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    अब बर्फबारी-हिमस्खलन भी नहीं रोक पाएंगे भारतीय सेना के कदम, श्योक टनल बनने से पूर्वी लद्दाख में बढ़ी आर्मी की ताकत

    Updated: Mon, 08 Dec 2025 08:22 AM (IST)

    पूर्वी लद्दाख में श्योक सुरंग बनने से भारतीय सेना की ताकत और बढ़ गई है। अब सेना अपने टैंकों के साथ दौलत बाग ओल्डी और नियंत्रण रेखा तक आसानी से पहुंच स ...और पढ़ें

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    अब भारी बर्फबारी, हिमस्खलन भी नहीं रोक पाएगी जवानों के कदम (फाइल फोटो)

    विवेक सिंह, जम्मू। पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना के बढ़ते कदमों को अब भारी हिमपात और हिमस्खलन भी नहीं रोक पाएगा। महत्वाकांक्षी श्योक सुरंग ने सेना की ताकत को और बढ़ा दिया है।

    अब भारतीय सेना अपने टैंकों के साथ दुश्मन से निपटने के लिए श्योक सुरंग से होकर दौलत बाग ओल्डी व नियंत्रण रेखा के अन्य हिस्सों तक आसानी से पहुंच पाएगी।

    दौलत बेग ओल्डी में हमारा महत्वपूर्ण सैन्य शिविर है और यहां हमारी मजबूती के कारण चीन लद्दाख में इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का साहन नहीं जुटा पाता है।

    अब 12,523 फुट की ऊंचाई पर अति महत्वपूर्ण 920 मीटर लंबी श्योक सुरंग के निर्माण से हमारी तैयारी और मजबूत होगी। इस हिस्से में पहाड़ों के ऊंचे दर्रे अक्सर सर्दियों में भारी बर्फबारी व हिमस्खलन से बंद हो जाते हैं।

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    इससे भारतीय सैनिकों और उनके साजो सामान की सप्लाई चेन प्रभावित होती थी। अब यह बाधा दूर हो गई है। अब पूरा साल पूर्वी लद्दाख में सेना की कान्वाय की आवाजाही हो सकेगी।

    लेह से दुरबुक व श्योक गांवों होते हुए सीधे दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक जाने वाली सड़क वास्तविक नियंत्रण रेखा के बेहद करीब है। पूर्वी लद्दाख का गलवन श्योक के एक ओर करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में अब अगर चीन ने कोई हिमाकत की तो त्वरित कार्रवाई से सेना उस पर कहर बरपा सकेगी।

    दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत की रणनीतिक सड़क है। इस सड़क पर 920 मीटर लंबी श्योक टनल दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है। इसे कट एंड कवर तकनीक से बनाया गया है।

    इस तकनीक में सबवे की तरह खुदाई कर इस पर छत डाल दी जाती है। बाद में छत पर मिट्टी आदि डाल दी जाती है। सेना के वाहन बर्फबारी, हिमस्खलन वाले इलाके में बिना रुके इस टनल के जरिए चंद मिनटों में सीमा की ओर बढ़ जाएंगे।

    श्योक टनल 21 मीटर चौड़ी और करीब 12 मीटर ऊंची है। इसमें से वाहन 40 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर जा सकेंगे। यह टनल देश की उत्तरी सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए जीवनरेखा साबित होगी।