World Sparrow Day 2022: जानें क्यों अब घर-घर नहीं आती गौरेया, शहरों से बनाई दूरी
गौरेया दिवस पर देश में लोग गौरेया के लिए बेहतर वातावरण देने का प्रण लेते हैं। कई लोग तो छत्तों पर पानी के बर्तन भरकर रखते हैं ताकि चिड़िया पानी पी सके। पर्यावरणविद् लोगों का कहना है कि हमें अपने घरों में कुछ इस तरह से वातावरण तैयार करना है।

जम्मू, जागरण संवाददाता। हर गांव घर, शहर के लोगों से गौरेया का बड़ा करीबी संबंध रहा है। घर घर में इस गौरेया की चहचहाट रही है। लेकिन अब शहरों के हर घर में गौरेया नजर नही आती। बदलते मकान के ढांचों ने इस नन्ही सी चिड़िया को इंसानों से दूर कर दिया है। शहरों में इस तरह से मकान बनने लगे हैं कि उसमें कोई खोल नहीं होता।
वहीं घर के अंदर तो मक्खी मच्छर तक का प्रवेश बंद है। ऐसे में नन्ही चिड़िया घर के अंदर तक आने का मतलब नही। बाहरी ढांचे में उसके घौंसला बनाने की कोई गुंजाइश नही बची। यही कारण है कि चिड़िया को अब गांव की ओर लौटना पड़ रहा है। कस्बों में भी मकानों के ढांचों का ऐसा ही हाल है।
गौरेया दिवस पर देश में लोग गौरेया के लिए बेहतर वातावरण देने का प्रण लेते हैं। कई लोग तो छत्तों पर पानी के बर्तन भरकर रखते हैं ताकि चिड़िया पानी पी सके। लेकिन पर्यावरणविद् लोगों का कहना है कि हमें अपने घरों में कुछ इस तरह से वातावरण तैयार करना है ताकि गौरेया अपना घोंसला वहां बना सके। ऐसे कदम उठाने से ही यि नन्हीं सी चिड़िया हमारे करीब होकर रहेगी।
पर्यावरणविद् सीएम शर्मा का कहना है कि पिछले दस बीस बरस से लोगों के मकान बदल गए हैं। अब तो गांव में भी कच्चे मकान नही रहे। कच्चे मिट्टी के मकानों में गौरेया के घौंसले बनाने की बड़ी गुजांइश रहती थी। वहीं घर के अंदर तक चिड़िया बेखौफ होकर आ सकती थी। अब लोग खिड़कियों पर जाली लगाकर बंद रखते हैं। दरबाजे खुले नही रहते। यही कारण है कि चिड़िया इंसान से दूर हाे आई है। इसे वापिस लाने के लिए इंसान को ही प्रयास करने होंगे।
पर्यावरणविद् ओपी शर्मा ने कहा कि इस दिशा में जागरूकता लानी होगी। चलो कम से कम घर के बाहरी ओट में ही ऐसा वातावरण तैयार किया जा सकता कि चिड़िया आकर्षित हो। दूर गांवों में यहां आज कच्चे ढांचे हैं, वहां गौरेया काफी संख्या में दिख जाती है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।