जम्मू : खामोश गांव की आवाज बनी सेना, यहां मूकबधिर होने की वंशानुगत बीमारी से पीड़ित हैं लोग
इस बीमारी से परेशान होकर कुछ परिवार पलायन कर पंजाब व अन्य जगहों पर चले गए हैं। करीब 20 मूकबधिरों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2014 में इंडियन काउंसिल आफ मे ...और पढ़ें

जम्मू, विवेक सिंह : जम्मू कश्मीर के डोडा जिले के एक ‘खामोश’ गांव की गलियों में भी अब बातों के कहकहे लगेंगे। ये बातें इशारों में होंगी। गांव के लोगों में खुशी है कि भारतीय सेना ने उनका हाथ थाम लिया है। उनकी चिंता दूर हो जाएगी कि उनकी पीढ़ी की जिंदगी गुमसुम रहने में नहीं गुजरेगी। कई पीढ़ियों से मूकबधिर होने का दंश झेल रहे इन इन परिवारों के बच्चे अब इशारों में अपनी बात सरकार और देश के हर व्यक्ति तक पहुंचा सकेंगे। उन्हें सांकेतिक भाषा सिखाने के लिए गांव में स्कूल खुलेगा और हास्टल भी होगा।
डोडा के गंदोह तहसील के भलेसा ब्लाक का एक गांव है-डडकाई। भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स ने इस गांव को गोद ले लिया है। वर्तमान में इस बीमारी से ग्रसित करीब 80 लोग न तो बोल सकते हैं और न ही उनमें सुनने की क्षमता है। एक परिवार के सात बच्चों में से सिर्फ एक ही बोल व सुन सकता है। मां-बाप तनाव में हैं कि उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा। गर्भवती महिलाओं को चिंता खाये जा रही है कि उनकी कोख से जन्म लेने वाला बच्चा बोल पाएगा भी या नहीं।

गुज्जरों का यह गांव मिनी कश्मीर कहे जाने वाले भद्रवाह से करीब 105 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इस गांव में 105 परिवार हैं। इनमें से 55 परिवारों का एक या इससे अधिक सदस्य मूकबधिर है। इनमें 41 महिलाएं और तीन से 15 साल तक के 30 बच्चे हैं। गांव में ऐसी बीमारी होने से इस गांव में लोग शादियां करने से कतराते हैं। जिन परिवारों में मूकबधिर हैं, उनकी शादी करना भी संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि वंशानुगत बीमारी होने के चलते लोग इस गांव में शादी से कतराते हैं।
डडकाई गांव में वर्ष 1901 में मिला था पहला मामला : डडकाई गांव में मूकबधिर बच्चा पैदा होने का पहला मामला वर्ष 1901 में सामने आया था। वर्ष 1990 में यहां 46 मूकबधिर थे। इस बीमारी से परेशान होकर कुछ परिवार पलायन कर पंजाब व अन्य जगहों पर चले गए हैं। करीब 20 मूकबधिरों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2014 में इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च टीम ने गांव का दौरा कर लोगों की स्क्र्रींनग की थी। तब 10 साल से नीचे के 33 बच्चों में यह बीमारी पाई गई थी। 39 बड़े-बूढ़े भी मूक बधिर पाए गए थे। कारण खोजने के लिए देश के विशेषज्ञों की कई टीमें दौरे कर चुकी हैं, लेकिन अब तक बीमारी को रोकने का उपाय नहीं मिला है।
पंजाब गए सात सदस्यों के परिवार में छह मूकबधिर : गांव के इब्राहिम के परिवार में छह सदस्य मूकबधिर है। वह अपने सात बच्चों के साथ पलायन कर पंजाब के बटाला के र्गोंवदसर चला गया है। उसके परिवार चार लड़कियां व दो लड़के मूक बधिर हैं।

विशेषज्ञ यह कहते हैं : मूकबधिर होने की इस बीमारी के बारे में डाक्टरों का कहना है कि यह एक जेनेटिक बीमारी है। दशकों पहले इस गांव में मूकबधिर थे। आपस में शादी करने के कारण यह बीमारी अगली पीढ़ियों में भी फैल गई। जवाहरलाल नेहरू सेंटर फार एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च ने बीमारी के लिए आटोफरलीन जीन को जिम्मेवार ठहराया है।
सेना ने सांकेतिक भाषा को सिखाना शुरू किया : राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन की स्वास्थ्य टीम एक दिन पहले ही डडकई गांव में पहुंची। उन्होंने पीड़ितों के स्वास्थ्य की जांच की और उनसे इशारों में बातचीत भी की। सेना ने मूकबधिरों को इशारों की भाषा सिखाना शुरू किया गया है। जल्द मूकबधिर बच्चों के लिए होस्टल की सुविधा वाला स्कूल बनाया जाएगा। गांव के दो अध्यापकों को हैदराबाद व सिकंदराबाद में विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया है। ये अध्यापक बच्चों को उनके घरों में पढ़ा रहे हैं। मूकबधिरों को दो माह का कोर्स कराया जाएगा। कुछ लड़कियों को सिलाई सिखाई गई है। स्थानीय महिला हुसन बीबी की तीन मूक बधिर बेटियों आठ वर्षीय असरान बानो, 12 वर्षीय रेशमा व 23 वर्षीय आएशा बानो को सेना ने सुनने के यंत्र दिए हैं। अब उन्हें सिलाई सिखाई जाएगी। जनवरी महीने में सेना ने गांव के दस बच्चों को 17-17 हजार रुपये वाले सुनने के यंत्र दिए थे।

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डडकाई गांव के लंबे समय तक सरपंच रहे एवं वर्तमान में बीडीसी चेयरमैन मोहम्मद हनीफ ने कहा कि अब तक सरकारों मूक-बधिर लोगों के लिए एक स्कूल तक नही दे सकीं। कुछ परिवार पलायन कर चुके हैं। बहुत रिसर्च होने के बाद भी कोई फायदा नही हुआ। पंजाब गए इब्राहिम व उसकी पत्नी ठीक थे, लेकिन इसके बाद भी सात में से उनके छह बच्चे मूक बधिर हैं। यह गांव 21वीं सदी में भी विकास से कोसों दूर हैं। अब मोदी सरकार से उम्मीदें हैं। सेना हमारी बहुत मदद कर रही है।
- इस बीमारी के बारे में शोध चल रही है। कुछ ऐसे परिवारों में भी मूक बधिर बच्चे हुए हैं, जिनके माता-पिता ठीक हैं। बाहर से शादी करने के बाद कुछ परिवारों के घर जन्मे बच्चों में यह बीमारी नहीं है। अभी भी कोशिश जारी है कि इस बीमारी पर काबू पाकर आने वाली पीढ़ी के भविष्य को बेहतर बनाया जाए। इस बारे में लगातार प्रयास जारी हैं। -डा. याकूब, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डोडा

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