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    विभाजन की त्रासदी: 'इस मालगाड़ी में बैठे लोगों को काट दो', जब अटारी बॉर्डर पर नजदीक से देखी मौत; बाल-बाल बची जान

    Updated: Tue, 13 Aug 2024 03:27 PM (IST)

    आजादी के घाव 77 साल बाद भी रोहतक के सुभाष नगर के निवासी सतनाम दास को ताजा हो जाते हैं। वह आजादी की त्रासदी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनका गांव आजादी से पहले पाकिस्तान के झंग जिले में था। बंटवारे के समय जब वे भारत आए तो उन्होंने बहन-बेटियों और बहुओं को बचाने के लिए कुएं में जिंदा धकेल दिया थाष

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    सन् 1947 में त्रासदी का एक चित्र (जागरण फाइल फोटो)

    अरुण शर्मा, रोहतक। 7 दशक बीत गए। बंटवारे ने गहरे जख्म दिए। 14 अगस्त 1947 को भारत को बांटकर दो टुकड़े कर दिए गए। महज 11 साल का था जब पाकिस्तान से आया। विभाजन का दर्द झेला। थोड़ा बड़ा हुआ तो बंटवारे का दर्द समझ में आया।

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    इज्जत बचाने के लिए बहन-बेटियों को गांव वालों ने कुएं में धकेल दिया था। रोहतक के सुभाष नगर के रहने वाले करीब 88 वर्षीय सतनाम दास ने बताया कि काफी कुछ मुझे याद है और पिता भी अक्सर इस दर्द की बात करते थे। पाकिस्तान के झंग जिला स्थित वासुस्थान गांव में रहते थे।

    करीब तीन हजार की आबादी थी गांव की। पिताजी गोविंदराम घर पर थे। तभी पड़ोसी रामदीन आते हैं और कहते हैं कि तुरंत तैयारी कर लो, गांव पर हमला होने वाला है।

    मां खेमबाई से कहा, देरी मत करो झोले में जो सामान आ जाए वह भरो। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पूर्व की आहट गांव वालों को पहले ही लग गई थी।

    गांव के निकट ही मुस्लिम बहुल गांवों में हमले के लिए पंचायत हुई थी। पूरे गांव में हिंदू आबादी अधिक थी। फिर भी आठ-दस गांवों ने हमला बोल दिया। गांव के लोग अपनी बहन, बेटियों और बहुओं की इज्जत बचाने के लिए गांव में मंदिर के पास कुएं में जिंदा धकेलना शुरू कर दिया। कुछ की मौत भी हो गई।

    ट्रेनों को रुकवाकर करवाते थे जांच

    पिता जी घर में रखी थोड़ी चांदी, दस्तावेज व घरेलू दवाएं लेकर चलने लगे। गांव के करीब दो सौ लोग रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ रहे थे। ट्रक से हम लोग लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे।

    तभी रास्ते में गांव के महंत को शौच आया। जैसे ही उतरकर गए तो उनके टुकड़े कर दिए गए। हम लोगों पर भी हमला हुआ। किसी तरह से वहां से निकले। सात से आठ जगह कुछ लोग आकर गाड़ी रुकवाते और जांच करते।

    उन्होंने सभी से आभूषण छिना लिए। रेलवे स्टेशन पर पूरी रात भय, भूख-प्यास के बीच बिताई। सुबह करीब पांच बजे सेना आई। मालगाड़ी में सभी लोग चढ़ गए।

    पिता गोविंदराम, मां खेमबाई, पांच भाई व दो बहनें भी साथ थीं। किसी के खून से पैर सने हुए थे तो किसी के हाथ व पेट में हमले के निशान। अटारी बार्डर तक माल गाड़ी पहुंची। जांच के नाम पर माल गाड़ी रोक ली और कहा कि इस गाड़ी में बैठे सभी लोगों को काट दो।

    मालगाड़ी पाकिस्तानियों ने घेर ली थी

    हजारों की संख्या में पाकिस्तानी मौजूद थे। सतनाम दास बताते हैं कि पिता ने बताया था कि हम सभी मारे जाते। पाकिस्तानियों ने हमारी मालगाड़ी को घेर लिया था।

    तलवारें, फरसे, जैली, भाले लहराए जा रहे थे। वह सभी हथियार खून से सने हुए थे। तीन घंटे तक मालगाड़ी आगे नहीं बढ़ी तो सेना ने कहा कि आपकी पांच गाड़ी भारत की सीमा में हैं। फिर पाकिस्तानी भी सेना की मंशा भांप गए, तब मालगाड़ी आगे बढ़ी। अमृतसर पहुंचे।

    कुछ चांदी थी हमारे पास उससे आटा लिया। जालंधर में लगे शिविर में दो-तीन दिन बाद पहुंचे। वहां हैजा की बीमारी फैली तो मां खेमबाई का निधन हो गया। बाद में पानीपत और फिर रोहतक में पहुंचे।

    चमेली मार्केट में किराए पर रहे। बाद में घर खरीदा। सतनाम ने अपने वासुस्थान गांव की यादें बताते हुए कहा कि दोस्त राधेश्याम के साथ स्कूल जाते समय खजूर तोड़ना, पड़ोसी मोहनदास के घर खेलना, सेवा हलवाई के यहां से मिठाई खाना, मंदिर की घंटी सब याद है।

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