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    Jammu Kashmir : चांद की धरती में अकूत खजाना, इससे नहीं कोई अनजाना

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Sun, 12 Jul 2020 01:41 PM (IST)

    लद्दाख में एक दशक में बहुमूल्य धातुओं के लिए सभी सर्वे सेना की देखरेख में हुए हैं। यूरोनियम थोरियम जैसे दुर्लभ खनिज होने की पुष्टि नेशनल रिमोट सेंसिंग ...और पढ़ें

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    Jammu Kashmir : चांद की धरती में अकूत खजाना, इससे नहीं कोई अनजाना

    जम्मू, विवेक सिंह । रंग बदलती ऊंची चोटियां, दूर-दूर तक फैली शांत वादियों वाला लद्दाख जिसे 'चांद की धरती या 'बर्फीले रेगिस्तान से जाना जाता है। यह अपने आपमें कई रहस्य समेटे हुए है। इसके गर्भ में भू-तापीय ऊर्जा के भंडार के साथ यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोने व रेअर अर्थ जैसी कई बहुमूल्य धातुएं हैं। पाक और चीन की सरहद से सटे केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में देश-विदेश से कई शोधकर्ता इसकी पुष्टि कर चुके हैं। चीन का सीमा विवाद भी लद्दाख के गर्भ में छिपा खजाना माना जा रहा है। हालांकि, भारत सरकार ने कभी यहां की बहुमूल्य धातुएं का दुरुपयोग नहीं किया। सिर्फ सर्वे जरूर करवाए गए। स्थानीय लोगों ने भी बहुमूल्य धातुओं को सहज कर रखा है।

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    लद्दाख में एक दशक में बहुमूल्य धातुओं के लिए सभी सर्वे सेना की देखरेख में हुए हैं। यूरोनियम, थोरियम जैसे दुर्लभ खनिज होने की पुष्टि नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर हैदराबाद की सेटलाइट मैपिंग से हुई थी। इसके बाद हरकत में आए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने लद्दाख में डेरा डाल पड़ताल कर माना था कि पूर्वी लद्दाख में यूरेनियम के भंडार हैं। पूर्वी लद्दाख से लिए जमीन के नमूनों की जर्मनी की लैब में जांच के बाद पुष्टि हुई थी कि उनमें यूरेनियम की काफी मात्रा है। यहां के पहाड़ों की मिट्टी चिकनी है। सूत्रों के अनुसार जिन क्षेत्रों में दुर्लभ खनिज होने का पता चला है वे चीन से सटी पूर्वी लद्दाख की हानले घाटी के पास नेमगोल व जरसर इलाके हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे क्षेत्रों में बहुमूल्य धातुओं के कारण चीन का हस्तक्षेप बढ़ा है। यह जगजाहिर है कि विश्व शक्ति बनने के लिए चीन अधिक परमाणु बम बनाने की होड़ में है, इसके लिए उसे यूरेनियम चाहिए। उसके लिए पूर्वी लद्दाख हर लिहाज से अहमियत रखता है। पूर्वी लद्दाख के पहाड़ों में यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोने के साथ रेअर अर्थ कहे जाने वाली बहुमूल्य धातुओं के भंडार हैं। गलवन घाटी में सोने के भंडार के दावे किए जा रहे हैं। दोनों देशों में तनावपूर्ण संबंधों की वजह से इस इलाके में अभी ज्यादा सर्वे नहीं हुआ। माना जाता है कि यहां सोने समेत कई बहुमूल्य धातुएं छिपी हुई हैं।

    इसलिए नजर में लद्दाख में :

    भू वैज्ञानिक कहते हैं कि तिब्बत पर कब्जा कर उसकी जमीन से बड़े पैमाने पर यूरेनियम का खनन कर रहा चीन साथ लगते पूर्वी लद्दाख में छिपे खजाने को भी लूटना चाहता है। पूर्वी लद्दाख में मजूबत होकर सेना और वायुसेना ने चीन को स्पष्ट संकेत दे दिया कि वह चाहे लाख कोशिशें कर ले चीन को आगे नहीं बढऩे दिया जाएगा।

    लद्दाख में खनन के लिए चाहिए शांत माहौल :

    लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में दुलर्भ धातुओं के खनन के लिए शांत माहौल की जरूरत है। चीन वर्ष 2015 से पूर्वी लद्दाख के हालात बिगाडऩे पर तुला है। ऐसे में सर्वे के बाद जमीन पर कारवाई करना संभव नहीं हो पाया है। भूगर्भ विज्ञानियों के मुताबिक यूरेनियम से भरी लद्दाख की चट्टान अन्य जगहों के मुकाबले बहुत नयी है। ये 100 से लेकर 25 मिलयिन साल पुरानी है जिनसे केवल परमाणु बिजली के साथ-साथ परमाणु बम भी बनाए जा सकते हैं।

    आसान नहीं होता इन्हें जमीन से निकालना :

    दुलर्भ जमीनी धातुएं ऐसे 17 धातुओं का समूह है जो पहाडिय़ों के काफी नीचे होने के कारण आसानी से नहीं मिलती हैं। इनका इस्तेमाल लेसर, एयरोस्पेस, मर्करी वेपर लेंप, उच्च तापमान वाले सुपर कंडक्टर, परमाणु बैटरियां, दुलर्भ मैग्नेट व मेडिकल उपकरणों से होता है। इन्हें जमीन से निकालना आसान नहीं होता। कई बार उन्हेंं निकालने का खर्च इतना अधिक होता है कि इसे वहन करना संभव नहीं होता। ऐसे में इन धातुओं की पुष्टि होने के बाद भी खनन का काम शुरू करना संभव नही होता। यही कारण है कि सर्वे होने के बाद कई बार काम को आगे बढ़ाने के लिए बजट जुटाना मुश्किल हो जाता है।

    लद्दाख के भौगोलिक हालात के कारण वहां खनन करना मुश्किल है। जिन इलाकों में दुर्लभ घातु मिले हैं, वे चीन के साथ लगते हैं। ऐसे में खनन की दिशा में आगे की कार्रवाई तभी संभव हो सकती है तो इसके लिए उचित माहौल हो। खनन के लिए बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों के हालात लद्दाख से कहीं बेहतर हैं।

    सोमनाथ चंडेल, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया

    दर्राें की भूमि थी :

    लद्दाख आरंभ से ही इतिहास के पृष्ठों में रहस्यों से भरा है। कहा जाता है कि एक चीनी यात्री फाह्यान द्वारा 399 ईसवी में इस प्रदेश की यात्रा करने से पहले तक यह धरती रहस्यों की धरती थी। इसे 'दरों की भूमि के रूप में भी जाना जाता है तभी इसका नाम 'ला और 'द्दागस के मिश्रण से लद्दाख पड़ा है, जो समुद्र तल से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित और 97,000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला होने के कारण दूसरा बड़ा प्रदेश है।