J&K News: आखिरी सांसे गिन रही है हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, किनारा कर रहे हैं साथी संगी, पाकिस्तान ने भी झाड़ा पल्ला
जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद का प्रतीक रही हुर्रियत कांफ्रेंस अब अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। केंद्र सरकार की कड़ी नीतियों और पाकिस्तान के समर्थन वापस लेने से हुर्रियत के नेता अब आजादी की बात तक नहीं करते। कई घटक दल और ट्रेड यूनियनें हुर्रियत से किनारा कर रही हैं। हुर्रियत का गठन 1993 में हुआ था लेकिन अब यह पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गई है।

नवीन नवाज, जम्मू। कश्मीर में अलगाववाद और आजादी के नारे का प्रतीक रही हुर्रियत कान्फ्रेंस अब मृत्यु शैया पर नजर आने लगी है। आम कश्मीरियों का आजादी व अलगाववाद के नारे से मोहभंग होने और केंद्र सरकार की आतंकवाद व अलगाववाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति के चले हुर्रियत के सभी प्रमुख नेता अब आजादी की बात तक नहीं करते।
पाकिस्तान ने भी हुर्रियत से पल्ला झाड़ लिया है। स्थिति यह है कि हुर्रियत कान्फ्रेंस के साथ जुड़ने में कभी अपनी शान समझने वाली विभिन्न ट्रेड यूनियनें ही नहीं, हुर्रियत के अपने घटक दल भी उससे किनारा कर खुद को पूरी तरह से अलगाववादी एजेंडे से अलग करते हुए भारतीय संविधान और भारत की एकता अखंडता में आस्था रखने वाला संगठन और नागरिक घोषित कर रहे हैं।
हुर्रियत कान्फ्रेंस का गठन 31 जुलाई 1993 में कश्मीर में जमाते इस्लामी, पीपुल्स कान्फ्रेंस, पीपुल्स लीग, अवामी एक्शन कमेटी, अंजुमन-ए-शरिया-ए-शिया, पीपुल्स लीग, मुस्लिम कान्फ्रेंस समेत 23 संगठनों ने मिलकर किया था। बाद में अन्य कई अलगाववादी संगठन इसका हिस्सा बने।
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वर्ष 2003 में हुर्रियत में विभाजन हो गया, कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत को कट्टरपंथी व मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की अगुआई वाले गुट को उदारवादी हुर्रियत कान्फ्रेंस का नाम मिला। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह कहना कि कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद अपनी अंतिम सांस ले रहा है, महज एक राजनीतिक जुमला नहीं है।
बीते कुछ दिनों में ही लगभग आधा दर्जन संगठनों ने खुद को आल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस से अलग घोषित किया है। इन संगठनों ने हुर्रियत की कश्मीर नीतियों पर भी सवाल उठाया और कहा कि इसके पास कोई एजेंडा या रोडमैप नहीं है। उनका यह बयान मायने रखता है, क्योंकि हुर्रियत को न सिर्फ भारत के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दुष्प्रचार के चलते कश्मीर में अलगाववादियों की आवाज माना जाता रहा है।
पाकिस्तान से प्रभावित रहा एजेंडा
कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि अगर आप बीते 25 वर्ष के दौरान कश्मीर के राजनीतिक घटनाक्रम का आकलन करें तो पाएंगे कि हुर्रियत ने हमेशा कश्मीरियों की भावनाओं की राजनीति की है। उसका एजेंडा हमेशा पाकिस्तान से प्रभावित रहा। आम कश्मीरी उससे निराश रहा है। यही कारण है कि आज हुर्रियत मृत्यु शैय्या पर है।
विफल रही हुर्रियत
हुर्रियत कान्फ्रेंस के प्रमुख नेताओं में शामिल रहे एक पूर्व आतंकी कमांडर ने अपना नाम न छापने पर कहा कि मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि हमने आजादी के नाम पर बंदूक उठाई थी, लेकिन आज अगर कश्मीर के कुछ एक युवाओं के हाथ में बंदूक है तो वह आजादी के नारे से कम वैश्विक इस्लामिक जिहाद की विचारधारा से ज्यादा प्रभावित हैं। इसके अलावा आम लोगों की उम्मीदों पर पूरा उतरने में हुर्रियत विफल रही है।
कभी ऐसी थी हुर्रियत
कभी हुर्रियत के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस्लामिक देशों के प्रमुख संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी) ने भी हुर्रियत को एक पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान कर रखा था। ओआइसी बैठक में हुर्रियत नेताओं को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता था। हुर्रियत के एक इशारे पर कश्मीर में सामान्य जनजीवन ठप हो जाता रहा है। पांच अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर में विशेषकर कश्मीर में आने वाला प्रत्येक अमेरिकी और यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल हुर्रियत नेताओं से जरूर मुलाकात करता था। कश्मीर में कानून व्यवस्था का संकट पैदा होने पर केंद्र सरकार भी हुर्रियत के समक्ष नतमस्तक होती नजर आती थी।
अब हुर्रियत की यह है स्थिति
कश्मीर मामलों के जानकार अनिल भट्ट ने कहा कि पांच अगस्त 2019 के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई है। आज हुर्रियत कश्मीर में पूरी तरह से आप्रसंगिक नजर आती है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने मौजूदा केंद्र सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर कश्मीर को एक अंतरराष्ट्रीय विवाद मानना बंद कर दिया है। इसके अलावा जिस राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति से केंद्र सरकार ने कश्मीर में अलगाववादियों के तंत्र पर चोट की है, अधिकांश हुर्रियत नेताओं को जेल पहुंचाया है, उससे हुर्रियत की कमर टूट चुकी है। आम कश्मीरियों का भी हुर्रियत से मोहभंग हो चुका है।
राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत दी जाए
मीरवाइज हुर्रियत कान्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कहा कि हुर्रियत कान्फ्रेंस एक साझा मंच है, इससे जो संगठन अलग हुए हैं या नाता तोड़ने का एलान कर रहे हैं, आम कश्मीरी उनकी हकीकत जानता है। हमने तो हमेशा कश्मीरियों के हक की बात की है। हमने तो यही कहा है कि कश्मीरियों को उनका हक दिया जाए, यह एक मानवीय मुद्दा है, इसे हल करना जरूरी है। अगर हमें अपनी राजनीतिक गतिविधियों की इजाजत दी जाए तो पता चल जाएगा कि हुर्रियत कितनी प्रासंगिक या आप्रसंगिक है।

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