Updated: Sat, 26 Jul 2025 09:19 AM (IST)
सांबा को वीरों की धरती कहा जाता है। कारगिल युद्ध में सांबा के लखविंदर सिंह ने देश के लिए अपनी जान दी। वे फौजियों के परिवार में जन्मे थे और बचपन से ही देश सेवा का जज्बा रखते थे। टाइगर हिल को फतह करने के दौरान वो शहीद हो गए। सरकार ने उनके नाम पर स्मारक और स्कूल बनवाए हैं जिससे युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है।
जागरण संवाददाता, सांबा। सांबा को वीरों की भूमि कहा गया है इसके लिए जिला के कई शूरवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। देश की आजादी से लेकर आज तक सभी छोटे-बड़े युद्धों में कई जवानों ने बलिदान दिया है।
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भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान भी कई शूरवीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध के दौरान सांबा के सीमावर्ती क्षेत्र के लाल बलिदानी सिपाही लखविंदर सिंह ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किए थे।
बलिदानी लखविंदर सिंह फौजियों के परिवार में जन्मे थे। उनका जन्म 15 मई, 1973 को सांबा सीमावर्ती गांव सारथी में हुआ था। शुरू की पढ़ाई गांव में ही पूरी की उसके बाद हायर सेकेंडरी की पढ़ाई घगवाल स्थित सरकारी स्कूल में शुरू की और 11वीं में पढ़ाई के दौरान वर्ष 1990 के अक्टूबर महीने में सेना में भर्ती हो गए।
बचपन से ही देश सेवा का जज्बा रखने वाले लखविंदर सिंह ने देश की कई जगहों पर अपनी सेवा दी। वर्ष 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान उनकी पलटन आठ सिख रेजीमेंट को भी लड़ाई के लिए उतारा गया। पलटन को टाइगर हिल फतह करने का आदेश मिला था।
30 जवान शहीद, 77 घायल.. टाइगर हिल पर सांबा के लाल ने भी पिया था शहादत का जाम, आज भी कहानी कर देती है मोटिवेट
30 जवान बलिदान और 77 जवान घायल
30 जवान बलिदान और 77 घायल
सेना की इस टुकड़ी ने छह जुलाई को टाइगर हिल फतह कर ली थी। टाइगर हिल फतह करने वाली रात को दुश्मनों ने फिर घात लगाकर हमला कर दिया, जिसमें सेना का एक अफसर, चार जेसीओ और 30 जवान बलिदान हो गए थे। इसके साथ ही चार अफसर, दो जेसीओ और 77 जवान घायल हुए थे।
इसमें लखविंदर सिंह ने भी शहादत का जाम पिया था। लखविंदर सिंह के पिता सशस्त्र सेना बल से बतौर इंस्पेक्टर सेवानिवृत्त हुए हैं। बलिदानी का भाई भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। बलिदानी के दो बेटे हैं। एक बेटा सेना में है, जबकि दूसरा किसी निजी कंपनी में कार्यरत है।
बलिदानी के नाम पर है चौराहा और स्कूल
सरकार और सेना की ओर से बलिदानी लखविंदर सिंह के नाम से एक स्मारक बनाया गया है। जिस स्कूल में बलिदानी ने अपनी पढ़ाई की थी, उस स्कूल को भी बलिदानी के नाम से रखा गया है।
इसके अलावा गांव की ओर जाने वाले चौक को भी लखविंदर सिंह चौक से ही जाना जाता है। गांव में बच्चे आज भी स्कूल में उनकी वीरता की कहानियां सुनते हैं और युवा उनसे प्रेरणा लेकर देशसेवा के लिए जाते हैं।
मेरे बेटे ने देश के लिए अपनी जान दी है यह हमारे लिए गर्व की बात है। बेटे के जाने का गम तो हमेशा रहेगा, परंतु देश ने कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया। मेरे दोनों बेटे सेना में थे और एक पोता भी सेना में सेवाएं दे रहा है। आगे भी हमारे परिवार और गांव के लोग सेना में जाने के लिए काफी उत्सुक हैं। हमारे अंदर देश की सेवा का जज्बा कूट-कूट कर भरा है।
-छंकार सिंह, बलिदानी के पिता
सांबा के स्थानीय निवासी सुखबिंदर सिंह सोनी कहते हैं कि हमारे गांव के बलिदानी युवा लखविंदर सिंह ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह हमारे गांव के लिए गर्व की बात है। हमारे गांव के युवा आज भी सेना एवं अर्धसैनिक बलों में जाने के लिए काफी उत्सुक हैं। नौजवान ऐसा मौका मिलने पर अवश्य जाने के लिए तैयार हैं।
सांबा को वीरों की भूमि कहा जाता है। जिला के कई शूरवीरों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। देश की आजादी से लेकर आज तक सभी छोटे बड़े युद्धों में कई जवानों ने बलिदान दिया है, जिसमें हमारे गांव के लखविंदर सिंह भी हैं। इन्होंने हमारे गांव व जिले का नाम रोशन किया है। यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है। -सुच्चा सिंह, स्थानीय निवासी
स्थानीय निवासी जूर सिंह कहते हैं कि सांबा जिले के गांवों के कई ऐसे नौजवान हैं, जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान देकर देश की सीमा की रक्षा की थी। हमें गर्व है कि हम ऐसे वीरों के गांव के रहने वाले हैं। हम हर वर्ष इनका बलिदान दिवस छह जुलाई को गांव में आयोजित करते हैं। हम बलिदानी की गाथा युवा पीढ़ी को बताते हैं, जिससे बच्चों और नौजवानों में देश प्रेम की भावना बढ़ती है।
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