1971 में सोवियत संघ में भारत का पक्ष बताने राजदूत बनकर गए थे Dr Karan Singh, पाकिस्तान के हुए थे दो टुकड़े
जम्मू-कश्मीर के अंतिम राजा महाराजा हरि सिंह के सुपुत्र डा. कर्ण सिंह का जन्म नौ मार्च 1931 को हुआ। उनकी पढ़ाई दून स्कूल देहरादून से हुई। जम्मू और कश्मीर यूनिवर्सिटी श्रीनगर से उन्होंने बीए करने के बाद राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री की और दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की।

जम्मू, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता डा. कर्ण सिंह राजनीतिक रूप से जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली तक अपनी अलग पहचान रखते हैं। वह इस समय बेशक राजनीति में सक्रिय नहीं हैं लेकिन अभी भी उनके चाहने वालों की कमी नहीं है। डा. कर्ण सिंह ने अपना अधिकांश राजनीतिक सफर कांग्रेस में ही बिताया है। हालांकि बीच में वह कांग्रेस यू में भी रहे। वह एक मंझे हुए राजनेता होने के साथ-साथ एक शिक्षाविद् भी थे। केंद्र सरकारों ने उनके कौशल का हर जगह उपयोग किया। यही कारण है कि वह केंद्रीय मंत्री रहने के अलावा राजनयिक भी रहे।
जम्मू-कश्मीर के अंतिम राजा महाराजा हरि सिंह के सुपुत्र डा. कर्ण सिंह का जन्म नौ मार्च 1931 को हुआ। उनकी पढ़ाई दून स्कूल देहरादून से हुई। जम्मू और कश्मीर यूनिवर्सिटी श्रीनगर से उन्होंने बीए करने के बाद राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री की और दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। वर्ष 1949 में मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें जम्मू-कश्मीर का युवराज बनाया गया। वर्ष 1952 से 1965 तक में वह सदर-ए-रियासत रहे और वर्ष 1965 से 1967 तक जम्मू-कश्मीर के पहले राज्यपाल बने। वर्ष 1967 में उन्होंने राज्यपाल के पद से त्यागपत्र दे दिया और उसी वर्ष केंद्र में देश के सबसे युवा मंत्री बने। उन्हें पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया। वर्ष 1973 में एक विमान दुर्घटना के बाद उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया लेकिन उनके त्यागपत्र को स्वीकार नहीं किया गया।वर्ष 1973 में उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया। वह 1977 तक इसी के मंत्री रहे।
आपातकाल के दौरान डा कर्ण सिंह ऊधमपुर-डोडा संसदीय सीट से बने थे सांसद :
आपातकाल के दौरान 1977 के चुनावों में डा. कर्ण सिंह ऊधमपुर-डोडा संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए। बाद में वह कांग्रेस यू में शामिल हो गए और वर्ष 1979 में वह चौधरी चरण सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। वर्ष 1980 में उन्होंने कांग्रेस यू की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वर्ष 1984 में उन्होंने जम्मू-पुंछ संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए। तीस नवंबर 1996 से 12 अगस्त 1999 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। उस समय नेशनल कांफ्रेंस ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। बाद में 28 जनवरी 2000 से 27 जनवरी 2018 तक कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा में रहे। वर्ष 1989से लेकर 1990 तक वह अमेरिका में भारत के राजनयिक रहे।
डा कर्ण सिंह बनारस हिंदू यूनिववर्सिटी सहित चार यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रह चुके हैं :
यही नहीं डा. कर्ण सिंह बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, जम्मू और कश्मीर यूनिवर्सिटी, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और एनआइआइटी के चांसलर भी रहे। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वह तीन बार चांसलर रहे हैं। वह धर्मार्थ ट्रस्ट जम्मू-कश्मीर के चेयरमैन ट्रस्टी हैं। यह ट्रस्ट उत्तर भारत के 175 मंदिरों की देखभाल करता है। डा. कर्ण सिंह ने मात्र 19 वर्ष की आयु में शादी कर ली थी। उन्होंने नेपाल के राणा परिवार की बेटी यशो राजे लक्ष्मी के साथ शादी की। उनके दो बेटे विक्रमादित्य और अजात शत्रु सिंह है। उनकी एक बेटी ज्योत्सना सिंह है।
शेख अब्दुल्ला को किया था गिरफ्तार :
वर्ष 1953 में जब डा. कर्ण सिंह सदर-ए-रियासत थे तो उसी समय के दौरान जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्म्द अब्दुल्ला को कश्मीर षड्यंत्र मामले में गिरफ्तार किया गयाथा। शेख अब्दुल्ला करीब 11 वर्ष तक हिरासत में रहे थे।डा. कर्ण सिंह की अहमियत का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है जब वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ शीत युद्ध चल रहा था तो उन्हें सोवियत संघ में भारत का पक्ष बताने के लिए राजदूत बनाकर भेजा गया था। इसी युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए थे।
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