Jammu Kashmir : पहले ट्यूशन से निकाला पढ़ाई का खर्च, श्रेया शर्मा को है अब उद्यमी बनने का जुनून
परिवार के सदस्यों से चर्चा करने के बाद मोमबत्तियां बनाने का काम शुरू करने का फैसला किया। इसमें उन्होंने किसी की भी सहायता नहीं ली। काम शुरू करते समय अपने आप को दूसरों से अलग साबित करने के लिए पर्यावरण हितैषी मोमबत्तियां बनाना शुरू की।

जम्मू, रोहित जंडियाल : समय के साथ युवाओं की सोच में भी बदलाव आ रहा है। युवा सरकारी नौकरी का इंतजार करने के बजाय आत्मनिर्भर बन दूसरों को रोजगार की राह दिखा रहे हैं। ऐसी ही एक युवती श्रेया शर्मा हैं। छोटी-सी उम्र में ही उनमें कुछ नया करने का जुनून है। पढ़ाई के साथ ही उन्होंने मोमबत्तियां बनाने का काम शुरू कर दिया। उनके इस काम की सराहना हो रही है और लोग मोमबत्तियां खरीदने के लिए आ भी रहे हैं।
सरवाल निवासी भावना शर्मा और शाम लाल शर्मा की छोटी बेटी श्रेया का जुनून कुछ बेहतर व अलग करने का है। स्कूल की पढ़ाई के दौरान परिवार की देखभाल करने वाली मां के संघर्ष को देख श्रेया ने तीन साल पहले महिला कालेज परेड में प्रवेश लिया और उसी समय ठान लिया था कि घरवालों पर बोझ नहीं, बल्कि उनकी ताकत बनना है। श्रेया ने कालेज में पढ़ाई के समय के बाद शाम को घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्हें जो भी रुपये मिलते थे, उससे अपना खर्च चलाती थीं और उन्हें भविष्य के लिए जोड़ती भी थीं। दो साल पहले कोरोना संक्रमण के मामले आने के बाद बच्चों को घर से ही पढ़ाया जाने लगा। इससे श्रेया को और समय मिला।
उन्होंने स्नातक अंतिम वर्ष में परीक्षा से पहले ट्यूशन के रुपयों से लघु उद्योग स्थापित करने का फैसला किया। परिवार के सदस्यों से चर्चा करने के बाद मोमबत्तियां बनाने का काम शुरू करने का फैसला किया। इसमें उन्होंने किसी की भी सहायता नहीं ली। काम शुरू करते समय अपने आप को दूसरों से अलग साबित करने के लिए पर्यावरण हितैषी मोमबत्तियां बनाना शुरू की। आम जगहों पर मोमबत्ती बनाने में पैराफिन वैक्स का इस्तेमाल होता है, लेकिन उन्होंने सोयावैक्स का इस्तेमाल किया। यह थोड़ा महंगा जरूर है, लेकिन यह मोमबत्ती सामान्य मोमबत्तियों की अपेक्षा दोगुना समय तक चलती हैं।
श्रेया का कहना है कि पढ़ाई के साथ-साथ काम करना आसान नहीं था। थोड़ी मुश्किलें तो जरूर आईं, लेकिन जब अच्छा रेस्पांस मिला तो मुश्किलें भूल गईं। उन्होंने कहा कि अपनी मां के संघर्ष को देखा है। उसी से उन्होंने सीख ली। अब वह खुद तो आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, लेकिन दूसरों को भी इसका रास्ता दिखाना चाहती हैं।
दस से 300 रुपये तक मिलती है मोमबत्ती : श्रेया जो मोमबत्तियां बनाती हैं, उनकी कीमत दस से लेकर तीन सौ रुपये तक है। इन मोमबत्तियों को सुगंधित भी बनाया हुआ है। उनका कहना है कि लोग कीमत नहीं, गुणवत्ता देखते हैं। वैसे भी जब कोई मोमबत्ती सामान्य मोमबत्ती के मुकाबले दोगुना चलती हो तो कीमत एक जैसी ही पड़़ जाती है।
प्राकृतिक हैं श्रेया के उत्पाद : इसी साल महिला कालेज परेड से आट्स विषय में ग्रेजुएशन करने वाली श्रेया का कहना है कि उनके सभी उत्पाद प्राकृतिक हैं। इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता। उनका सपना अपने इस लघु उद्योग को बढ़ाना है। कुछ महीनों में ही लोगों ने जो प्रतिक्रिया दी है, उससे काफी उत्साहित हूं। जम्मू हाट में प्रदर्शनी के दौरान भी लोगों ने काफी सराहा था।
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