जम्मू : गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों बेगम हजरत महल, सेनापति बापट के संघर्ष को डोगरी में पिरोएंगी भारती
1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई में बेगम हजरत ने अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली बेगम हजरत महल 1857 की क्रांति में कूदने वाली पहली महिला थी।

कठुआ, राकेश शर्मा : आज देश आजादी के 75 वर्ष अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों और बलिदानों के कारण भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन याद करने के लिए चंद सेनानियों के नाम ही सामने आते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इतिहास के पन्नों में नबराबर हैं। इनमें लखनऊ की बेगम हजरत महल और महाराष्ट्र के सेनापति बापट भी शामिल हैं। इनकी बहादुरी का कभी इतिहास में कोई जिक्र तक नहीं हुआ। जम्मू संभाग के कठुआ जिले की बेटी भारती देवी इन गुमनाम सेनानियों के संघर्ष को पहली बार डोगरी में पिरोएंगी। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की प्रधानमंत्री मेंटरशिप युवा योजना में देशभर से चयनित ७५ युवा लेखकों की सूची में भारती देवी भी शामिल हैं।
जम्मू विश्वविद्यालय से डोगरी में पोस्ट ग्रेजुएट जिले के हीरानगर के बालू गुढ़ा गांव की भारती का उद्देश्य है कि अंग्रेजों की हुकूमत से देश को आजाद कराने में गुमनाम नायकों के संघर्ष को जम्मू कश्मीर के लोगों को उनकी भाषा में बताया जाए। पुस्तक छह महीने में लिखनी है। भारती ने बेगम हजरत महल और बापट के संघर्ष, वीरता, समाज सेवा पर लिखने की इच्छा जताई है। 1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई में बेगम हजरत ने अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली बेगम हजरत महल 1857 की क्रांति में कूदने वाली पहली महिला थी।
प्रेरणादायक है दोनों स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष : भारती देवी का कहना है कि वर्ष 1820 में फैजाबाद में गरीब परिवार में जन्मीं मुहम्मदी खातून के नृत्यांगना से लेकर नवाब वाजिद अली शाह की बेगम बनने और अंग्रेजी शासन द्वारा 1856 में नवाब के निर्वासन के बाद हजरत महल के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी लोगों को पता चलनी चाहिए। उन्होंने अपने अवयस्क पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बैठा कर स्वयं कुशल रणनीति से अंग्रेजों से लखनऊ को मुक्त कराया था। उनकी सेना में सभी धर्मों के लोग शामिल थे। इसी तरह से महाराष्ट्र के पांडुरंग महादेव बापट जिन्हें सेनापति बापट के नाम से भी जाना जाता है, ने अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया था। उन्हें आजाद ङ्क्षहद फौज का महाराष्ट्र शाखा का अध्यक्ष भी बनाया गया था। सेनापति बापट के नाम से मशहूर पांडुरंग महादेव बापट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अविस्मरणीय कड़ी थे। वर्ष 1921 में हुए 'मूलशी सत्याग्रह' का नेतृत्व करने के कारण उन्हें 'सेनापति' के नाम से जाना जाने लगा।
विशेषज्ञों से मार्गदर्शन मिलना था : भारती देवी सात जनवरी को दिल्ली के प्रगति मैदान में अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के विशेष शिविर में भाग लेने जाना था, जहां से उन्हें मिले कार्य के लिए विशेषज्ञों से मार्गदर्शन मिलना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण शिविर स्थगित हो गया। गांव के नागरमल की बेटी भारती राष्ट्रीय स्तर पर युवा लेखक के रूप में चयन होने पर गौरवान्वित महसूस कर रही हैैं। उन्हें जम्मू विवि में उनके अध्यापकों ने चयन प्रक्रिया के लिए होने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उनका चयन हो गया। अब उनका मुख्य लक्ष्य स्वाधीनता के उन सेनानियों के बारे में लिखना है, जिनके बारे में जम्मू कश्मीर के लोगों को कम जानकारी है। यह मेरे लिए गर्व का एवं चुनौतीपूर्ण कार्य भी होगा। इसके लिए अब इस पर शोध करना है। स कार्य के लिए जुट गई हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।