Jammu: दांपत्य जीवन की गोपनीय नैतिकता का पर्दाफाश करता दिखा नाटक सखाराम बाइंडर
विजय तेंदुलकर के लिखे नाटक में दर्शाया गया कि सखाराम नित नई औरतें रखने का शौकीन है ।वह कुछ वर्षो तक औरत को अपने साथ रखता है फिर उसे निकाल देता है ।अंत में जिस औरत को लाता है। वह उस पर भारी पड़ती है ।

जम्मू, जागरण संवाददाता : जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की ओर से आयोजित वार्षिक नाट्योत्सव में मंगलवार को भारतीय कला संगम की ओर से जावेद गिल के निर्देशन में विजय तेंदुलकर के लिखे नाटक ‘सखा राम बाइंडर’ के शिव मेहता द्वारा डोगरी में अनुवादित नाटक का मंचन किया गया । इस नाटक के माध्यम से दांपत्य जीवन की गोपनीय नैतिकता का साहसपूर्ण ढंग से पर्दाफाश किया है ।
अभिनव थियेटर में मंचित इस नाटक में दर्शाया गया कि कैसे महिलाओं का शोषण होता है । जावेद गिल के निर्देशन में मंचित इस नाटक में कलाकारों ने अपनी भूमिका से प्रभावित किया ।सखाराम की भूमिका निभा रहे नीरज सेठी ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । चंपा की भूमिका में प्रतिक्षा शर्मा ने दर्शाया कि अगर महिला को अपना हक लेना है तो उसे आक्रामक बनना होगा ।लक्ष्मी की भूमिका संध्या ने निभाई ।जो एक मजबूर औरत दर्शायी गई है । हवलदार शिंदे की भूमिका जान मोहम्मद जानु ने निभाई ।
विजय तेंदुलकर के लिखे नाटक में दर्शाया गया कि सखाराम नित नई औरतें रखने का शौकीन है ।वह कुछ वर्षो तक औरत को अपने साथ रखता है फिर उसे निकाल देता है ।अंत में जिस औरत को लाता है। वह उस पर भारी पड़ती है । वह उसके साथ उसी की भाषा में बात करती है ।उसी की तरह नशा करती है ।
इस बीच जिस औरत के साथ उसने सात वर्ष गुजारे होते हैं, वह फिर लौट आती है। मिन्नतें कर वह फिर से सखाराम के साथ रहने लगती है । तभी उसे पता चलता है कि वह औरत किसी दूसरे के साथ रहती है ।सखाराम को यह बर्दाश्त नहीं होता है और वह उसका मर्डर कर देता है।
निर्देशक यह दर्शाने में सफल रहा कि मर्द स्वयं जो करता है, उसे ठीक करार देता है । लेकिन जब औरत उसी की तरह कुछ करने लगती है तो उसे सहन नहीं होता। नाटक का संगीत संदीप ठाकुर ने दिया । लाइट डिजाइनिंग ऋषभ प्रभाकर ने की ।मेकअप संध्या खरतोल ने किया ।सेट डिजाइन जावेद गिल, नीरज सेठी ने किया ।मंच प्रबंधन विजय शर्मा ने किया । प्रोडक्शन कंट्रोल की जिम्मेवारी भारतीय कला संगम के निदेशक रमेश चिब ने निभाई ।
निर्देशक का दृष्टिकोण: सुविधाएं देने की जिम्मेदारी तो निभाए अकादमी - पिछले 15 वर्षो से रंगमंच से जुडे जावेद गिल का कहना है कि रंगमंच किसी अकेले व्यक्ति का काम नहीं है। बड़ी मुश्किल से नाटक करने के लिए कलाकारों को तैयार किया जाता है । उसके बाद प्रोत्साहित करने के बजाए उन्हें जब हत्तोत्साहित किया जाता है तो निराशा होती है । आज उन्हें सुबह सेट लगाने में ही पांच घंटे के करीब लग गए । करीब तीन महीने तक लाइट बंद रही और वह कुछ नहीं कर सके ।अकादमी के पास इंवर्टर तक की सुविधा नहीं है । घंटों हाल में अंधेरा रहा। जिसके चलते अंतिम रिहर्सल तक नहीं हो पाई ।अगर अकादमी सही में रंगमंच का प्रोत्साहन चाहती है तो उन्हें कलाकारों को मूलभूत सुविधाएं तो समय पर उपलब्ध करवानी ही चाहिए ।मात्र औपचारिकताएं पूरी करने के लिए रंगमंच करने से किसी का भला होने वाला नहीं है ।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।