'मां की पुकार' झिंझोड़ रही युवाओं का मन, आतंकवाद की राह छोड़ अमन की दिशा में बढ़ रहे कदम
जिहादी तत्वों की चंगुल में फंसे कई युवक जहां मां की पुकार सुन वापस लौट आए हैं वहीं सही रास्ता उन्हें इस्लाम की रोशनी में जिहाद का वास्तविक अर्थ समझा ...और पढ़ें

जम्मू, जागरण संवाददाता : कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने और आतंकवाद पर प्रहार में मां की पुकार अहम भूमिका निभा रही है। जिहादी तत्वों की चंगुल में फंसे कई युवक जहां मां की पुकार सुन वापस लौट आए हैं, वहीं सही रास्ता उन्हें इस्लाम की रोशनी में जिहाद का वास्तविक अर्थ समझा , उन्हें समाज व राष्ट्र में योगदान के लिए प्रेरित कर रहा है।
स्थिति यह है कि आतंकी और जिहादी संगठन मां की पुकार से बचने के लिए अपने कैडर काे अंतिम समय तक छिपाए रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं,क्योंकि आतंकी संगठनों में नए लड़कों की भर्ती अब तक के सबसे न्यूनतम स्तर पर जा पहुंची है।
लड़कों को जिहादी बनने के लिए रचते षड्यंत्र
आतंकी हिंसा के दुष्चक्र को जारी रखने के लिए किसी भी आतंकी संगठन और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए स्थानीय आतंकी और स्थानीय स्तर पर ओवरग्राउंड वर्कर नेटवर्क बहुत जरूरी है। इसके लिए वह स्थानीय लड़कों को जिहादी बनने के लिए हर संभव तरीका और षड्यंत्र रचते हैं।
आतंकी संगठन वर्ष 2022 में 121 लड़कों को आतंकी बनाने में कामयाब रहे थे जबकि वर्ष 2021 में 142 और वर्ष 2020 में 190 युवक आतंकी बने थे। इसे रोकने के लिए सेना ने मां बुला रही है, मां की पुकार और सही रास्ता जैसे कार्यक्रम चला रखे हैं।इनका असर अब नजर आने लगा है और मौजूदा वर्ष में अब तक सिर्फ आठ स्थानीय लड़के ही आतंकी बने हैं। बीते तीन वर्ष के दौरान 145 लड़के आतंकवाद की राह से लौटे हैं।
'मां बुला रही है' - अभियान
इनमें से किसी ने आतंकियों के साथ एक सप्ताह तो किसी ने एक साल बिताया है। मां बुला रही है, अभियान को दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानो का संचालन कर रही सेना की विक्टर फोर्स ने वर्ष 2016 के अंत में शुरु किया था और इसकी सफलता से प्रेरित होकर वर्ष 2019 में इसे मां का नाम देते हुए पूरी वादी में चलाया गया।इस अभियान के तहत सुरक्षाबलों ने ऐसे सभी परिवारों से संपर्क साधा जिनका कोई स्वजन आतंकी बन गया था।
उक्त परिवार की महिला जो सामन्यत: मां ही होती है, वह आतंकी बने अपने पुत्र को वापस मुख्यधारा में लौटने की स्वैच्छिक अपील करती है। उसे यकीन दिलाया जाता है कि अगर उसके बेटे कोई गंभीर अपराध नहीं किया होगा तो उसे यथासंभव कम से कम सजा होगी और उसे पुनर्वासित किया जाएगा। अगर वह चंद दिन पहले ही आतंकी बना है और उसने किसी वारदात में हिस्सा नहीं लिया है तो उसे काउंसलिंग के बाद रिहा कर दिया जाएगा।
इस्लामिक विद्वान, उलेमा अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं
सही रास्ता कार्यक्रम में जिहादी तत्वों की चंगुल से छूटे युवकों जिनमें कई हायब्रिड आतंकी या फिर उनके मददगार हैं, के लिए 21 दिन की कार्यशाला चलाई जाती है। इस कार्यशाला में इस्लामिक विद्वान, उलेमा और कई पूर्व आतंकी भी अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं।
कार्यशाला में शामिल युवाओं को इस्लाम की रोशनी में जिहाद का वास्तविक अर्थ बताया जाता है।उन्हें कश्मीर में आजादी और जिहाद के नारे के पीछे के पाकिस्तान व जिहादी संगठनों के मकसद, आतंकियों के कारण कश्मीर में हुई बर्बादी के बारे में बताते हुए संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
आतंक की राह से लौट मुख्यधारा में शामिल हुए आतंकियों द्वारा उन्हें संबोधित किया जाता है, मारे गए कई आतंकियों के परिजनों की स्थिति से भी उन्हें अवगत कराया जाता है। उन्हें रोजगार कौशल भी सिखाने का प्रबंध किया जाता है। इस अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सही रास्ता कार्यक्रम के लिए उत्तरी कश्मीर के हैदरबेग, बारामूला में एक केंद्र बनाया गया है।
14 से 35 वर्ष आयु के हैं वापस लौटे लोग
वहीं कार्यक्रम में शामिल लड़कों के रहने व खाने पीने की पूरी सुविधा उपलब्ध कराई गई है और इससे लाभान्वित होने वाले 14 से 35 वर्ष आयु वर्ग के हैं। अब ऐसा ही एक और केंद्र दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में बनाए जाने का प्रस्ताव है। उन्होेने बताया कि सही रास्ता कार्यक्रम एक तरह से जिहादी मानसिकता के उन्मूलन पर केंद्रित है। उन्होंने बताया कि कई बार अभिभावक खुद अपने बच्चों को लेकर संबंधित पुलिस या सैन्य अधिकारियों से संपर्क करते हैं उन्हें इस कार्यक्रम में शामिल किया जाए।
सही रास्ता कार्यक्रम में शामिल हो चुके 180 युवाओं में से सिर्फ एक ही बाद में आतंकी बना है, लेकिन वह भी कुछ ही दिनों में मुख्यधारा में लौट आया।
मैंने मां की पुकार नहीं सुनी होती तो आज मैं कब्र में होता
मां की पुकार सुन मुख्यधारा में शामिल होने वाले असगर ने कहा कि मैं करीब 10 दिन तक मिलिटेंटों के साथ रहा। मेरी मां का वीडियो वायरल हआ था। मैं वापस लौटा और आज मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूं।
अगर मैंने मां की पुकार नहीं सुनी होती तो आज मैं कब्र में होता। मैं फौज का भी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे फिर से पढ़ाइ्र शुरु करने और कश्मीर से बाहर दाखिला लेने में मदद की। अनंतनाग का एक फुटबालर भी मां की पुकार सुन जिहाद के रास्ते से लौट आया था और आज कश्मीर से बाहर अपने करियर को संवार रहा है।
इंटरनेट मीडिया पर वायरल नहीं करते कैडर की फोटो
हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों में शुमार रहे सैफुल्ला ने कहा कि अगर आपको आतंकी हिंसा पर काबू पाना है तो सबसे पहले यहां भर्ती रोकनी होगी। जब कोई स्थानीय लड़का आतंकी नहीं बनेगा, आतंकियों का ओवरग्राउंड वर्कर नहीं बनेगा कोई विदेशी आतंकी यहां टिक नहीं पाएगा। मां की पुकार और सही रास्ता यही काम कर रहे हैं।
मैं भी इस कार्यक्रम के दो तीन सत्रों में शामिल हो चुका हूं। यह सही दिशा में उठाया गया सही कदम है। उन्होंने कहा कि आप देखेंगे कि बीते दो साल से आतंकी अपने नए कैडर के फोटो अब इंटरनेट मीडिया पर वायरल नहीं करते, क्योंकि वह मां की पुकार से डरते हैं।

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