Jammu Kashmir News: 34 साल बाद कश्मीरी हिंदुओं को मिलेगा इंसाफ, हैवानियत को याद कर छलके पीड़ितों के आंसू
राज दुलारी ने कहा कि भाई वीरजी भट्ट की जीन्स फट गई थी और वह धागा लेने के लिए बाजार गया था। तीन आतंकियों ने उसे घेर लिया। नदी किनारे हाथापाई हुई। एक आतंकी ने नजदीक से गोलियां मारीं। वीरजी भट्ट को अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन न जाने आतंकी कैसे अस्पताल भी पहुंच गए और वीरजी भट्ट को लगाई गई आक्सीजन की पाइप काट दी और भाई नहीं बच पाया।

गुलदेव राज , जम्मू: घाटी में वर्ष 1989-95 तक हुई कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं की फिर से जांच करवाने के प्रशासन के फैसले से जम्मू में बसे कश्मीरी हिंदू विस्थापितों में इंसाफ की उम्मीद बंधी है। आतंकी हिंसा में किसी ने अपने भाई को खोया तो किसी ने अपने पिता को, और कई ऐसे भी हैं जिनके अपनों का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था और आज तक उनका कोई सुराग नहीं मिला, जिसके चलते उन्होंने मान लिया कि उनकी हत्याएं हो चुकी हैं।
पिछली सरकारों ने भी कभी इन हत्याओं के दोषियों को सजा दिलाने, षड्यंत्र के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित करने और आतंकी हिंसा भड़काने वालों को सजा दिलाने की कभी मन से कोशिश ही नहीं की। नतीजतन, कश्मीरी हिंदुओं ने मान दिया था कि अब उन्हें इंसाफ नहीं मिलेगा, लेकिन प्रशासन के इस फैसले से 34 वर्ष बाद उनमें न्याय की आस जगी है। अपना दर्द बयान करते पीड़ित कश्मीरी हिंदुओं की आंखों से दर्द आंसू बनकर छलक पड़ा।
भाई कश्मीर छोड़ने को तैयार नहीं था और मिली मौत
राज दुलारी हम कश्मीर के बड़गाम जिले के नागाम में रहते थे। भाई वीरजी भट्ट की उम्र तब 30 वर्ष थी। वह आतंकी हिंसा के बावजूद घाटी छोड़कर जम्मू आने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि हमारा सब कुछ यहीं पर है, हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं।
वो मई, 1990 का दिन था जब मेरे भाई को सरेआम गोलियां मार दी गईं। भाई को याद करते जम्मू में रह रही राज दुलारी की आंखों से आंसू छलक पड़े। राज दुलारी ने कहा कि भाई वीरजी भट्ट की जीन्स फट गई थी और वह धागा लेने के लिए बाजार गया था।
तीन आतंकियों ने उसे घेर लिया। नदी किनारे हाथापाई हुई। एक आतंकी ने नजदीक से गोलियां मारी। मेरा भाई सड़क पर गिर गया और कोई भी बचाने के लिए आगे नहीं आया। मां सना भट्ट को जब पता चला वह दौड़कर पहुंची और अपनी साड़ी से वीरजी भट्ट के घाव को ढका।
किसी तरह वीरजी भट्ट को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन न जाने आतंकी कैसे अस्पताल भी पहुंच गए और वीरजी भट्ट को लगाई गई आक्सीजन की पाइप काट दी और भाई नहीं बच पाया। वो कौन थे, जिन्होंने मेरे भाई को मारा, मैं आज उनको फांसी लगते देखना चाहती हूं।
नहीं लौटे पिता और मामा, हमने मान लिया उनकी हत्या हो चुकी
सुरेश बाली कश्मीरी हिंदू भाई संदेश बाली व हीरा लाल बाली अब जम्मू के दुर्गानगर में रहते हैं, लेकिन कश्मीर के दर्द की चुभन आज भी महसूस करते हैं। उन्होंने बताया कि उनका परिवार कश्मीर के पट्टन के क्रेशमा क्षेत्र में रहता था। घाटी में आतंकवाद बढ़ रहा था।
पूरे परिवार को घाटी छोड़कर जम्मू आना पड़ा। मगर पिता जी पृथ्वी नाथ बाली और मामा बिशंवर नाथ भट्ट नहीं आए। दिसंबर, 1990 को आतंकियों ने सुबह पिता और शाम को मामा का अपहरण कर लिया। हमारा पूरा परिवार परेशान रहा।
कुछ दिनों बाद हम किसी तरह कश्मीर पहुंचे और पिता जी और मामा के बारे में पता लगाने का प्रयास किया, मगर कोई जानकारी नहीं मिली पाई। फिर हमने मान लिया कि आतंकियों ने उनकी हत्याएं कर दी है। हमें अफसोस है कि हमें उनके शव भी नहीं मिले। संदेश बाली ने कहा कि हम चाहते हैं कि हमारे पिता और मामा के हत्यारों को ढूंढकर उन्हें फंसी दी जाए।
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