Kashmir : हुर्रियत से किनारा करने के मूड में अलगाववादी, शब्बीर शाह ने उपाध्यक्ष बनने से किया इन्कार
आम कश्मीरी अवाम अब अलगववादियों की तरफ कोई ध्यान नहीं देती। इसका असर अलगाववादी नेताओं की सियासत पर भी होने लगा है। तभी तो कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की मौत के बाद उनके सियासी उत्तराधिकार को लेकर कोई ज्यादा हंगामा नहीं हुआ।

श्रीनगर, नवीन नवाज: कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के समर्थक अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से बेशक खुद को तसल्ली दे रहे हैं, लेकिन पुराने कट्टरपंथी अलगाववादी अब अलगाववाद और हुर्रियत से किनारा करने के मूड में हैं। इसकी पुष्टि कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में शुमार शब्बीर शाह द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस का उपाध्यक्ष बनने से इन्कार किए जाने से भी हो जाती है। यही नहीं, एक अन्य वरिष्ठ अलगाववादी नेता अब आजादी, कश्मीर और इस्लाम का नारा बेचने के बजाय कश्मीरियों को केक, बिस्कुट और ब्रेड खिलाने में ज्यादा रुचि ले रहा है।
हुर्रियत कांफ्रेंस समेत विभिन्न अलगाववादी संगठनों के करीब दो दर्जन प्रमुख नेता बीते चार साल से तिहाड़ जेल में बंद हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू कर जम्मू कश्मीर की संवैधानिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया। आजादी, आटोनामी, सेल्फ रूल के नारों की सियासत खत्म होने के साथ ही इन नारों के नाम पर कश्मीरियों को बरगलाने वाले भी पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं। आम कश्मीरी अवाम अब अलगववादियों की तरफ कोई ध्यान नहीं देती। इसका असर अलगाववादी नेताओं की सियासत पर भी होने लगा है। तभी तो कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की मौत के बाद उनके सियासी उत्तराधिकार को लेकर कोई ज्यादा हंगामा नहीं हुआ।
हाल ही में तिहाड़ जेल में बंद कट्टरपंथी मसर्रत आलम को हुर्रियत कांफ्रेंस का चेयरमैन और जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्ट के चेयरमैन शब्बीर शाह को उपाध्यक्ष बनाया गया, लेकिन शब्बीर ने उपाध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया। शब्बीर कश्मीर के सबसे पुराने अलगाववादियों में एक है। शब्बीर ने हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन में अहम भूमिका निभाई थी और सबसे पहले इससे बाहर भी निकले। 2017 में एनआइए द्वारा टेरर फंडिंग में पकड़े जाने से कुछ वर्ष पहले तक उन्होंने हुर्रियत का तीसरा धड़ा भी तैयार करने का प्रयास किया था, लेकिन बाद में गिलानी से ही हाथ मिला लिया था।
यह है बहाना: शब्बीर शाह के करीबियों ने बताया कि वह हुर्रियत का उपाध्यक्ष बनाए जाने के फैसले से नाखुश हैं। उन्होंने कहा है कि मुझे यह मंजूर नहीं है और न ही हुर्रियत में कोई जिम्मेदारी चाहते हैं। मेरे साथ हुर्रियत के किसी भी नेता ने इस संदर्भ में कभी कोई बात नहीं की है। मेरे संगठन के नेताओं से भी किसी ने नहीं पूछा है। उन्होंने अपने संगठन के लोगों को इस संदर्भ में एक बयान भी जारी करने को कहा है।
सियासी बयानबाजी तक नहीं: हुर्रियत के एक अन्य नेता जो मीरवाइज मौलवी उमर फारुक के करीबी रहे हैं, पांच अगस्त 2019 के बाद किसी तरह जेल जाने से बच गए थे। अब वह अलगाववादी नेता की छवि छोड़ विशुद्ध बिजनेसमैन की छवि बनाने में लगे हैं। वह अपने करीबी लोगों से भी सियासी मुद्दों पर बातचीत से बचते हैं। उक्त नेता ने मीरवाइज मौलवी की तथाकथित नजरबंदी की रिहाई के लिए भी कोई बयान जारी नहीं किया है। बस, आजकल बेकरी व अपने अन्य कारोबार को आगे बढ़ाने में लगे हैं।
तिहाड़ से बाहर न निकल पाने का डर भी : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि शब्बीर शाह कभी भी मसर्रत आलम के नंबर दो नहीं बनना चाहेंगे, क्योंकि वह खुद को सबसे सीनियर अलगाववादी मानते हैं। इसलिए उन्होंने 1993 में हुर्रियत के गठन के कुछ वर्ष बाद ही अपना अलग रास्ता चुन लिया था। वह भी अन्य अलगाववादियों की तरह पहली बार कानून के डंडे का सही तरीके से सामना कर रहे हैं। उनकी संपत्ति किसी भी समय जब्त हो सकती है। उनकी पत्नी को भी ईडी का समन आ चुका है। इसलिए उन्हेंं लगता है कि अगर हुर्रियत से नाम जुड़ता है या वह अलगाववादी सियासत में आगे बढ़ते हैं तो फिर तिहाड़ से बाहर निकलने रास्ता पूरी तरह बंद हो जाएगा। जो जायदाद कश्मीर की आजादी के नाम पर बनाई है, वह भी हाथ से निकल जाएगी। यही बात अन्य अलगाववादी नेताओं पर भी लागू होती है। इन हालात में जिसे जब मौका मिल रहा है, अपने लिए अन्य विकल्प तलाश रहा है।
कभी हुर्रियत में शामिल होने की होड़ थी : जेेकेयूनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष अजात जंवाल ने कहा कि पांच अगस्त 2019 से पहले कश्मीर में ही नहीं, जम्मू संभाग में भी कई लोग हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ जुडऩा शान समझते थे। गिलानी का सियासी उत्तराधिकारी बनने, हुर्रियत की कार्यकारी समिति में शामिल होने में होड़ मची रहती थी। शब्बीर शाह ने कार्यकारी सीमित में स्थायी सदस्यता न मिलने पर ही मीरवाइज मौलवी उमर फारुक का साथ छोड़ कुछ वर्ष पूर्व गिलानी से हाथ मिलाया था, अब वह वह उपाध्यक्ष तक बनने को तैयार नहीं है। हकीकत यह है कि अलगाववादियों की दुकानदारी बंद हो चुकी है।
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