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    जम्मू-कश्मीर में 50 जगह होगा पुतला दहन, उत्तर प्रदेश के रेहान बने भाइचारे की मिसाल

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 06:00 AM (IST)

    जम्मू-कश्मीर में इस बार दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा। 50 कस्बों में पुतले जलाए जाएंगे जिनमें श्रीनगर भी शामिल है। उत्तर प्रदेश के मुस्लिम कारीगर रेहान जम्मू में पुतले बना रहे हैं। यह पर्व भाईचारे और एकता का संदेश देता है क्योंकि मुस्लिम कारीगर ही रावण के पुतले तैयार करते हैं। रेहान 45 साल से यह काम कर रहे हैं और उनके साथ 50 कारीगर भी शामिल हैं।

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    जम्मू-कश्मीर में 50 जगह होगा पुतला दहन, उत्तर प्रदेश के रेहान बने भाइचारे की मिसाल

    जागरण संवाददाता, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में इस बार दशहरा का पर्व जम्मू संभाग सहित घाटी में भी धूमधाम से मनाने की तैयारी है। प्रदेश में 50 कस्बों में पुतलों का दहन किया जाएगा, जिनमें श्रीनगर भी शामिल है। वहीं, उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी रेहान जम्मू में पुतलों का निर्माण कर भाइचारे व धार्मिक सौहार्द का संदेश दे रहे हैं।

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    प्रदेश में दशहरा उत्सव सिर्फ बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि देश को हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और देश की एकता-अखंडता का संदेश भी देता है। क्योंकि, जिन पुतलों को भगवान श्रीराम आग के हवाले करते हैं, उन्हें मुस्लिम कारीगरों द्वारा ही तैयार करते हैं।

    उत्तर प्रदेश के मेरठ के गांव मैनापुट्ठी के मुस्लिम समुदाय के लोग इसमें विशेष योगदान देते हैं। समुदाय की तीसरी पीढ़ी के लोग इन दिनों गीता भवन में दशहरे की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस वर्ष पुंछ, राजौरी, सुंदरबनी, अखनूर, श्रीनगर, ऊधमपुर, रियासी, नगरोटा, डोडा, गांधीनगर, पलौड़ा, सैनिक कालोनी, छन्नी हिम्मत, बाड़ी ब्राह्मणा, बिश्नाह, आरएस पुरा, आदि के कई स्थानों पर होने वाले दशहरे के पुतले बनाने का काम अंतिम दौर में चल रहा है।

    69 वर्षीय मोहम्मद रेहान, जो जम्मू कश्मीर में 50 स्थानों पर होने वाले दशहरे के लिए पुतले बनाने में जुटे हुए हैं। 45 वर्ष से जम्मू में आकर बना रहे पुतले रेहान ने बताया कि वह 45 वर्ष से जम्मू में आकर रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के पुतले बनाते आ रहे हैं। उनके गांव मैनापुट्ठी के 50 के करीब कलाकार, कारीगर आदि आते हैं।

    इनमें 20 के करीब मुस्लिम समुदाय के हैं। जब हम इतनी दूर से जम्मू आते हैं। हमारे मन में कभी यह विचार नहीं आता कि कौन किस धर्म, किस जाति का है। सभी एक ही लक्ष्य के साथ काम करते हैं कि महीने भर में उन्हें पूरे जम्मू कश्मीर के लिए करीब 50 शहरों के लिए पुतले बनाने होते हैं। हर कलाकार की कोशिश होती है कि हर वर्ष पिछले वर्ष से कुछ बेहतर हो। हमारे काम की गुणवत्ता ही है कि लंबे समय से हमारे ही गांव के लोग इस परंपरा को निभा रहे है।

    15 वर्ष से मेरठ से जम्मू आकर पुतले बनाता हूं। इन दिनों का बेसब्री से इंतजार रहता है। यह पुतले बनाते हुए तो राम लीला का हर दृश्य भी याद है। करीब महीना भर काम चलता है और पुतले बनाते हुए भी अक्सर राम लीला की कोई न कोई बात होती ही रहती है। पिता भी यही काम किया करते थे। दादा सराजुदीन भी जम्मू में आकर पुतले बनाते थे। पूरा वर्ष तो खेतीबाड़ी आदि करते हैं, लेकिन इन दिनों में जम्मू आना ही होता है। इसके चलते घर के दूसरे काम भी समय से निपटा लेते हैं। - फैजल खान

    पुतले बनाते 10 वर्ष ही हुए, लेकिन इससे पहले मेरे पिता और दादा भी पुतले बनाने यहां आते थे। जब से जम्मू आ रहा हूं, भगवान श्रीराम के बारे में काफी कुछ समझने का मौका मिला है। बड़ी बात यह है कि यहां काम करते हुए लगता ही नहीं कि अपने घर से दूर आकर काम कर रहे हैं। हमने कभी यह नहीं सोचा कि हम मुस्लिम होकर यह काम क्यूं करें।  - मुकीम खान

    पिता पहली बार 1958 में पुतले बनाने जम्मू आए थे। उसके बाद परिवार के लगभग सभी सदस्य यहां आते ही रहे हैं। अच्छा लगता है। ऐसा लगता है भगवान ने उन्हें यह जिम्मेवारी सौंपी हुई है। यहां के लोग भी काफी अच्छे हैं। इस दौरान जम्मू में घूमना भी हो जाता है। मुझे अपने बुजुर्गों से यह कारीगिरी विरासत में मिली है जिसे मै निभाने का पूरा प्रयास कर रहा हूं।   - अनुज कश्यप

    यहां करीब दो महीने का काम होता है। जब हम सब लोग यहां काम कर रहे होते हैं तो ऐसा लगता है कि भगवान श्री राम जी का ही कोई काम कर रहे है। सभी पूरी निष्ठा से काम करते हैं। गांव में तो सभी दूर-दूर अपने-अपने काम में लगे रहते हैं लेकिन यहां सभी को एक साथ काम करने का मौका मिलता है, तो अच्छा लगता है। यहां हमें काफी आदर और सत्कार मिलता है, इसलिए हर साल यहां आने का इंतजार रहता है।   - वंश ठाकुर