जम्मू में इस जगह पर है उत्तर भारत का एकमात्र 'राधा-रुक्मिणी कृष्ण' मंदिर, सरकारी अनदेखी के कारण नहीं हो सका प्रख्यात
जम्मू रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर करीब 200 साल पहले बनाया गया था। डाेगरा विरासत मुबारक मंडी के पीछे मुहल्ले में तवी के किनारे ...और पढ़ें

जम्मू, अंचल सिंह। दुनियाभर में भगवान कृष्ण के कई मंदिर हैं। जहां उनकी पूजा देवी राधा या बड़े भाई बलराम के साथ होती हैं, लेकिन पत्नी के साथ भगवान श्रीकृष्ण के बहुत ही कम मंदिर हैं। उत्तर भारत का एकमात्र ‘राधा-रुक्मिणी कृष्ण मंदिर’ मंदिरों के शहर जम्मू के सर्कुलर रोड पर पक्की ढक्की में मौजूद है। महाराजा गुलाब सिंह के समय इस मंदिर को बनवाया गया था।
जम्मू के मुख्य बस स्टैंड से करीब चार किलोमीटर और जम्मू रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर करीब 200 साल पहले बनाया गया था। डाेगरा विरासत मुबारक मंडी के पीछे मुहल्ले में तवी के किनारे से थोड़ी दूरी पर बना यह मंदिर सरकारी अनदेखी के चलते इतना प्रख्यात नहीं हुआ। अब समय के साथ इसकी प्रसिद्धि बढ़ रही है। मुबारक मंडी महलाें में रहने वाली रानियां व उनकी दासियां जब सूर्यपुत्री तवी नदी में नहाने आती तो लौटते समय इस मंदिर में पूजा-अर्चना करती थीं। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की काले रंग की और देवी रुक्मिणी व राधा की सुंदर मूर्तियां हैं। यह मंदिर भक्तों के लिए गहरी आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

यह मंदिर जम्मू एयरपोर्ट से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर है। इतना ही नहीं जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर के नजदीक पीरखोह में जामवंत गुफा जम्मू में काफी प्रसिद्ध है। पीरखोह के नजदीक अब केबल कार भी चलना शुरू हुई है। यहां लोग गंडोला राइड लेने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। श्री माता वैष्णो देवी को आने वाले श्रद्धालु भी अब यहां पहुंचने लगे हैं। ऐसा ही एकमात्र मंदिर वृंद्धावन में है।
मंदिर के नजदीक है तवी नदी को जाने वाला रास्ता
मंदिर के अंदर से ही महलों को एक गुप्त रास्ता जाता था। अब भी यहां सीढ़ियां मौजूद हैं लेकिन मंदिर के आसपास कमरे बन जाने के कारण अब यह रास्ता बंद है। मंदिर के इन कमरों को अब किराये पर दे दिया गया है। मंदिर के अंदर अब छोटे मंदिर भी स्थापित किए गए हैं। मंदिर के पीछे के क्षेत्र में आज भी जंगल-झाड़ियां उगी पड़ी हैं जो महलों का पीछे का हिस्सा है। इतना ही नहीं थोड़ी दूरी पर पीरखोह मार्ग पर बलराम मंदिर भी बना हुआ है। मंदिर में शालीग्राम रखे हैं जिनकी पूजा करने के बाद चरणामृत बनाया जाता है। मंदिर परिसर में छोटे मंदिर बनाकर शिवलिंग व शनिदेव की मूर्ति भी स्थापित की गई है। मंदिर के नजदीक से तवी नदी को रास्ता जाता है जहां सीढ़ियां बनी हुई हैं।

कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाते हैं
पौष माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। लोग इस दिन रुक्मिणी जी का व्रत रखती हैं। इस दिन देवी रुक्मिणी और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। आस्था है कि रुक्मिणी जी सभी दुखों को हरने के साथ सुख-समृद्धि और खुशहाली बख्शती हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लगता है भंडारा
सेवक सुभाष शर्मा का कहना है कि उत्तर भारत का यह पहला ऐसा मंदिर है जिसमें भगवान श्री कृष्ण रुक्मिणी के साथ हैं। यह 200 साल पुराना प्राचीन मंदिर है। मुबारक मंडी महल से तवी की ओर सीढ़ियां बनी हुई थी जहां से रानी व अन्य तवी में स्नान करने के बाद यहां पूजा करती थी। तवी से यह मंदिर बना हुआ है। हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इस मंदिर को सजाया जाता है और भंडारा लगाया जाता है।

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