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    गुज्जर-बक्करवाल सिर्फ वोट बैंक नहीं, अब किंग मेकर की स्थिति में; उमर-फारूक को सता रहा डर, समुदाय को साधने में लगे

    Updated: Thu, 18 Jan 2024 12:33 PM (IST)

    जम्मू कश्मीर में आबादी में तीसरा बड़ा हिस्सा होने के बावजूद गुज्जर-बक्करवाल समुदाय कल तक सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल होता रहा किंतु अब वह किंग मेकर की स्थिति में है। यह समुदाय जागरूक हो गया है इसीलिए नेशनल कान्फ्रेंस (नेकां) से दूरी बनाने लगा है। डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला दोनों ही इस समुदाय को साधने के लिए बेचैन नजर आने लगे हैं।

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    गुज्जर-बक्करवाल सिर्फ वोट बैंक नहीं, अब किंग मेकर की स्थिति में; उमर-फारूक को सता रहा डर

    राज्य ब्यूरो, जम्मू। Gujjar Bakkarwal Community in Jammu-Kashmir: जम्मू कश्मीर में बदले राजनीतिक परिदृश्य का असर अब जमीनी स्तर पर दिखने लगा है।

    प्रदेश की आबादी में तीसरा बड़ा हिस्सा होने के बावजूद गुज्जर-बक्करवाल समुदाय कल तक सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल होता रहा, किंतु अब वह किंग मेकर की स्थिति में है। यह समुदाय जागरूक हो गया है, इसीलिए नेशनल कान्फ्रेंस (नेकां) से दूरी बनाने लगा है।

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    गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को साधने में लगे उमर-फारूक

    स्थिति को भांपते हुए नेकां अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला दोनों ही इस समुदाय को साधने के लिए बेचैन नजर आने लगे हैं। यह वहीं, पार्टी है जो कल तक यह मानती थी कि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय हल (नेकां का चुनाव चिह्न) के आगे कुछ नहीं सोचता।

    जम्मू कश्मीर में कठुआ जिले के लखनपुर से लेकर कुपवाड़ा के करनाह तक विधानसभा की 30 सीटों पर गुज्जर-बक्करवाल समुदाय किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में निर्णायक है।

    नेकां में भारी होती वोटों की राजनीति

    यह समुदाय परंपरागत रूप से नेकां का समर्थक माना जाता रहा है। कांग्रेस व पीडीपी में कई गुज्जर नेता हैं और भाजपा में भी, किंतु, लेकिन वोटों की राजनीति में नेकां भारी रहती है। इसके अलावा गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के राजनीति में सक्रिय सभी प्रमुख चेहरे आपस में किसी न किसी तरीके से रिश्तेदार हैं। बीते डेढ़ दशक में इस समुदाय में नेकां का प्रभाव घटा है। बीते चार वर्ष में इसमें और कमी आई है।

    अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई नौ सीटें

    बता दें कि विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए अब नौ सीटें आरक्षित हो गई हैं। इसके बाद से नेकां समेत सियासी दलों में चिंता की लकीरें कुछ ज्यादा ही गहरी दिख रही हैं।

    पांच अगस्त, 2019 के बाद जिस तरह से जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों को राजनीतिक आरक्षण, वनाधिकार अधिनियम का लाभ और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाओं को लागू किया जा रहा है, उससे गुज्जर-बक्करवाल समुदाय नेकां, कांग्रेस और पीडीपी से खुलेआम सवाल करने लगा है।

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    उमर और फारूक ने गुज्जर-बक्करवाल सम्मेलन में किया स्वीकार

    इस सच्चाई को खुद उमर और फारूक ने जम्मू में गुज्जर-बक्करवाल सम्मेलन में स्वीकार कर चुके हैं कि अब इस समुदाय की किसी भी स्तर पर उपेक्षा नहीं की जा सकती। जम्मू कश्मीर में लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव भी कराए जाने की संभावना है।

    नेकां कार्यालय के बाहर खड़े युवक इम्तियाज चेची ने कहा कि इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि शेख अब्दुल्ला ने हमारे समुदाय के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन हमें राजनीतिक रूप से सशक्त तो वर्तमान की केंद्र सरकार ने ही बनाया है। उन्होंने कहा कि अगर हमें राजनीतिक आरक्षण नहीं मिलता तो हम आज भी राजनीतिक रूप से कमजोर होते और सिर्फ मतदान केंद्र की भीड़ के लिए रहते।

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