जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने की मांग खारिज, हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार किया
फाेरम ने कहा कि सरकार ने इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने पर दीपक मोहंती कमेटी का गठन किया था और कमेटी ने भी जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए इस्लामिक बैंकिंग की सुविधा देने की सिफारिश की थी लेकिन बाद में सरकार ने अपनी ही कमेटी की सिफारिश को लागू नहीं किया।

जम्मू, जेएनएफ : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने प्रदेश में इस्लामिक(शरीयत) बैंकिंग शुरू करने की मांग को ठुकराते हुए कहा है कि यह सरकार का नीतिगत फैसला है और हाईकोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही इसमें कोई दिशानिर्देश जारी कर सकता है।
हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने गैर सरकारी संस्था पीपुल्स फोरम की ओर से चार साल पहले दायर इस जनहित याचिका पर सुनवाई बंद करते हुए उक्त राय व्यक्त की। पीपुल्स फोरम ने अपनी जनहित याचिका में हाईकोर्ट को जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय को उचित निर्देश देने की मांग की थी।
फोरम ने अपनी जनहित याचिका में दीपक मोहंती कमेटी की सिफारिशों पर अमल करते हुए जम्मू-कश्मीर बैंक लिमिटेड समेत अन्य बैंकों में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने की मांग की थी। फोरम ने कहा कि जेके बैंक के चेयरमैन भी कई बार इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने की घोषणा कर चुके हैं। फाेरम ने कहा कि सरकार ने इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने पर दीपक मोहंती कमेटी का गठन किया था और कमेटी ने भी जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए इस्लामिक बैंकिंग की सुविधा देने की सिफारिश की थी लेकिन बाद में सरकार ने अपनी ही कमेटी की सिफारिश को लागू नहीं किया। इसलिए फोरम को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
फोरम ने दलील दी कि जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक है और पवित्र कुरान में ब्याज लेना हराम माना गया है। इसी तरह हिंदुओं में भी ब्राह्मणों व क्षत्रियों को ब्याज लेने की मनाही है। इस मामले में आरबीआई ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 2013 में भारत सरकार ने देश में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने पर आरबीआई की राय मांगी थी।
आरबीआई ने अंतर विभागीय समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने को नकार दिया। इसके बाद सरकार ने 2015 में दीपक मोहंती की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जिसने इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने की सिफारिश की लेकिन सरकार ने कमेटी की सिफारिश को लागू नहीं किया। इसके बाद सरकार ने 2017 में स्पष्ट किया कि भारत में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करना संभव नहीं। हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने पाया कि यह फैसला सरकार का नीतिगत फैसला था और हाईकोर्ट में इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
क्या है इस्लामिक बैंकिंग : इस्लामिक बैंकिंग वो व्यवस्था है जिसमें न पैसा जमा करवाने वालों को कोई ब्याज मिलता है और न ही यहां से कर्ज लेने वाले को कोई ब्याज देना पड़ता है। वास्तव में इसे सामुदायिक मदद के उद्देश्य से खोला जाता है। कोई भी संगठन, संस्था या व्यक्ति दूसरों की मदद करने की इच्छा से इसमें अपना पैसा जमा करवा सकता है। उसका पैसा बैंक बिना ब्याज जरूरतमंदों को कर्ज देता है।
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