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    कश्मीर बाबर कादरी हत्याकांड में आरोपित मियां अब्दुल कयूम की जमानत नहीं, 'कोर्ट ने बरकरार रखा ट्रायल कोर्ट का आदेश

    By Surinder Raina Edited By: Rahul Sharma
    Updated: Wed, 17 Dec 2025 03:00 PM (IST)

    कश्मीर में बाबर कादरी हत्याकांड के आरोपित मियां अब्दुल कयूम को जमानत नहीं मिली है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। कयूम पर अधिवक्ता बा ...और पढ़ें

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    कोर्ट ने कहा कोई असाधारण चिकित्सीय जमानत का आधार नहीं।

    जेएनएफ, जम्मू। जम्मू&कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ वकील एवं बार एसोसिएशन कश्मीर के पूर्व प्रधान मियां अब्दुल कयूम की मेडिकल जमानत याचिका खारिज कर दी है। कूयम हाई एडवोकेट बाबर कादरी हत्याकांड में आरोपित हैं। न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा और न्यायमूर्ति शहजाद अजीम की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के जमानत न देने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि जमानत के लिए कोई असाधारण चिकित्सीय आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है।

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    77 वर्षीय मियां अब्दुल कयूम ने मानवीय और स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जमानत की मांग की थी। उनकी ओर से दलील दी गई कि वे कोरोनरी आर्टरी डिजीज, स्थायी पेसमेकर की आवश्यकता वाली हृदय में समस्या, गंभीर यूरोलाजिकल समस्याओं, ग्लूकोमा तथा न्यूरोलाजिकल और आर्थोपेडिक जटिलताओं से पीड़ित हैं।

    उनके वकील ने तर्क दिया कि उन्हें रोजाना लगभग 20 दवाइयों की जरूरत होती है और निरंतर निगरानी जेल में संभव नहीं है। हालांकि अदालत ने रिकार्ड पर मौजूद चिकित्सा रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि कयूम की हिरासत के दौरान सरकारी मेडिकल कालेज, जम्मू में सफलतापूर्वक पेसमेकर प्रत्यारोपण किया गया।

    20 अक्टूबर 2025 की नवीनतम रिपोर्ट सहित अन्य मेडिकल दस्तावेज़ों में उनकी स्थिति स्थिर पाई गई है और उन्हें कार्डियोलाजी, यूरोलाजी, एंडोक्रिनोलाजी, रेडियोलाजी और नेत्र विज्ञान जैसे विभागों से नियमित व विशेष उपचार मिल रहा है।

    अदालत ने यह भी नोट किया कि उन्हें 36 बार चिकित्सकीय जांच के लिए ले जाया गया, जिससे यह स्पष्ट है कि उनकी स्वास्थ्य देखभाल में कोई लापरवाही नहीं हुई।खंडपीठ ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि बार-बार अस्पताल ले जाना स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति का संकेत है।

    अदालत ने कहा कि हर बीमारी या कमजोरी जमानत का आधार नहीं बन सकती, विशेषकर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे सख्त कानूनों के तहत, जहां जमानत के लिए कड़े मानदंड तय हैं। अदालत ने आरोपों की गंभीरता पर भी जोर दिया।

    कयूम पर सीमा पार बैठे आतंकियों के साथ साजिश कर एडवोकेट बाबर कादरी की हत्या कराने का आरोप है। उनके प्रभावशाली वर्चस्व का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए मामला पहले राज्य जांच एजेंसी को सौंपा गया और बाद में श्रीनगर से जम्मू स्थानांतरित किया गया।

    यह भी उल्लेख किया गया कि गवाहों को धमकियां मिलीं और श्रीनगर में कोई भी वकील शिकायतकर्ता की ओर से पेश होने को तैयार नहीं था।कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर आरोपी की रिहाई से चल रहे ट्रायल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि अधिकांश गवाहों की गवाही अभी बाकी है।

    अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि कोई ऐसी चिकित्सीय आपात स्थिति या उपचार में कमी सामने नहीं आई है, जो यूएपीए के तहत जमानत पर लगी वैधानिक रोक को दरकिनार कर सके।ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई खामी न पाते हुए खंडपीठ ने अपील को निराधार करार देते हुए खारिज कर दिया।