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    जम्मू : माउंटेन वारफेयर के माहिर जनरल जोरावर हैं भारतीय सेना के प्रेरणास्त्राेत, अगले साल से बड़े पैमाने पर होंगे जयंती कार्यक्रम

    वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था। वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख बाल्टिस्तान तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था।

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Tue, 19 Apr 2022 03:05 PM (IST)
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    जम्मू में बिग्रेडियर राजेन्द्र सिंह के बलिदान दिवस पर भी बड़े पैमाने पर कार्यक्रम करने में सहयोग देती है।

    जम्मू, राज्य ब्यूरो : उन्नीसवीं शताब्दी में बर्फ से जमे तिब्बत को जीतने माउंटेन वारफेयर के कुशल रणनीतिकार जनरल जोरावर सिंह भारतीय सेना के प्रेरणास्त्रोत हैं। उन्हें उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने वाली भारतीय सेना की उत्तरी कमान अगले साल से जनरल जोरावर सिंह की जयंती पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन करेगी।

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    इस बार सेना की उत्तरी कमान ने हिमाचल प्रदेश के डलहौजी व पश्चिमी कमान की टाइगर डिवीजन ने जम्मू शहर में कार्यक्रमों का आयोजन किया। अगले वर्ष उत्तरी कमान प्रदेश में जम्मू कश्मीर एक्ससर्विसिस लीग को बड़े पैमाने पर कार्यक्रम करने में सहयोग देगी। सेना लीग को जम्मू में बिग्रेडियर राजेन्द्र सिंह के बलिदान दिवस पर भी बड़े पैमाने पर कार्यक्रम करने में सहयोग देती है।

    जम्मू कश्मीर एक्ससर्विसिस लीग के प्रधान सेवानिवृत मेजर जनरल गोवर्धन सिंह जम्वाल का कहना है कि इस समय पूर्वी लद्दाख व सियाचिन के बर्फीले इलाके में भारतीय सेना वही रणनीति अपना रही है तो कभी जनरल जोरावर सिंह ने अपनाई थी। ऐसे में जनरल जोरावर सिंह को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने वाले उत्तरी कमान के जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने विश्वास दिलाया कि अगले साल से इस दिन बड़े पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन होगा। उन्होंने बताया कि जनरल द्विवेदी जम्मू कश्मीर राइफल्स के कर्नल आफ द रेजीमेंट हैं। ऐसे में वह इस रेजीमेंट के जनरल जोरावर सिंह, जनरल बाज सिंह व ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जैसे शूरवीर के योगदान के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं।

    मेजर जनरल गोवर्धन सिंह जम्वाल कहते हैं कि जनरल जोरावर सिंह असाधारण वीरता की मिसाल हैं। उन्हें देश की सीमाओं को तिब्बत तक पहुंचाने के साथ चीन की सेना के हौसला भी परास्त किए थे। ऐसे में उनके योगदान के बारे में देश के युवाओं को बताना बहुत जरूरी है। ऐसे वीरों से ही प्रेरणा लेकर जम्मू कश्मीर व लद्दाख के दुर्गम हालात में भारतीय सेना चीन, पाकिस्तान से सटे दुर्गम इलाकों में सीना ताने खड़ी है।

    उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 13 अप्रैल 1786 को जन्मे जनरल जोरावर सिंह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया। सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने। रियासी में जनरल का किला उनकी बहादुरी की याद दिलाता है। वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था। वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान, तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था।

    इस वर्ष उनकी जयंती पर जम्मू के जनरल जोरावर चौक में उन्हें श्रद्धांजलि देने के साथ टाइगर डिवीजन में हुए कार्यक्रम में जीओसी मेजर जनरल नीरज गोसाइं के साथ कश्मीर एक्ससर्विस लीग के प्रधान, सेवानिवृत मेजर जनरल गोवर्धन सिंह जम्वाल हिस्सा लिया था। वहीं उत्तरी कमान के आर्मी कमांडर ने डलहौजी में 1 जम्मू कश्मीर राइफल्स द्वारा जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया।