Jammu-Sialkot Railway Line: पुराने सियालकोट रेलमार्ग पर आरएसपुरा तक ट्राम दौड़ाने की कवायद
खान ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन की तस्वीरों को परखें और जानें कि वह कैसा होता था। उसका रंगरूप कैसा था। उसी नक्शे और डिजाइन पर इसे दोबारा बनाया जाए ताकि इसकी खोई हुई गरिमा को कायम किया सके।
जम्मू, जागरण संवाददाता: कहते हैं इतिहास करवट बदलता है। कुछ ऐसा ही जम्मू में रेलवे के इतिहास को लेकर होने वाला है। देश की आजादी से पहले पाकिस्तान के सियालकोट से जम्मू में बिक्रम चौक तक आने वाली रेलगाड़ी से जुड़े इतिहास को जीवंत करने के लिए प्रशासन पहल करने जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित आरएसपुरा से बिक्रम चौक तक ट्राम या मिनी ट्रेन चलाने की योजना बनाई गई है।
यह रेलगाड़ी मुसाफिरों को आजादी से पूर्व के उन लम्हों की याद दिलाएगी, जब टे्रन सियालकोट से जम्मू आया करती थी। शुक्रवार को उपराज्यपाल के सलाहकार बशीर अहमद खान ने बिक्रम चौक स्थित ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन साइट का दौरा किया। यहां देश के बंटवारे से पहले रेलगाड़ी आया करती थी। खान ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वह इस साइट की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें।
प्रशासन उन सभी विकल्पों पर गौर कर रहा है, ताकि यहां पर एक ट्राम, मिनी ट्रेन बिक्रम चौक से आरएसपुरा के बीच शुरू हो। उन्होंने कहा कि यह रेलवे स्टेशन एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसकी काफी अहमियत है। खान ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन की तस्वीरों को परखें और जानें कि वह कैसा होता था। उसका रंगरूप कैसा था। उसी नक्शे और डिजाइन पर इसे दोबारा बनाया जाए, ताकि इसकी खोई हुई गरिमा को कायम किया सके। उन्होंने इसके लिए रेलवे के तकनीकी अधिकारियों को शामिल कर डीपीआर तैयार के निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि यह पुराना रेलवे स्टेशन जो अब इतिहास के पन्नों में सिमट चुका है, को दोबारा बनाया जाएगा क्योंकि युवा वर्ग में काफी चाहत है कि बंटवारे से पहले के जम्मू को जानें। बंटवारे से पहले भाप के इंजन से रेल चलती थी, जो सियालकोट से होती हुई आरएसपुरा पहुंची थी और फिर इसका दूसरा पड़ाव बिक्रम चौक स्टेशन होता था। इस मौके पर पर्यटन निदेशक राज कुमार कटोच, मुबारक मंडी हेरिटेज सोसायटी की डायरेक्टर दीपिका शर्मा और रेलवे के कई अधिकारी मौजूद थे।
राज्य में पहली ट्रेन के इतिहास को जिंदा करना आसान नहीं: पाकिस्तान के सियालकोट में छोटी लाइन अभी भी लाहौर रेल लाइन को जोड़ती है, लेकिन भारत में आरएसपुरा से लेकर बलोल पुल के 30 किलोमीटर रेलवे ट्रैक के पास पुंछ के रिफ्यूजी बस गए और यह लाइन ठप पड़ी है। वर्ष 2006 में पुराने रेलवे स्टेशन के पास जम्मू कश्मीर कला केंद्र की इमारत बन गई है। आरएसपुरा से नैरो गैज या फिर ट्राम भी शुरू की जाए तो इसमें काफी चुनौतियां हैं। आरएसपुरा में जिस जगह से कभी ट्रेन गुजरा करती थी, वहां पहले शुगर मिल हुआ करती थी, लेकिन बंटवारे के बाद से शुगर मिल के इस इलाके में वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को बसाया गया। इलाके के शहरीकरण के कारण अब पुराने रास्ते पर फिर से रेल लाइन बिछाना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। जम्मू के पुराने रेलवे स्टेशन, जहां आधी भूमि पर स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (एसआरटीसी) का यार्ड बन गया है और आधे में कला केंद्र की भव्य इमारत।
डोगरा सदर सभा के अध्यक्ष गुलचैन सिंह चाढ़क का कहना है अगर राज्य सरकार चाहती तो इस रेलवे स्टेशन को पुरातत्व विभाग को देकर एक विरासत के रूप में संरक्षित कर सकती थी। कला केंद्र के सचिव डा. अरविंदर सिंह अमन का कहना है कि इस यार्ड और इसके पीछे काफी जमीन खाली पड़ी है, जिस पर पुराने रेलवे स्टेशन को जीवंत किया जा सकता है। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने पर बताया कि यह परियोजना काफी चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि सतवारी, मीरां साहिब के इलाके में शहरीकरण ने पुराने रूट के अस्तित्व को मिटा दिया है। अगर मनोरंजन के लिए ट्रेन शुरू करनी है तो इसके लिए ट्राम ही ऐसा विकल्प है जो ट्रैफिक की भीड़भाड़ से गुजर सकती है। आरएसपुरा रेलवे स्टेशन की इमारत दोनों देशों की यादों को संजोए हुए मूक साक्षी के रूप में अभी भी खड़ी है।
कश्मीर घाटी तक रेल पहुंचाने का हो चुका था सर्वे: वर्ष 1971 में पठानकोट से जम्मू के बीच ब्राडगेज रेलमार्ग का निर्माण हुआ। बंटवारे के बाद जम्मू में वर्ष 1972 में पहली ट्रेन पहुंची। वर्ष 1902 में महाराजा प्रताप सिंह ने कश्मीर घाटी में रेलवे लाइन पहुंचाने के लिए सर्वे करवाया था। पहला सर्वे एबटाबाद जो इस समय पाकिस्तान में है, से श्रीनगर के लिए हुआ। दूसरा सर्वे जम्मू से श्रीनगर बाया बनिहाल के लिए दो रूट पर हुआ, जिसमें पहला नैरो गाज लाइन और दूसरा इलेक्ट्रिक रेल लाइन के लिए जम्मू से श्रीनगर बाया बनिहाल के लिए हुआ। आर्थिक दिक्कतों के कारण यह परियोजना फलीभूत नहीं हो पाई।
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