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    जम्मू-कश्मीर प्रवेश द्वार को पहचान देने वाला किला खो चुका है अपना गौरवमय इतिहास

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 19 Nov 2018 11:18 AM (IST)

    जसरोटिया वंश के राजा लखनपाल सिंह ने यह किला बनाया था। वह अंतिम राजवंश शासक थे। 15वीं सदी में जसरोटा के राजा संग्राम देव के छह बेटों में से एक लखनदेव थे।

    जम्मू-कश्मीर प्रवेश द्वार को पहचान देने वाला किला खो चुका है अपना गौरवमय इतिहास

    कठुआ, जेएनएन। राजा-महाराजाओं की गौरव गाथाओं का बखान करने वाले किले ही उस राज्य को पहचान दिलाते हैं। ये किले वहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित तो करते ही हैं और उन्हें इससे जुड़े इतिहास को जानने की जिज्ञासा भी पैदा करते हैं। लेकिन लखनपुर किले के बारे में जानने का कोई प्रयास नहीं करता है। जम्मू-कश्मीर प्रवेश द्वार को देश भर में पहचान दिलाने वाला लखनपुर किला आज अपना गौरवमय इतिहास खो चुका है। लखनपुर बस स्टेंड के साथ पुरानी बनावट से बना यह किला और उस पर लहराता राष्ट्रीय ध्वज राज्य में हर रोज प्रवेश करने वाले लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित तो करता है परंतु इसकी पहचान मां काली मंदिर के रूप में ही रह गई है। जहां तक की स्थानीय लोग भी इसे मंदिर के नाम से भी पूकारते हैं।

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    यह बात सब जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक नजारों और देवी-देवताओं की धरती होने के पौराणिक प्रमाण मिलने से देश भर में अपनी विशेष पहचान रखता है। यही नहीं यह राज्य पूर्व राजाओं के गौरवमयी इतिहास से भी भरा पड़ा है। यहां पर हर 10 किलोमीटर की दूरी तय करने पर आपको राज्य में जगह-जगह इतिहास के अंश भी दिखेंगे। प्रवेश द्वार लखनपुर का नाम हाइवे किनारे बने ऐतिहासक किले के नाम पर है, बहुत कम लोगों को पता होगा। सरकारी उदासीनता का ही नतीजा है कि लखनपुर देश भर में सिर्फ मुख्य प्रवेश द्वार से जाना जाता है न कि इस किले से।

    जसरोटिया वंश के राजा लखनपाल ने बनाया था यह किला

    जसरोटिया वंश के राजा लखनपाल सिंह ने यह किला बनाया था। वह अंतिम राजवंश शासक थे। 15वीं सदी में जसरोटा के राजा संग्राम देव के छह बेटों में से एक लखनदेव थे। मुगलों से पूरा क्षेत्र जीतने के बाद अन्य राजाओं और भाइयों की तरह जहां लखनदेव को यह क्षेत्र मिला था और उन्होंने अपना जहां किला स्थापित किया। उसी के नाम से लखनपुर पड़ा है। राजा के निधन के बाद किला कई दशकों तक बंद रहा।

    मेहता परिवार को होते थे इच्छाधारी नाग-नागिन के दर्शन

    हीरानगर के निवासी राजेंद्र सिंह ने बताया कि मेहता परिवार के बुजुर्गोँ को इस महल में इच्छाधारी नाग नागिन के दर्शन होते थे। उनके बुजुर्ग किले में इच्छाधारी नाग-नागिन के दर्शन करने और उन्हें दूध पिलाने आते थे। किले में बने कुएं में गिरने से एक स्थानीय बच्चे की मौत होने के बाद इसे बंद कर दिया गया। बाहर से किला अभी भी पूरी तरह पुरानी स्थिति में है। कहीं भी दीवारें खंडहर होती नहीं दिखती है, लेकिन इसकी पहचान इतिहास के पन्नों में खोकर रह गई है। स्थानीय युवक जोगेंद्र सिंह बंदराल हर साल स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराता हैं। मौजूदा समय में किले के सामने वाले हिस्से में दुकानें बन चुकी हैैं। अब यह किला दुकानों चला गया है जिसके कारण पर्यटकों की इस ओर नजर भी नहीं जाती।

    अब किले वाली माता के नाम से है पहचान

    किले में प्राचीन काली माता की मूर्ति भी हुआ करती थी। किला बंद होने के बाद मंदिर में इक्का-दुक्का लोग ही जाया करते थे। तीन दशक पहले बाबा पूर्ण गिरी जी महाराज ने किले में प्रवेश किया और माता काली की मूर्ति को किले से बाहर भव्य मंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठापित कराया। अब किले की पहचान किले वाली माता से हो गई है। नवरात्र पर इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु माथा टेकने तो आते हैं, लेकिन किले की ओर कोई नहीं जाता। मंदिर के भीतर भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर भी है।

    • - राज्य के मुख्य प्रवेश द्वार के इस किले को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक जब लखनपुर में प्रवेश करें तो यह किला उनके आकर्षण का केंद्र बन सकता है। अब तक किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। पर्यटन विभाग ने एक बार इसका रखरखाव किया था। उसके बाद नहीं। -प्रेम मेहता, स्थानीय निवासी
    • लखनपुर का नाम राजा लखनदेव के नाम से पड़ा है। यह किला राज्य के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहला प्राचीन किला है। इतिहास को जानने की आज भी हर कोई जिज्ञासा रखता है। ऐसे में सरकार को इस किले को संरक्षित करना चाहिए। पर्यटक स्थल के रूप में इस किले व आसपास के क्षेत्र को विकसित किया जाना चाहिए। राज्य में प्रवेश करने वाले पर्यटक इस किले को देखें, इसके इतिहास को जानें। इससे लखनपुर की विशेषता और बढ़ेगी। - सुशील गुप्ता, एडवोकेट, कठुआ