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    Machail Yatra 2022 : मचैल माता के जयकारों के साथ छड़ी यात्रा रवाना, जगह-जगह स्वागत

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    Updated: Fri, 19 Aug 2022 07:57 AM (IST)

    मचैल गांव किश्तवाड़ से 95 किलोमीटर और गुलाबगढ़ से तीस किलोमीटर दूर भूर्ज और भोट नाले के बीच स्थित अत्यंत खूबसूरत गांव है। दुर्गम पहाड़ियों के बीच प्रकृति की गोद में बसे इस गांव के मध्य भाग में प्रसिद्ध मचैल माता का मंदिर काष्ठ का बना हुआ है।

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    मचैल यात्रा 25 जुलाई से शुरू हुई थी।

    जागरण संवाददाता, जम्मू : मचैल माता की छड़ी यात्रा वीरवार को जम्मू से ढोल-नगाड़ों के बीच श्रद्धा के साथ रवाना हुई। मंडलायुक्त रमेश कुमार ने वीरवार सुबह रेडियो स्टेशन चौक पंजतीर्थी से झंडी दिखाकर छड़ी को रवाना किया। छड़ी जैन बाजार से रेडियो स्टेशन चौक पहुंची।

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    इस मौके पर विभिन्न बाजार एसोसिएशन के पदाधिकारियों एवं सहयोग करने वालों को माता की चुनरी एवं चित्र भेट कर सम्मानित किया गया। करीब घंटे भर के इस कार्यक्रम के दौरान माता के जयकारे गूंजते रहे। बाद में छड़ी के साथ जाने वाले श्रद्धालु भजन-कीर्तन एवं जयघोष करते मचैल माता के दरबार के लिए रवाना हुए। छड़ी जिस रास्ते से भी निकली, श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत किया गया। सर्वशक्ति सेवक संस्था के बैनर तले निकली छड़ी यात्रा मंडलायुक्त ने सभी को शुभकामना देते हुए, माता का जयकारा लगाते हुए रवाना किया।

    उन्होंने कहा कि ऐसी यात्राएं एक दूसरे से जोड़ती हैं। एक दूसरे की कला, संस्कृति को समझने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि मचैल माता के साथ लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। हर वर्ष माता के दर्शन के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यात्रा वीरवार रात किश्तवाड़ में रुकने के बाद 22 अगस्त को माता के दरबार पहुंचेगी। मचैल यात्रा 25 जुलाई से शुरू हुई थी।

    पहाड़ियों के बीच मनोरम है गांव : मचैल गांव किश्तवाड़ से 95 किलोमीटर और गुलाबगढ़ से तीस किलोमीटर दूर भूर्ज और भोट नाले के बीच स्थित अत्यंत खूबसूरत गांव है। दुर्गम पहाड़ियों के बीच प्रकृति की गोद में बसे इस गांव के मध्य भाग में प्रसिद्ध मचैल माता का मंदिर काष्ठ का बना हुआ है। मंदिर के मुख्य भाग में समुद्र मंथन का आकर्षक और कलात्मक दृश्य अंकित है। मंदिर के बाहरी भाग में पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां लकड़ी की पट्टिकाओं पर बनी हुई हैं। मंदिर के भीतर मां चंडी एक पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इस पिंडी के साथ दो मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें एक चांदी की मूर्ति है। कहा जाता है कि बहुत पहले जंस्कार, लद्दाख के बौद्ध मतावलंबी भोटों ने इसे मंदिर में चढ़ाया था। इसलिए इस मूर्ति को भोट मूर्ति भी कहते हैं। मूर्तियों पर कई प्रकार के आभूषण सजे हैं। मंदिर के सामने खुला मैदान है, जहां यात्री खड़े हो सकते हैं। यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था बढ़ती ही जा रही है। श्रद्धालुओं की संख्या भी हर वर्ष बढ़ती ही जा रही है। यात्रा में धीरे-धीरे जम्मू से ही नहीं पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश से भी श्रद्धालु आने लगे हैं।

    हजारों श्रद्धालु लेते हैं भाग : मचैल यात्रा भाद्रपद संक्रांति से दो दिन बाद भद्रवाह के चिनौत गांव से प्रांरभ होती है। इसकी विधिवत पूजा की जाती है। छड़ी में हजारों लोग ढोल, नगाड़े जैसे वाद्य यंत्रों के सुरीले और दिव्य रागों से मां के जयकारे लगाते हुए चलते हैं। इस यात्रा का महत्वपूर्ण व पहला पड़ाव किश्तवाड़ होता है। इस यात्रा की एक कड़ी के रूप में महालक्ष्मी मंदिर पक्का डंगा जम्मू से भी एक छड़ी निकाली जाती है, जो किश्तवाड़ पहुंच कर यात्रियों के साथ मिल जाती है। इस तरह से यह यात्रा पूरे जम्मू संभाग की यात्रा बन जाती है। किश्तवाड़ में यात्रा का भव्य स्वागत होता है। यहां रात्रि विश्राम व खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। अगले दिन हजारों की संख्या में महिला, पुरुष, बच्चे व बूढ़े यात्रा की विदाई करते हैं। किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ की यात्रा वाहनों से तय की जाती है, लेकिन इसके आगे पैदल सफर तय करना पड़ता है। वीरवार को रवाना हुई छड़ी यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता था। अधिकतर श्रद्धालु ऐसे थे जो पहले भी कई बार माता के दर्शन कर चुके हैं। उनका कहना था कि एक बार जो माता के दर्शन कर आता है, वह बार-बार आता है।