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    Jammu Kashmir: पद्मश्री सम्मानित गुलाम रसूल बोले- नजाकत व मजबूती वाली कश्मीरी पश्मीना शाल को पुनर्जीवित करने की जरूरत

    By Vikas AbrolEdited By:
    Updated: Wed, 03 Feb 2021 08:04 PM (IST)

    श्रीनगर के अमदाकदल इलाके के निवासी 66 वर्षीय गुलाम रसूल खान पद्मश्री सम्मान मिलने से काफी खुश हैं। उनका कहना है कि सम्मान के साथ कला को पहचान दिलाने के लिए मेरे कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ और बढ़ गया है।

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    श्रीनगर के अमदाकदल इलाके के निवासी 66 वर्षीय गुलाम रसूल खान पद्मश्री सम्मान मिलने से काफी खुश हैं।

    श्रीनगर, रजिया नूर : अपनी नजाकत व मजबूती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर कश्मीरी पश्मीना शाल, हस्तकला की पहचान बनाए रखना हम कारीगरों की जिम्मेदारी है। क्योंकि हस्तकला की बदौलत ही हम न केवल रोजी-रोटी कमाते हैं, बल्कि पूरी दुनिया में हमें अलग पहचान मिलती है। यह कहना है पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित गुलाम रसूल खान का। पश्मीना कलाकृति को विकसित करने में उत्कृष्ट योगदान के लिए हाल ही में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

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    जागरण से विशेष बातचीत में श्रीनगर के अमदाकदल इलाके के निवासी 66 वर्षीय गुलाम रसूल खान पद्मश्री सम्मान मिलने से काफी खुश हैं। उनका कहना है कि सम्मान के साथ कला को पहचान दिलाने के लिए मेरे कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ और बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों की उदासीनता व लोगों द्वारा ध्यान न दिए जाने से यह कलाएं दम तोडऩे की कगार पर हैं। ऐसे में हमारा फर्ज है कि इसमें फिर से जान फूंकने की कोशिश करें। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार इसे पुनर्जीवित करेगी। मोदी सरकार जिस तरह आत्मनिर्भर भारत और वोकल फार लोकल का एजेंडा चला रही है और जिस तरह कश्मीरी केसर को जीआइ टैग दिलाया, उससे उम्मीद है कि हमारी हस्तकला की खोई हुई पहचान भी लौटेगी।

    500 लोगों को सिखा चुके डिजाइनिंग

    खान ने बताया कि वे बचपन से पश्मीना शाल बनाने की कला से जुड़े हैं। पूर्वज भी इसी पेशे से जुड़े थे। मैं भी इस कला को दूसरों को सिखा कर जिंदा रखने की कोशिश में हूं। मैंने अभी तक 500 लोगों को इस कला से परिचित कराया। मुझे खुशी है कि अब वह इस काम में माहिर हो गए हैं और अपनी रोजी कमा रहे हैं। खान ने सरकार से आग्रह किया कि यहां एक आर्ट इम्पोरियम बनाया जाए ताकि विभिन्न हस्तकला से जुड़े हमारे कारीगरों को एक मंच उपलब्ध हो, जहां उन्हें प्रतिभा दर्शाने का अवसर मिले। दिल्ली में भी हमारे कारीगरों के लिए ऐसा मंच होना चाहिए जहां समय-समय पर हस्तकला की प्रदर्शनी लगा सकें। उन्होंने कहा कि दिल्ली हम कारीगरों के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय बाजार से कम नहीं है।

    पहले भी मिले कई पुरस्कार

    गुलाम रसूल खान आल जम्मू कश्मीर शिल्प गुरु नेशनल अवार्ड व आॢटसंज सोसाइटी के चेयरमैन भी हैं। बेहतरीन कारीगरी के लिए उन्हें वर्ष 2003 में राजकीय व राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। यह दोनों पुरस्कार उनके द्वारा तैयार किए गए एक 64 पीस वाले पश्मीना शाल के लिए दिए गए थे, जो उन्होंने अपने कारीगरों के साथ पांच वर्ष में डिजाइन किया था। खान का कहना है कि दरअसल मेरा यह शाल हस्तकला विभाग ने कुछ विदेशी डिजाइनरों को दिखाए थे। उन्हें यह शाल बहुत पसंद आया। वह इतने प्रभावित हुए कि पुरस्कृत करवाने की सिफारिश की। खान ने कहा इसके बाद मैंने 360 पीस वाला एक और पश्मीना शाल डिजाइन किया, जिसमें 6 वर्ष लगे। उसके लिए भी पुरस्कार मिले। खान का मानना है कि किसी भी कला को जिंदा रखने के लिए काम में सफाई होनी चाहिए तभी उसमें नजाकत आती है। मेरी कोशिश रहती है कि इस तरह से शाल डिजाइन करूं ताकि वह मजबूत व टिकाऊ भी रहे और इसकी नजाकत भी बनी रहे। बाकी कारीगरों की तुलना में इसमें मुझे वक्त लगता है, लेकिन नतीजतन मेरा डिजाइन किया गया शाल हमेशा अपनी अलग पहचान रखता है।

    घाटी में पश्मीना शाल डिजाइनिंग से जुड़े हैं कई कारीगर

    घाटी में कारीगरों की एक बड़ी संख्या पश्मीना शाल को डिजाइन करने की हस्तकला से जुड़ी है। इनमें से ज्यादातर कारीगर श्रीनगर के हवल, अलमगरी बाजार, लाल बाजार, अमदाकदल, जेनाकदल, साजगरीपोरा व बहुरीकदल के साथ बडग़ाम जिले के मागाम व कनिहामा में रहते हैं।