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    Jammu Kashmir: गलत व्यक्ति को एक साल से अधिक समय तक हिरासत में रखा, हाई कोर्ट ने अधिकारियों को लगाई फटकार

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 02:05 AM (IST)

    जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने अनंतनाग में इम्तियाज अहमद गनी की गलत हिरासत को रद कर दिया। उन्हें इम्तियाज अहमद वानी समझकर हिरासत में लिया गया था। अदालत ने पाया कि जिला मजिस्ट्रेट ने गलत प्राथमिकी के आधार पर हिरासत का आदेश दिया जो गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित थी। न्यायालय ने इसे विवेक का प्रयोग न करना करार दिया और गनी को रिहा करने का आदेश दिया।

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    हाई कोर्ट ने लगाई फटकार। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने अनंतनाग जिले में अपने हमनाम के बजाय जेल में बंद एक व्यक्ति की हिरासत को रद कर दिया है।

    दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के रहने वाले इम्तियाज अहमद गनी को गलती से एक मिलते-जुलते नाम वाला व्यक्ति समझकर हिरासत में ले लिया गया था। न्यायमूर्ति मोक्षा खजूरिया काजमी की पीठ ने उनकी हिरासत को रद कर दिया।

    अनंतनाग के जिला मजिस्ट्रेट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और विस्फोटक अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी का हवाला देते हुए अप्रैल 2024 में गनी को एहतियात के तौर पर हिरासत में रखा था।

    अधिकारियों ने तर्क दिया था कि 2024 के आम चुनावों के दौरान व्यवस्था बनाए रखने के लिए उसको हिरासत में रखना जरूरी था।

    रिकॉर्ड की समीक्षा करने पर उच्च न्यायालय ने पाया कि प्राथमिकी गनी से संबंधित नहीं, बल्कि इम्तियाज अहमद वानी से संबंधित थी। अदालत ने कहा कि इस गलती के कारण हिरासत अवैध और अमान्य हो गई।

    विवेक का नहीं किया गया इस्तेमाल

    गनी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस काजमी ने हिरासत में लेने वालों की बेशर्मी से गलती का बचाव करने के लिए फटकार लगाई और कहा कि यह आदेश स्पष्ट रूप से विवेक का प्रयोग न करने को दर्शाता है।

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    अदालत ने 3 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड (हिरासत के आधार) को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकारी किसी अन्य व्यक्ति को हिरासत में लेने का इरादा रखते थे लेकिन गलत पहचान के कारण बंदी को उसकी जगह हिरासत में ले लिया गया है।

    अदालत ने कहा कि हिरासत रिकॉर्ड, जो विवादित आदेश का आधार है, यह दर्शाता है कि हिरासत प्राधिकारी विवादित आदेश पारित करते समय अपने समक्ष प्रस्तुत सामग्री पर विचार करने में विफल रहे हैं और यह चूक विवादित आदेश की जड़ तक जाती है।

    अदालत ने फैसला सुनाया कि हिरासत प्राधिकारी द्वारा विवादित आदेश जारी करते समय विवेक का प्रयोग न करना रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसलिए यह कार्रवाई कानून की नजर में मान्य नहीं हो सकती। अदालत ने गनी को जम्मू की कोट भलवाल जेल से तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया।