बरसने का अनुमान है। जब बादल बरसेंगे तो शहर के निचले इलाकों के लिए मुसीबत भी लेकर आएंगे। वर्षा के दौरान जलभराव का असर बस्तियों और स्लम आबादियों को ही झेलना पड़ता है।
इस साल लोगों को को ज्यादा मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। शहर में अब तक जलभराव से बचाव के लिए उपाए नहीं किए गए हैं। हर साल एक जुलाई से कंट्रोल रुम बनाया जाता है। इसके लिए टीमों की तैनाती, मशीनरी उपलब्ध करवाने का काम 15 जून के आसपास कर लिया जाता है। रोड गलियों की सफाई एक महीना पहले शुरू हो जाती है। सीवरेज सफाई के लिए मशीनरी लगाई जाती है।
इस बार इसमें देरी है। पिछले दो साल से नगर निगम हाउस नहीं था और अब करीब पांच महीने पहले जब हाउस बन गया है तो सीवरेज को इतनी जल्द ठीक करने की उम्मीद लगाना ठीक नहीं है। हालांकि शहर में जलभराव की स्थिति के लिए कई दशकों की लापरवाही जिम्मेवार है।
बरसाती सीवरेज का ना होना सबसे बड़ी मुश्किल
शहर में बरसाती सीवरेज ना होना सबसे बड़ी मुश्किल है। इसके लिए कभी प्रयास भी नहीं किया गया। शहर में करीब 2500 किलोमीटर सीवर लाइन है। इनमें से कई इलाकों में सीवर लाइन गार से भरी पड़ी है। इनकी सफाई नहीं करवाई गई। वर्षा के दौरान मुश्किल इसलिए बढ़ जाती है कि जो सीवर लाइन घरों के सीवरेज के पानी के लिए कम पड़ती हैं, उन पर वर्षा के पानी का असीमित बोझ पड़ जाता है और इसकी नतीजा होता है कि सिर्फ निचले इलाके ही नहीं खुले, पाश और बड़ी पाइप लाइन वाले इलाके भी जलभराव का शिकार हो जाते हैं।
एक्सपर्ट मानते हैं कि वर्षा के पानी की निकासी के लिए शहर में कम से कम 500 से 600 किलोमीटर बरसाती सीवर होना चाहिए। इस समय शहर में करीब 80 किलोमीटर बरसाती सीवर है। वह भी इस वजह से कि पिछले सालों 120 फुट रोड, प्रीत नगर से सोढल चौक तक बरसाती सीवर लाइन डाली गई है। सेंट्रल टाउन भी छोटी बरसाती सीवर लाइन डाली गई है। कुछ अन्य इलाकों में भी बरसाती पानी की निकासी का इंतजाम किया है लेकिन यह जरुरत के हिसाब से काफी कम है। बरसाती सीवर की मेन सीवर लाइन में कई जगह स्लज सीवरेज को भी लोगों ने जाेड़ दिया है।
गैर योजना ढंग से कॉलोनियों के विकास ने बढ़ाई मुसीबत
शहर की गैर योजनागतढ़ ढंग से हुई डेवलपमेंट की वजह से भी जलभराव की समस्या काफी बढ़ गई है। खास तौर पर शहर के बाहरी इलाकों में यह समस्या विकराल है क्योंकि यहां पर अवैध ढंग से विकसित हुई कॉलोनियों में सीवरेज लाइन काफी छोटी है। यह सीवर लाइन अपनी कॉलोनी के सीवरेज का भार ही नहीं झेल सकती तो जल भराव में तो हालत बिगड़नी ही हैं।
सरकार और निगम प्रशासन बिना मंजूरी विकसित हो रही कॉलोनियों को रोकने में हमेशा ही नाकाम रहा है। पिछले तीन दशकों में शहर की आबादी लगातार बढ़ी है। इंडस्ट्री, कमर्शियल कंप्लेक्स की गिनती काफभ् अधिक हो गई है।
इससे पानी की खपत कई गुना बढ़ गई लेकिन सीवरेज सिस्टम वही का वही है। कई इलाकों में तो यह पहले से भी ज्यादा खराब हो गया है। यही कारण है कि आज भी बिना वर्षा के कई इलाके सीवरेज के पानी में डूबे रहते हैं।
जलभराव वाले इलाकेगुड़ मंडी, अली मोहल्ला, बस्ती गुजां, बस्तियां और इसके पास की कालोनियां, दोमोरिया पुल, न्यू रेलवे रोड, शहीद भगत सिंह चौक से पंजपीर बाजार, बस्ती शेख, कोट मोहल्ला बस्ती शेख, लम्मा पिड, किशनपुरा, रेलवे रोड, ढन्न मोहल्ला, नीलामहल, गोपाल नगर, साईं दास स्कूल, पटेल चौक, बस्ती अड्डा से फुटबाल चौक, जेपी नगर में कई जगह, गोल मार्केट माडल टाउन, इनकम टैक्स कालोनी वाली रोड, अर्बन एस्टेट फेज वन रेलवे ट्रैक, किशनपुरा मोहल्ला, इकहरी पुली, लम्मा पिड चौक, प्रीत नगर रोड व कपूरथला चौक, सूर्या एन्कलेव, बस्ती मिट्ठू रोड, डा. आंबेडकर चौक से लाल रतन वाली रोड, माडल हाउस रोड।

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