जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 'रोशनी एक्ट एक दफन कानून, इसे दोबारा जीवित करने का प्रयास न करें'
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को 'दफन कानून' बताते हुए इसे पुनर्जीवित करने के किसी भी प्रयास को अस्वीकार्य बताया है। अदालत ने इस अधिनियम के तहत पहले किए गए सभी कार्यों को भी अवैध घोषित कर दिया है।

अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि इस अधिनियम को पुनर्जीवित करने का कोई प्रयास न किया जाए।
जेएनएफ, जागरण, जम्मू। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने रोशनी एक्ट के तहत सरकारी जमीन का मालिकाना अधिकार दिए जाने के दावों को खारिज करते हुए कहा है कि रोशनी कानून एक दफन हुआ कानून है जिसे दोबारा जीवित करने के प्रयास नहीं होने चाहिए।
हाईकोर्ट ने दावों को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि जो लोग अब रद्द हो चुके रोशनी कानून के तहत लाभ का दावा कर रहे हैं, वे एक मृत घोड़े में जान डालने की कोशिश कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि याची ने एक ही विषय पर कई याचिकाएं दायर की है जोकि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और समय की बर्बादी है।
केस के मुताबिक गुलाम रसूल मिस्त्री और अन्य ने श्रीनगर के रामपुरा, बटमालू और बाग-ए-नंद सिंह में सरकारी जमीन पर दावा किया था।
उन्होंने तर्क दिया था कि वे रोशनी कानून के तहत मालिकाना अधिकार प्राप्त करने के हकदार हैं क्योंकि उनका भूमि पर कब्जा था। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि भूमि का रिकार्ड 1989 में शुरू की गई अधिग्रहण प्रक्रिया के बाद से श्रीनगर नगर निगम के नाम पर है और 1992 में कब्जा सौंप दिया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि रोशनी कानून को असंवैधानिक घोषित करने वाले डिवीजन बेंच के फैसले के बाद अब किसी स्थानीय अदालत के पास कोई अधिकार नहीं बचा है। हाईकोर्ट ने कहा कि जब मूल कानून ही शून्य हो जाता है, तो उस पर निर्मित हर संरचना शून्य हो जाती है।
हाईकोर्ट ने तीनों अपीलों को खारिज कर दिया और कहा कि रोशनी एक्ट के तहत मालिकाना अधिकार दिए जाने की कोई भी अर्जी स्वीकार नहीं की जा सकती।

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