Move to Jagran APP

Birthday of Maharaja Hari Singh : जम्मू कश्मीर में आधुनिक व समावेशी शिक्षा के शिल्पकार थे महाराजा हरि सिंह

महाराजा गुलाब सिंह ने 6-14 वर्ष के आयु वर्ग में निश्शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रविधान राज्य में लागू किया। जम्मू श्रीनगर सोपोर मीरपुर और ऊधमपुर में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के अधिनियम 1930 को तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए हर संभव प्रयास किए गए।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 08:54 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 08:54 PM (IST)
Birthday of Maharaja Hari Singh : जम्मू कश्मीर में आधुनिक व समावेशी शिक्षा के शिल्पकार थे महाराजा हरि सिंह
महाराजा हरि सिंह ने 6-14 वर्ष के आयु वर्ग में निश्शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रविधान लागू किया।

डा. राकेश भारती। महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू कश्मीर में डोगरा शासन की स्थापना की। उन्होंने अपने शासनकाल (1846-1857) का अधिकांश समय राज्य की सीमाओं के विस्तार एवं उन्हें मजबूत करने में समर्पित किया। सशक्त सीमाओं और शासकों की विकासशील सोच का परिणाम रहा कि 1947 तक जम्मू कश्मीर बहुसांस्कृतिक, बहु भाषाई और बहुधार्मिक संस्कृति का केंद्र बना रहा। महाराजा गुलाब सिंह के बाद आए सत्ता में आए महाराजा रणबीर सिंह (1857-1885) को उनकी धर्म में प्रबुद्ध रुचि व शिक्षा और कला के प्रति विशेष समर्पण के लिए जाना जाता है।

loksabha election banner

वह जम्मू को संस्कृत का केंद्र बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित थे। उनके बाद राज्य की बागड़ोर महाराजा प्रताप सिंह (1885-1925) के हाथों में आ गई। उनके शासनकाल में आधुनिक शिक्षा ने आकार लेना शुरू किया। उनके कार्यकाल में पंजाब विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के आधार पर राज्य में स्कूली शिक्षा के विकास के लिए कई विशेष प्रयास किए। उनके उपरांत शासन की बागड़ोर संभालने वाले महाराजा हरि सिंह (1925-1947) ने शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति लाने का प्रयास किया। 23 सितंबर 1895 को जम्मू में जन्मे हरि सिंह महाराजा प्रताप सिंह के भाई राजा अमर सिंह के पुत्र थे।

महाराजा हरि सिंह की चर्चा मुख्यत: 1947-48 में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय और पाकिस्तान की साजिशों के संदर्भ में होती है। उनको केवल इस संदर्भ में देखना शायद उनके व्यक्तिव से नाइंसाफी होगी। उनके कार्यकाल में किए गए विविध समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक सुधार आज भी उनकी दूरदर्शिता एवं नेतृत्व क्षमता को दर्शाते हैं। महाराजा हरि सिंह को सदैव सामाजिक सुधारों के प्रणेता और आधुनिक व समावेशी शिक्षा के शिल्पकार के रूप में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सुधारों को मूर्त रूप देने में वे कई समकालीन रियासतों से आगे थे। उनकी महत्वाकांक्षा जम्मू कश्मीर को शैक्षिक रूप से आधुनिक और उन्नत राज्य बनाने की थी। महाराजा ने राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्राथमिक से लेकर कालेज स्तर तक की संस्थाओं की प्रभावी श्रृंखला स्थापित की।

महाराजा ने 6-14 वर्ष के आयु वर्ग में निश्शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रविधान राज्य में लागू किया। जम्मू, श्रीनगर, सोपोर, मीरपुर और ऊधमपुर में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के अधिनियम 1930 को तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए हर संभव प्रयास किए गए। शिक्षा बजट 1907 में दो लाख से बढ़ाकर 1931 में साढ़े 19 लाख कर दिया था। परिणामस्वरूप राज्य में स्कूलों की संख्या 1925 में 706 से बढ़कर 1945 में 20,728 हो गई। बच्चों को आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनिवार्य रूप से स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया गया। कुछ लोगों ने इसे जबरी स्कूल (बलपूर्वक) का नाम दे दिया। प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश की आयु को सात वर्ष से कम कर छह वर्ष कर दी। पिछड़े वर्ग के छात्रों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बड़ी संख्या में छात्रवृत्तियां प्रदान करना महाराजा के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है।

महात्मा गांधी ने 23 अक्टूबर 1937 को नई तालीम की योजना बनाई जिसे राष्ट्रव्यापी व्यावहारिक रूप दिया जाना था। इसे वर्धा योजना, नई तालीम, बुनियादी तालीम तथा बेसिक शिक्षा के नाम से जाना जाता है। महाराजा राज्य में शिक्षा की बुनियादी योजना को अपनाने के इच्छुक थे। इसके लिए हर स्तर पर अनिवार्य प्रयास भी किए गए। जम्मू कश्मीर सरकार ने 1938 में राज्य में शिक्षा की बुनियादी योजना को व्यावहारिक रूप देने के लिए केजी सैय्यदैन की अध्यक्षता में एक शिक्षा पुनर्गठन समिति का गठन किया था। 1939 में केजी सैयदैन की रिपोर्ट में बुनियादी शिक्षा को मूर्त रूप देने के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की जैसे बुनियादी शिक्षा का सार्वभौमीकरण, सहायता अनुदान नियम, शिल्प और पुस्तकों को समान महत्व, स्कूल भवनों का निर्माण, शिक्षकों का उचित प्रशिक्षण, वयस्क शिक्षा के लिए सुविधाएं, लड़कियों की शिक्षा के प्रविधान रखे गए थे।

विद्याॢथयों के समग्र विकास के लिए शिल्प कार्य, बागवानी, लकड़ी का काम, कताई और बुनाई जैसे कार्यक्रम पाठ्यक्रम में निर्धारित कर रटकर सीखने के बजाय रचनात्मक तरीके से सीखने पर जोर दिया। स्थानीय संदर्भों और आवश्यकताओं के अनुसार सीखने पर भी विशेष बल दिया। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे में विभिन्न संकायों को एकीकृत कर, शिक्षा में कल्पना और व्यावहारिक गतिविधियों को महत्व देना था। देवनागरी या फारसी लिपि के विकल्प के साथ शिक्षा के माध्यम के रूप में उर्दू पर भी विशेष बल दिया। आधुनिक शिक्षा और व्यापक अनुभव ने महाराजा हरि सिंह को सामाजिक समानता के लिए प्रतिबद्ध किया जिसमें महिलाएं मुख्य रूप से शामिल थीं। राज्य में साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए उनके शासन काल में महिला शिक्षा को विशेष महत्व मिला। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा निश्शुल्क थी।

1930 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के अलावा, एक उपनिदेशक के अधीन महिला शिक्षा के लिए विशेष विभाग की स्थापना की गई। लड़कियों को घर से स्कूल ले जाने वाले कर्मचारियों सहित मुफ्त वाहन की व्यवस्था की गई। महाराजा ने लिंग-पक्षपातपूर्ण प्रथाओं को दूर करने और समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कई ठोस कदम उठाए। उनके उपायों ने कन्या भ्रूण हत्या और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने पर ध्यान केंद्गित किया। महिलाओं को आॢथक रूप से स्वतंत्र होने के लिए हस्तशिल्प में भी प्रशिक्षित किया।

महाराजा की पहली पत्नी के नाम पर धनदेवी मेमोरियल कन्या कोष में अनाथ लड़कियों को 200 रुपये तक की राशि और एक एकड़ राज्य भूमि प्रदान करना महिला उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी। शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे क्रांतिकारी परिवर्तनों में महिलाओं की सहभागिता को सुनिश्चित करने के यथासंभव प्रयास किए। तत्कालीन विरोध के बावजूद, महाराजा ने सह-शिक्षा (को-एजुकेशन) को भी राज्य में सफलतापूर्वक बढ़ावा दिया। राज्य में तालीम-ए- वालिदैन के नाम से वयस्क निरक्षरता के खिलाफ एक विशेष अभियान शुरू किया था। निरक्षरता के खिलाफ इस विशेष अभियान ने राज्य में लगभग 4000 वयस्क साक्षरता केंद्रों के संचालन के साथ बहुत बड़ी सफलता अर्जित की। इन कक्षाओं को पंचायत घरों व पटवारखानों में भी चलाया जाता था।

केजी सैयदैन रिपोर्ट में यह अनुशंसा की गई कि प्रौढ़ शिक्षा के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। मैट्रिक तक निश्शुल्क शिक्षा, पिछड़े वर्गों के लिए छात्रवृत्ति और अनुदान, कालेजों में मामूली फीस, और उर्दू को शिक्षा के माध्यम के रूप में जोड़ा जाना लोगों के एक व्यापक वर्ग में साक्षरता और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के उनके दृष्टिकोण को परिलक्षित करता है। अंतत: महाराजा हरि सिंह राज्य से निरक्षरता, सामाजिक कुरीतियों और असमानता को मिटाने के विचार के प्रति समर्पित आधुनिक व प्रगतिशील शासक थे। सामाजिक-आर्थिक समानता लाने के लिए महाराजा हरि सिंह ने जाति, धर्म, पंथ, लिंग, क्षेत्र आदि के भेदों को नकार कर राज्य में निरक्षरता के खिलाफ अभियान में ठोस प्रयास किए।

(लेखक जम्मू विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.