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    यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद अब ट्रंप टैरिफ की गाज, मुश्किल में फंसे कालीन व शॉल बुनकर; एक साल में हो गया इतना नुकसान

    Updated: Fri, 11 Apr 2025 02:23 PM (IST)

    कश्मीर के कालीन और शॉल बुनकरों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध और गाजा के हालात से पहले ही परेशान बुनकरों के लिए अमेरिकी टैरिफ की तलवार ने स्थिति और विकट बना दी है। कई बुनकर अब अपनी आजीविका के लिए कोई नया काम धंधा तलाशने लगे हैं। उत्पादों के निर्यात कारोबार में 80 प्रतिशत की गिरावट आयी है

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    विदेशों में कश्मीरी शॉल और कालीन की बहुत मांग हैं (सोशल मीडिया फोटो)

    राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। यूक्रेन-रूस युद्ध और गाजा के हालात से परेशान कश्मीर के कालीन और शॉल बुनकरों के लिए अमेरिकी टैरिफ की तलवार ने स्थिति और विकट बना दी है। उनमें से कई अब अपनी आजीविका के लिए कोई नया काम धंधा तलाशने लगे हैं।

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    वैश्विक राजनीतिक-व्यापारिक परिस्थितियों के बीच बीते एक वर्ष के दौरान कश्मीर के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के निर्यात कारोबार में 80 प्रतिशत की गिरावट आयी है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री व अन्य व्यापारिक संगठनों ने इस विषय में प्रदेश व केंद्र सरकार को सचेत करते हुए मदद और समर्थन का आग्रह किया है।

    कश्मीर का विरासत हस्तशिल्प क्षेत्र विशेष रूप से कमजोर है। हाथ से बुने कालीन, पश्मीना शॉल, पेपरमाछी उत्पाद, अखरोट की लकड़ी की नक्काशी और विस्तृत कढ़ाई वाले वस्त्र जैसे उत्पाद घाटी के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।

    ये सामान न केवल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सदियों पुरानी कलात्मक परंपरा और शिल्प कौशल का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। जम्मू-कश्मीर में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग में लगभग 4.22 लाख कारीगर प्रत्यक्ष-परोक्ष रोजगार जुड़े हैं। इनमें से 2.80 लाख कारीगर हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग में पंजीकृत हैं।

    एक साल में 1162 करोड़ रुपये का राजस्व

    विभाग के अनुसार, वर्ष 2023-24 हस्तशिल्प, हथकरघा उत्पादों जिनमें कालीन, शॉल व अन्य सामान शामिल है, के निर्यात से 1162 करोड़ रुपये का राजस्व आया था, लेकिन वर्ष 2024-25 में नवंबर के अंत तक निर्यात राजस्व मात्र 208.18 करोड़ रुपये रहा है।

    हस्तशिल्प एवं हथकरघा विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, कोविड-19 महामारी के दौरान निर्यात प्रभावित हुआ था, लेकिन बाद में इसमें सुधार आया और बीते वित्त वर्ष में इसमें फिर गिरावट आयी है।

    उन्होंने बताया कि कश्मीरी हस्तशिल्प के लिए खाड़ी देशों के साथ साथ यूरोप, पश्चिम एशिया, अमेरिका और चीन में अच्छा खासा बाजार है और इन मुल्कों में मांग के आधार पर स्थानीय हस्तशिल्प उद्योग गति पकड़ता है।

    विदेश से ऑर्डर लगातार कम हुए

    कश्मीर के प्रमुख शॉल एवं कालीन कारोबारी और आर्टिजन आर्ट एंड कल्चरल सेंटर के सह संस्थापक महबूब इकबाल शाह ने कहा कि बीते दो वर्ष के दौरान विदेश से ऑर्डर लगातार कम हो रहे हैं

    । नकली मशीनी कालीन ने भी नुकसान पहुंचाया है। यहां कई छोटे व्यापारियों ने अब काम बंद कर दिया है। अब अमेरिका द्वारा टैक्स लगाए जाने से हमाारे हस्तशिल्प उद्योग पर और मार पड़ेगी।

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    इस तरह घटा बढ़ा निर्यात

    वित्तीय वर्ष 2024-25 में नवंबर 2024 के अंत तक कालीन निर्यात मात्र 31.81 करोड़ का हुआ है जोकि वर्ष 2017 में 821.50 करोड़ था। वर्ष 2023-24 में यह घटकर 317 करोड़ रह गया था। वर्ष 2023-24 में 477.24 करोड़ रुपये के शॉल निर्यात हुए हैं और मौजूदा समय में भी शॉल का निर्यात ही ज्यादा हो रहा है।

    रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में जो हालात हैं, इजरायल-लेबनान और सीरिया के परिस्थितियों से हमारे हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों की मांग में कमी आई है। अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैक्स बढ़ाए जाने से होने वाले असर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

    -मसरत इस्लाम, हस्तशिल्प एवं हथकरघा विभाग के निदेशक

    कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के पूर्व चेयरमैन शेख आशिक हुसैन कहते हैं,

    रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय मुल्कों में हमारे कालीन, शॉल व अन्य हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात अब तक के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। रूस में हमारे लिए बाजार लगभग खत्म हो गया है। 

     केसीसीआइ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, आशिक हुसैन शांगलू के अनुसार,

    नई टैरिफ व्यवस्था से भारतीय निर्यातकों, खासकर अमेरिकी बाजार से जुड़े निर्यातकों के नकदी प्रवाह पर काफी असर पड़ने की उम्मीद है। अमेरिकी खरीदार बढ़ी हुई अग्रिम लागत का सामना कर रहे हैं, जिससे कश्मीर और अन्य जगहों पर निर्यातकों को भुगतान में देरी हो सकती है, जिससे नकदी संकट की आशंका बढ़ गई है। केसीसीआइ ने केंद्र से निर्यातकों का समर्थन करने के लिए पांच प्रतिशत ब्याज सहायता योजना शुरू करने का अनुरोध किया है। 

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