राष्ट्रीय औसत से कम है जम्मू-कश्मीर में प्रजनन दर, जानें क्या हैं इसके कारण, आने वाले वर्षों में समाज पर पड़ेगा गहरा असर
जम्मू-कश्मीर में प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से कम है शहरी क्षेत्रों में 1.2% और ग्रामीण क्षेत्रों में 1.5% है। विशेषज्ञ कम प्रजनन दर को लेकर चिंतित हैं क्योंकि इससे भविष्य में वृद्ध जनसंख्या बढ़ सकती है। बेरोजगारी शहरीकरण और देर से शादी करने की वजह से प्रजनन दर में कमी आई है। महिलाएं करियर को प्राथमिकता दे रही हैं और 30 वर्ष की आयु के बाद शादी कर रही हैं।

रोहित जंडियाल, जागरण, जम्मू। इसे परिवार कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों का असर कहें या फिर बेरोजगारी, अधिक आयु में शादी का होना, जम्मू-कश्मीर में प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है।
यहां पर परिवार अब हम दो हमारे दो के स्थान पर हम दो हमारा एक ही नीति पर चल रहे हैं। शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में प्रजनन दर कम बनी हुई है। हालांकि विशेषज्ञ कम प्रजनन दर पर संतुष्ट भी हैं, लेकिन भविष्य को लेकर चिंतित भी हैं।
परिवार कल्याण विभाग तथा नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर में शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर मात्र 1.2 फीसद रह गई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 1.5 फीसद है। जम्मू कश्मीर की कुल प्रजनन दर 1.4 है।
यह दर पिछले पांच वर्ष से बरकरार है। लद्दाख की स्थिति भी कमोवश ऐसी ही है। लद्दाख की प्रजनन दर मात्र 1.3 फीसद रह गई है, जो जम्मू कश्मीर से भी कम है। यहां पर शहरी क्षेत्रों 1.4 फीसद तो ग्रामीण क्षेत्रों में 1.3 फीसद रह गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार कम हो रही प्रजनन दर जनसंख्या के लिए तो अच्छी है, लेकिन भविष्य के लिए चुनौती भी बन सकती है। कश्मीर में परिवार कल्याण विभाग में विशेषज्ञ डा. उमर नजीर का कहना है कि प्रजनन दर उच्च और निम्न दोनों ही दरें चुनौतियां और अवसर प्रस्तुत करती हैं।
जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2004 में प्रजनन दर 2.4 थी जो कि मात्र डेढ़ दशक में 1.4 होकर रह गई। इसके सामाजिक-आर्थिक कारण हैं जिनमें शिक्षा, शहरीकरण, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य सेवा और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुंच शामिल हैं। सभी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जम्मू-कश्मीर में कम प्रजनन दर के कई कारण हैं जिनमें से एक है तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण और परिवारों की घटती आय। युवा रोजगार की तलाश में शहरी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं और अपने बड़े परिवारों को पीछे छोड़ रहे हैं जो बच्चों की देखभाल में ज़रूरी मदद कर सकते थे।
अकेले रहने वाला, बिना किसी सहारे वाला, कामकाजी जोड़ा बड़ा परिवार नहीं चाहता। इसकी एक कीमत चुकानी पड़ती है। एक और महत्वपूर्ण कारण ऊची बेरोज़गारी दर है। आने वाले वषों में कम प्रजनन दर चिंता का कारण बन सकती है। 2050 तक जम्मू-कश्मीर की वृद्ध जनसंख्या बच्चों की संख्या से अधिक हो जाएगी क्योंकि कुल जन्म दर बहुत कम है तथा कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में और भी गिरावट आएगी।
वरिष्ठ गायनाकालजोजिस्ट और आइवीएफ पर काम करने वाली डा. मनीषा भगत का कहना है कि कम प्रजनन दर एक बड़ा चिंता का कारण है। जम्मू-कश्मीर में तीस की उम्र से अधिक में शादी करने वाली लड़कियों की संख्या बहुत अधिक है।
अपना करियर संवारने के लिए यह शादी के बाद भी कुछ वर्ष के लिए संतान नहीं चाहती। बाद में इनके लिए मां बनना भी मुश्किल हो पाता है। बहुत ही लड़कियां चालीस के आसपास आइवीएफ के लिए आती है। उनका कहना है कि कम प्रजनन दर समाज के लिए अच्छी नहीं है।
उन्होंने 28 साल की उम्र से पहले बच्चे पैदा करने के महत्व पर ज़ोर दिया और बताया कि इसके बाद अंडों की गुणवत्ता और संख्या कम हो जाती है। पीसीओएस जैसी समस्याएं भी हैं जो काफ़ी महिलाओं को प्रभावित करती हैं। पीसीओएस प्रजनन क्षमता के लिए अच्छी खबर नहीं है और समाज में जीवनशैली में बदलाव के कारण पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।
जम्मू विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र विभाग की एचओडी प्रो. विश्वरक्षा का कहना है कि कम प्रजनन दर के कई कारण हैं। आज कर हर लड़की अपना बेहतर भविष्य चाहती है। अभिभावक भी चाहते हैं कि उनकी बेटी पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बने। इस कारण अधिक आयु वर्ग में शादी करती है। एकल परिवार होने के कारण ज्यादा बच्चों को संभालने की स्थिति में नहीं होती।
बेरोजगारी भी एक कारण है। यही नहीं समाज में एक प्रचलन शादी न करने और शादी के बाद बच्चे पैदा नहीं करने का भी चला। हालांकि इसमें अब बदलाव आना शुरू हुआ है। अगर कम प्रजनन दर रहती है तो आने वाले वषों में इसका असर हो सकता है।
सबसे अधिक उम्र में करती हैं शादी
जम्मू-कश्मीर में लड़कियां औसतन 26 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में शादी करती हैं। यह देश में सबसे अधिक है। भारत में बेटियों की शादी की औसत आयु 22.1 वर्ष है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. मनीषा भगत का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में तो यहां शादी लड़कियां तीस वर्ष के बाद ही करती हैं।
वहीं डाक्टरों का कहना है कि तनाव भी इसका एक कारण है। हालांकि यह सीधे तौर पर बांझपन का कारण नहीं बनता लेकिन यह महिला की गर्भधारण करने की क्षमता में काफ़ी हद तक बाधा डाल सकता है। तनाव कोर्टिसोल जैसे हार्मोन के स्राव को बढ़ावा देता हैए जो एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे प्रजनन हार्मोन के संतुलन को बिगाड़ सकता है।
यह असंतुलन मासिक धर्म चक्र और अंडों की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त दीर्घकालिक तनाव गर्भधारण में लगने वाले समय को बढ़ा सकता है और आईवीएफ जैसे प्रजनन उपचारों की सफलता दर को कम कर सकता है।
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