लद्दाख में मशरूम की नई प्रजातियों की खोज, आपको भी चौंका देंगे इनके फायदे
जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो. यशपाल शर्मा ने बताया कि कारगिल के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जंगली खाद्य मशरूम की कई नई प्रजातियों की खोज की गई है। इन मशरूम में तनाव-रोधी और मधुमेह-रोधी गुण पाए जाते हैं। ये खोजें ठंडे मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जीवों की अनुकूलन क्षमता को दर्शाती हैं, और मशरूम की पाक एवं औषधीय संभावनाओं के नए रास्ते खोलती हैं।

राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू विश्वविद्यालय के फैकल्टी आफ साइंस के डीन प्रो. यशपाल शर्मा ने जंगली खाद्य मशरूम की विविधता पर प्रकाश डाला। यह मशरूम कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी न केवल जीवित रहती है बल्कि अत्याधिक पनपती हैं। यह कारगिल के उच्च हिमालयी ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाई जाती है।
इनके रासायनिक विश्लेषण से पता चला कि इनमें तनाव-रोधी मधुमेह और फैटी एसिड की मात्रा अधिक होती है, जो अत्यधिक ठंडे वातावरण में कोशिकाओं को संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं। नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग में ऑल इंडिया बोटेनिकल कांफ्रेंस ऑफ इंडियन बोटेनिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रो. शर्मा ने अपने व्याख्यान में ठंडे मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के जंगली खाद्य कवक विविधता, रासायनिक प्रोफाइलिंग और करगिल, विषय पर अपने अनुसंधान निष्कर्ष साझा किए। अनुसंधान के दौरान कई नई प्रजातियों की खोज की गई है।
इनमें दो नई प्रजातियां शामिल हैं, जो केवल लद्दाख क्षेत्र में पाई जाती हैं और स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक दृष्टि से अहम हैं। इन नई प्रजातियों की पहचान रुपात्मक, वर्गिकी और आणविक विश्लेषण के माध्यम से की गई है। प्रो. शर्मा ने कहा कि ये खोजें न केवल ठंडे मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में जीवों की अनुकूलन क्षमता को उजागर करती हैं, बल्कि इन मशरूम के पाक एवं औषधीय संभावनाओं के नए रास्ते खोलती हैं।
संगोष्ठी में देश-विदेश से 250 से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने भाग लिया। इसमें जापान, जर्मनी, इजराइल, पोलैंड और ऑस्ट्रेलिया से आए विद्वानों ने शोध प्रस्तुत किए। वहीं, प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. सुधीर सोपोरी, प्रो. प्रमोद टंडन, प्रो. वीना टंडन व डा. एकलव्य शर्मा जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने उपस्थिति दर्ज करवाई। सम्मेलन की अध्यक्षता नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक प्रो. एसके बारिक ने की, जबकि पूर्ण सत्रों का संचालन प्रो. सेशु लवानिया ने किया।

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