नमो देव्यै: मिलिए रियासी की महक शर्मा से, गांव को दुग्ध उत्पादन में पहचान दिलाना है उनका लक्ष्य
महक कहती है कि उसने काम को चुनौती की तरह उस समय लिया जब कोरोना काल में उन्होंने अपने पति को काम के लिए परेशान देखा। उसी समय निर्णय लिया कि हम अपने काम को ही बढ़ाएंगे। हम लोगों ने सरकार से एक योजना के तहत कुआं निकलवाया है।

जम्मू, जागरण संवाददाता। दिल में कुछ कर दिखाने की चाहत हो तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता। ऐसा साबित कर दिखाया है गांव शपानु तहसील जिला, रियासी की महक शर्मा ने। महक की शादी हुए अभी कुछ वर्ष ही हुए थे कि उन्हें अहसास हुआ कि घर में खाली बैठने के बजाए कुछ काम किया जाए तो ठीक रहेगा। पति की प्राइवेट नौकरी थी। सिलाई कढ़ाई का काम आता था। सोचा सिलाई का ही काम किया जाए। इस बीच घर वालों ने निर्णय लिया कि घर में रखी गाएं, भैसें बेच दी जाए। इस पर महक ने हिम्मत जुटाते हुए कहा कि अगर घर परिवार का थोड़ा सहयोग मिले तो वह चाहती है कि डेयरी का काम बडे़ स्तर पर करे।
घर के लोगों ने कहा कि जानवर पालना कोई आसान काम नहीं होता। बेहतर है कि गाएं बेचने दी जाएं। लेकिन महक ने कहा कि पूरा कार्य उसके हवाले कर दिया जाए। दो चार महीने उन्हें काम करने दिया जाए। अगर लगा कि काम हो सकता है तो वह काम और बढ़ाना चाहेगी।महक कहती है कि जिस दिन से उन्होंने डेयरी फारमिंग का निर्णय लिया है। अंदर ही अंदर हिम्मत बहुत बड़ी है।जब काम शुरू किया था तो दो घर की गाएं थी लेकिन अब सात गाएं हैं। जैसे-जैसे काम बढ़ा हर दो महीने में एक नई लेनी शुरू की। घर का भी सहयोग मिलता रहा। पहले साल में ही डेयरी से इतनी आमदनी हुई कि अगले ही वर्ष मैंने शहर में जा कर प्राइवेट काम कर रहे अपने पति से भी कहा कि अगर वह भी उनके काम में सहयोग करें तो वह जितना कमा रहे हैं। उससे कहीं ज्यादा कमाई संभव है। महक के विश्वास को देखते हुए उनके पति ने भी शहर में जाकर काम करने के बजाए डेयरी में ही मदद करनी शुरू की और आज दोनों पति पत्नी पूरे गांव के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। महक कहती है कि उसने पशुपालन विभाग से इस वर्ष डेयरी के लिए लोन का आवेदन भी दिया था लेकिन उन्हें लोन नहीं मिल सका। इस पर भी वह निराश नहीं है और कहती है कि इस बार फिर से लोन के लिए आवेदन देगी।
अच्छी नसल की पांच सात और गायें लेना चाहती है
अगर लोन मिल गया तो अच्छी नसल की पांच सात और गायें लेना चाहती है। फिलहाल काम काफी अच्छा चल रहा है। उसके काम करने की लगन और उसे आत्म निर्भर होते देख गांव की दूसरी महिलाएं भी डेयरी के काम में रुझान दिखाने लगी हैं।महक कहती है कि उनके क्षेत्र में घास, पत्ते आदि घर के हो जाते हैं।वह गांव की दूसरी महिलाओं को भी डेयरी का काम शुरू करने के लिए प्रेरित कर रही है। उनका कहना है कि उसका लक्ष्य है कि उसके क्षेत्र से अगले वर्ष तक कम से कम एक गाड़ी दूध पैदा हो ताकि वह मर्जी से यहां चाहें दूध बेच सकें और मन चाह मोल भी पा सकें।
महक कहती है कि उसने काम को चुनौती की तरह उस समय लिया जब कोरोना काल में उन्होंने अपने पति को काम के लिए परेशान देखा। उसी समय निर्णय लिया कि हम अपने काम को ही बढ़ाएंगे। इनके घर रहने के बाद हम लोगों ने सरकार से एक योजना के तहत कुआं निकलवाया है। वहीं इसी वर्ष चार सौ के करीब फलदार पौधे लगाए हैं। अपना काम जब से शुरू किया है पूरा परिवार काफी उत्साहित है। अगर सरकार लोन मिल गया तो वह चाहेंगे कि डेयरी का काम बडे़ स्तर पर शुरू किया जा सके। लक्ष्य एक ही है जितने पैसे की नौकरी मेरे पति शहर में जा कर करते रहे हैं। उतने पैसे देकर घर में पांच सात लोगों को रोजगार देना है। डेयरी फारमिंग को लोग सिर्फ दूध के हिसाब से सोचते हैं। अगर देखा जाए तो तीन चार वर्ष में ही घर की बछियां भी गाय बन जाती है और आज अच्छी नसल की गाए पचास हजार से नीचे नहीं मिलती। हम तो किसान लोग हैं गोबर भी जैविक खेती के काम आ रहा है।

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