Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    45 हजार करोड़ खर्च, 130 साल का सपना और 1983 में शुरुआत; कश्मीर तक कैसे पहुंची ट्रेन? पढ़ें Inside Story

    Updated: Thu, 05 Jun 2025 10:37 AM (IST)

    Train to Kashmir News प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटड़ा से कश्मीर तक वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे जिससे कश्मीर घाटी तक ट्रेन चलाने की 130 साल पुरानी योजना पूरी हो जाएगी। डोगरा महाराजाओं द्वारा परिकल्पित इस परियोजना को ब्रिटिश इंजीनियरों ने आगे बढ़ाया लेकिन कई बाधाओं के बाद 1925 में स्थगित कर दिया गया।

    Hero Image
    कश्मीर तक कैसे पहुंची ट्रेन? पढ़ें Inside Story (जागरण ग्राफिक्स)

    पीटीआई, जम्मू। Train to Kashmir History: दुर्गम शिवालिक और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से कश्मीर घाटी (Train to Kashmir) तक ट्रेन चलाने की एक सदी से भी अधिक पुरानी महत्वाकांक्षी योजना शुक्रवार को वास्तविकता में बदल जाएगी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटड़ा से कश्मीर तक वंदे भारत ट्रेन (Kashmir Vande Bharat Express) को हरी झंडी दिखाएंगे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 19वीं शताब्दी में डोगरा महाराजाओं की एक परिकल्पना, एक सपना अब स्वतंत्र भारत में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा उपलब्धियों में से एक बन गया है।

    महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) के पोते और पूर्व सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि 130 साल पहले डोगरा शासक की योजना आखिरकार साकार हो गई है। यह एक परियोजना थी, जो एक सदी से भी अधिक समय तक अधूरी रही।

    महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में तैयार हुआ प्रोजेक्ट

    पूर्व एमएलसी विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि कश्मीर घाटी तक रेलवे लाइन परियोजना (Kas) की परिकल्पना और रूपरेखा महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में तैयार की गई थी। यह न केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि हमारे प्रधानमंत्री सपने को साकार करेंगे।

    डोगरा शासक ने ब्रिटिश इंजीनियरों को कश्मीर तक रेलवे मार्ग के लिए पर्वतीय और बीहड़ इलाकों का सर्वे का जिम्मा सौंपा था। उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए तीन ब्रिटिश इंजीनियरों को नियुक्त किया और 1898 से 1909 के बीच 11 वर्षों में तैयार की गई तीन में से दो रिपोर्ट रद कर दी गई थीं।

    दो सुझाव किए थे अस्वीकार

    अभिलेखागार विभाग के विशेष दस्तावेजों के अनुसार, कश्मीर तक रेल संपर्क का विचार पहली बार मार्च, 1892 को प्रस्तावित किया गया था। जून 1898 में ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म एसआर स्काट स्ट्रैटन एंड कंपनी को सर्वे व परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए नियुक्त किया गया।

    डीए एडम की ओर से प्रस्तुत पहली रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर के बीच दो फीट छह इंच की एक नैरोगेज लाइन पर भाप इंजन रेलगाड़ी की सिफारिश गई थी। रेललाइन को जिस क्षेत्र से ले जाना था, वह ऊंचाई वाला इलाका था। प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । वर्ष 1902 में डब्ल्यू जे वेटमैन द्वारा प्रस्तुत एक अन्य प्रस्ताव में एबटाबाद (अब गुलाम जम्मू-कश्मीर में) से कश्मीर को जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन का सुझाव दिया गया था।

    1925 में स्थगित कर दी गई थी परियोजना

    उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक, वाइल्ड ब्लड द्वारा प्रस्तुत तीसरे प्रस्ताव में रियासी क्षेत्र से होकर चिनाब नदी के किनारे रेलवे लाइन बिछाने की सिफारिश की गई थी और इसे मंजूरी दी गई थी।

    बाद में उधमपुर , रामसू और बनिहाल के पास इलेक्ट्रिक ट्रेनों को चलाने और बिजली स्टेशन स्थापित करने की योजनाओं की भी जांच की गई, लेकिन अंततः इसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल डी ई बोरेल को स्थानीय कोयला भंडारों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया। लेकिन 1925 में महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु के कारण परियोजना को स्थगित कर दिया गया।

    1983 में रखी गई रेलवे लाइन की आधारशिला

    लगभग छह दशक बाद कश्मीर तक रेल संपर्क बहाल करने का विचार फिर आया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में जम्मू-उधमपुर -श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी।

    उस समय इस परियोजना की अनुमानित लागत 50 करोड़ रुपये थी और इसे पांच साल में पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन अगले 13 वर्ष में 300 करोड़ की लागत से केवल 11 किलोमीटर लाइन का निर्माण किया जा सका, जिसमें 19 सुरंगें और 11 पुल शामिल थे।

    25 करोड़ रुपये तीसरे फेज में हुए खर्च

    इसके बाद 2,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के आधार पर उधमपुर -कटड़ा-बारामूला रेलवे परियोजना शुरू हुई, जिसकी आधारशिला 1996 और 1997 में क्रमश: तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल ने उधमपुर , काजीगुंड और बारामुला में रखी थी।

    निर्माण कार्य 1997 में शुरू हुआ, लेकिन चुनौतीपूर्ण भूगर्भीय व अन्य परिस्थितियों के कारण बार-बार देरी का सामना करना पड़ा, जिससे अब इसकी लागत 43,800 करोड़ रुपये से अधिक हो गई।

    रेलवे अधिकारियों के अनुसार, उधमपुर -श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन (यूएसबीआरएल) के रणनीतिक महत्व को देखते हुए इसे 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था। मोदी सरकार के कार्यकाल में 272 किलोमीटर लंबी इस परियोजना का अंतिम खंड फरवरी 2024 में पूरा हुआ। इस परियोजना में 38 सुरंगें और 927 पुल शामिल हैं।