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Jammu Kashmir : संस्कारशाला: समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों को दूर करना बहुत जरूरी

इस बुराई के खिलाफ महाराष्ट्र की समाज सुधारक सावित्री बाई फुले जी ने काफी काम किया लेकिन आज भी यह समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। कहानी का पात्र रोहन और मीता और उनके माता पिता यह संकल्प लेते हैं।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 07:46 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 07:46 PM (IST)
प्रमोद कुमार श्रीवास्तव, प्रिंसिपल मॉडल एकेडमी, बीसी रोड, जम्मू

जम्मू, जागरण संवाददाता। दैनिक जागरण के बुधवार के अंक में प्रकाशित संस्कारशाला की कहानी ‘हम तो चले घूमने’ हमें स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है। कहानी में कोरोना के कारण उपजे हालत और उसमें हमारे दायित्व की बात तो की ही गई है। इसमें ऐसी कुरीतियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है, जो बड़ी पहले समाप्त हो जानी चाहिए थीं। खासकर पति की मौत के बाद जिन महिलाओं के बाल काट वृंदावन छोड़ दिया जाता है।

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इस बुराई के खिलाफ महाराष्ट्र की समाज सुधारक सावित्री बाई फुले जी ने काफी काम किया लेकिन आज भी यह समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। कहानी का पात्र रोहन और मीता और उनके माता पिता यह संकल्प लेते हैं कि वह अगली बार जब वहां आएंगे तो पूरी तरह से इन महिलाओं के लिए काम करने के लिए आएंगे। कहानी के माध्यम से एक तरह से यह प्रयास किया गया है कि आप जिस क्षेत्र में भी जाएं वहां की समस्याओं को समझें और उन्हें मिटाने के लिए आगे आने का प्रयास करें।

किसी भी समाज में विविध और विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। वे विभिन्न धर्म, जाति, रंग, लिंग और विभिन्न विश्वासों को मानने वाले हो सकते हैं। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे समाज से सामंजस्य बिठाए और बिना किसी भेदभाव के साथ रहें। आदर्श स्थिति तो तब मानी जाएगी जब समाज के सभी वर्गों में बराबरी, आजादी और भाईचारा हो।

हालांकि पूरी दुनिया का मानव समाज यह दिखाता है कि कई तरह के शोषणकारी कृत्य व्याप्त हैं। हर जगह, यह शोषणकारी सोच समाज में मानव की सर्वोच्चता, सत्ता और शक्ति की लालच में जन्म लेती है।जिस तरह से अफगानिस्तान में तालिवान के आते ही वहां महिलाओं का शोषण शुरू हो गया है।19वीं सदी का वह समय जब शिक्षा सिर्फ उच्च लोगों तक ही सीमित थी और बाल विवाह, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और अशिक्षा समाज की जड़ों में गहराई तक व्याप्त थी। ऐसे समय में महिलाओं और पिछड़ों की शिक्षा के लिए संघर्ष किया महान भारतीय सामाजिक सुधारक, शिक्षाविद और कवियत्री सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ने। सावित्री बाई को आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षिका के रूप में भी जाना जाता है। सावित्रीबाई ने ना सिर्फ महिलाओं और पिछड़ों पुरुषों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोले बल्कि उन्होंने समाज में फैली बाल विवाह, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के खिलाफ ही जमकर संघर्ष किया।

दैनिक जागरण में प्रकाशित इस कहानी में सावित्री बाई फुले जी के बारे में पढ़ा। जिन्हें यह नापसंद था कि विधवाओं के बाल काट दिए जाएं। उन्होंने बाल काटने वालों का एक जुलूस पुणे में निकाला था, जहां उन्होंने तय किया था कि वे कभी विधवाओं के बाल नहीं काटेंगे। सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका थी। जिनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले की खंडाला तहसील के नायगांव में एक पिछड़े वर्ग के परिवार में हुआ था। उस समय शिक्षा सिर्फ सम्पन्न लोगों तक ही सीमित थी। ऐसे में सावित्री बाई भी शिक्षा से वंचित ही रही। इसके अलावा उस समय बाल विवाह होना आम बात थी। सावित्रीबाई का विवाह भी महज 9 वर्ष की उम्र में ज्योतिराव फुले के साथ हो गया था। उस समय ज्योतिराव फुले की उम्र 12 वर्ष थी। ज्योतिराव पांचवीं तक पढ़े हुए थे। लेकिन अपने परिवार के पुश्तैनी फूलों के व्यवसाय में सहयोग करने के कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था।

शादी के बाद ज्योतिराव ने सावित्री बाई को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। हालांकि उस दौर में महिलाओं के लिए शिक्षा हासिल करना किसी पाप से कम नहीं था। ऐसे में जब लोगों को पता चला कि ज्योतिराव अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पढ़ा रहे हैं, तो लोगों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया। हालांकि ज्योतिराव ने लोगों के विरोध की बिलकुल परवाह नहीं की और सावित्री बाई को अक्षरों का ज्ञान दिया। बाद में अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद उन्होंने दर्जनों स्कूल खोले यहां तक की रात्रि विद्यालय की भी शुरूआत की। उनका एक ही उद्देश्य था कि लोग जागरूक हों और सामाजिक बुराइयों का अंत हो।

सावित्रीबाई ने कई कुरीतियों के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। उस समय विधवा महिलाओं का सिर मूंडने की प्रथा थी। जिसके विरोध में सावित्रीबाई ने बाल काटने वाले नाइयों के साथ मिलकर इसके खिलाफ आंदोलन चलाया। इसके अलावा सावित्री बाई ने सती प्रथा के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में भी खूब काम किया। ज्योतिबा और सावित्री बाई ने छुआछूत और जाति प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी मिलकर संघर्ष किया।

प्रमोद कुमार श्रीवास्तव, प्रिंसिपल मॉडल एकेडमी, बीसी रोड, जम्मू 


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