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    Padma Sachdev Passes Away: डोगरी साहित्य की पहचान, जम्मू दी बोबो पद्मश्री पद्मा सचदेव हमारे बीच नहीं रही

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 04 Aug 2021 11:27 AM (IST)

    कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों में डोगरी का प्रतिनिधित्व किया।उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं। किन्तु ‘मेरी कविता मेरे गीत’ के लिए उन्हें 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया।उन्हें वर्ष 2001 में पद्मश्री और वर्ष 2007-08 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया।

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    जम्मू का शायद ही कोई साहित्यिक या सांस्कृतिक संगठन ऐसा होगा जिसने उन्हें सम्मानित न किया हो।

    जम्मू, जागरण संवाददाता : डोगरी साहित्य की पहचान, डोगरी का गौरव, आधुनिक डोगरी कविता को शिखर पर ले जाने वाली जम्मू की ‘बोबो’ बड़ी बहन आज हमारे बीच नहीं रही। बुधवार सुबह 4.30 बजे मुंबई स्थित अपने निवास पर हृदय गति रूकने से निधन हो गया।इसकी जानकारी उनके छोटे भाई साहित्यकार ज्ञानेश्वर शर्मा ने दैनिक जागरण को दी। वह अपने पीछे अपने पति शास्त्रीय गायक सुरेंद्र पाल सिंह सचदेव और बेटे तेजपाल सिंह सचदेव और बेटी मीता सचदेव को छोड़ गई हैं।

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    पद्मा सचदेव अपनी मातृभाषा से जनून की हद तक प्यार करती थी। डोगरी भाषा, डोगरी साहित्य डोगरी संस्कृति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने में इनका योगदान सराहनीय रहा है। डोगरी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाने के लिए हुए संघर्ष में हमेशा कंधे से कंधा मिला कर चलती रही।

    उन्होंने अपना साहित्यिक सफर बेशक कविता से किया पर कहानी, उपन्यास आत्मकथा, अनुवाद से लेकर लगभग हर विधा में खूब लिखा।उनका एक मासत्र उद्देश्य डोगरी को शिखर पर ले जाना था। जम्मू वालों को उनसे हमेशा बड़ी बहन का प्रेम मिला। इसी लिए अधिकतर लोग उन्हें जहां भी मिलते बोबो बड़ी बहन कर संवोधित करते और वह भी दिल से हर डोगरे से बड़ी बहन की तरह ही मिलती थी।उन्हें डोगरी पहली आधुनिक कवयित्री भी कहा जाता है।डोगरी के साथ-साथ उन्होंने हिन्दी में भी लिखती थी।

    उनका जन्म 17 अप्रैल 1940 जम्मू के गांव पुरमंडल में हुआ।उनके पिता पंडित जयदेव शर्मा हिन्दी, संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। जम्मू में स्कूल के समय से ही कविता के क्षेत्र में विशेष पहचान बना ली थी।उसके बाद कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों में डोगरी का प्रतिनिधित्व किया।उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं। किन्तु ‘मेरी कविता मेरे गीत’ के लिए उन्हें 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया।उन्हें वर्ष 2001 में पद्मश्री और वर्ष 2007-08 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया।

    उनकी पहली शादी डोगरी के गजल सम्राट वेद पाल दीप से हुई लेकिन किन्हीं कारणों से वह ज्यादा देर साथ नहीं रह सके।वर्ष 1966 में सिंह बंधू नाम से प्रचलित सांगीतिक जोड़ी के गायक सुरिंद्र सिंह से हुई।पद्मा रेडियो कश्मीर जम्मू में स्टाफ आर्टिस्ट रही बाद में दिल्ली रेडियो में डोगरी समाचार वाचिका की जिम्मेदारी भी निभाई।जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी उन्हें सम्मानित किया।जम्मू का शायद ही कोई साहित्यिक या सांस्कृतिक संगठन ऐसा होगा जिसने उन्हें सम्मानित न किया हो।

    उनके निधन का समाचार सुनते ही जम्मू के साहित्य, कला जगत में शोक की लहर है। उनके लिखे डोगरी गीत लता मंगेश्कर ने भी गाए हैं।उन्हीं के कहने पर लता मंगेश्कर ने डोगरी के कुछ गीत गाए जो आज डोगरी की संस्कृति की पहचान हैं।