कश्मीरी हिंदू संस्कृति का अहम पर्व है हेरथ, शिवरात्रि से एक दिन पूर्व पारंपरिक रीति-रिवाज से शुरू होता आयोजन
कश्मीरी पंडितों में हेरत पर्व त्रियोदशी पर यानी महाशिव रात्रि से एक पूर्व शुरू होती है। इस दिन शाम के समय कश्मीरी पंडितों के घरों में पूजा स्थल सज जाते हैं। कश्मीरी पंडित लोग वटुकनाथ (भगवान शिव-पार्वती) के नाम से घड़े स्थापित करते हैं।

जम्मू, जागरण संवाददाता : शिवरात्रि से एक दिन पूर्व शुरू होने वाले हेरथ पर्व कश्मीरी हिंदू समाज का अहम त्योहार है। इसकी तैयारियां कश्मीरी पंडितों ने लगभग पूरी कर ली है। सोमवार शाम हर कश्मीरी पंडित के घर पर विधिवत तरीके से शिवपूजा आरंभ हो जाएगी जो अगले तीन दिनों तक चलेगी। चौथे दिन यानी 4 मार्च को पूजा सामग्री के फूल आदि प्रवाह किए जाएंगे, जिसे कश्मीरी पंडित लोग परमूजन कहते हैं। हेरथ पर्व का मतलब भी शिव पूजा है। यह शिवरात्रि की ही हिस्सा है, लेकिन कश्मीरी पंडित समाज में हेरथ पर्व रीति रिवाज से गुजर कर मनाया जाता है। शिव-पार्वती की पूजा अर्चना होती है और शिव बारात सजाई जाती है।
घर की होती है साफ सफाई : दरअसल पर्व मनाने की तैयारियां कुछ दिन पहले ही आरंभ हो जाती है। कश्मीरी पंडित परिवार अपने घर की अच्छी तरह से साफ सफाई करता है। कपड़े धाेये जाते हैं। वहीं लड़कियां इसी समय मायके जाती हैं और वहां पर अपने बाल धोती हैं। बाद में परिवार की ओर से लड़कियों को सौगात दी जाती है, लेकिन यह सब क्रिया हेरथ पर्व शुरू होने से पहले पहले होती है।
शिवरात्रि से एक दिन पूर्व शुरू होता है हेरथ पर्व : कश्मीरी पंडितों में हेरत पर्व त्रियोदशी पर यानी महाशिव रात्रि से एक पूर्व शुरू होती है। इस दिन शाम के समय कश्मीरी पंडितों के घरों में पूजा स्थल सज जाते हैं। कश्मीरी पंडित लोग वटुकनाथ (भगवान शिव-पार्वती) के नाम से घड़े स्थापित करते हैं। इसके अलावा कलश, चार कटोरियां स्थापित की जाती हैं जोकि शिव बारात का प्रतीक होती हैं। जबकि दो बर्तन जिसे डुलजी कहते हैं, शिव बारात में भैरो के रूप में होते हैं। पहली रात शिव पार्वती की तीन चार घंटे पूजा की जाती है। सभी बर्तनों में अखरोट भरे जाते हैं और पानी डाला जाता है। अगली सुबह पानी बदला जाता है। जबकि रात को फिर से पूजा अर्चना चलती है। इस तरह से तीन रात शिव पार्वती पूजा चलती है।
हेरथ खर्च : पहली पूजा के बाद अगली सुबह कश्मीरी पंडितों अपने घर का युवा पीढ़ी को कुछ न कुछ खर्च देते हैं, जिसे हेरथ खर्च कहा जाता है। इस पैसे से यह लोग अपने लिए जरूरी सामान खरीद लेते हैं। युवा लोग खास कर याद भी दिलाते हैं कि उनका हेरथ खर्च न भुलाया जाए।
चौथे दिन होता है परमूजन : पमूजन का मतलब प्रवाह से है। चाैथे दिन पूजा सामग्री में शामिल सभी बर्तनों को कश्मीरी पंडित लोग नदियों, नहरों के किनारे ले जाते हैं। विधिवत तरीके से यहां शिव-पार्वती की पूजा होती है। बर्तनों में रखे अखरोट साफ किए जाते हैं। फूल आदि को पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। पूजा अर्चना के बाद जब घर वापिस पहुंचते हैं तो घर की महिलाएं पूछती हैं। ऐसे में जवाब दिया जाता है कि वटुकनाथ सुख शांति, खुशहाली लेकर आए हैं।
अखरोट प्रसाद के तौर पर लोगों में बांटे जाते हैं : बाद में लोगों में अखरोट प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं। जबकि घर की लड़कियों को कश्मीरी पंडित अखरोट के अलावा चावल की रोटी भी प्रसाद के तौर पर देते हैं। कश्मीरी पंडित कलाकार किंग सी भारती का कहना है कि हेरत का पर्व कश्मीरी पंडितों में बहुत खास है। जब घाटी में थे तो कश्मीरी पंडित परमूजन का कार्यक्रम वहां नदियों पर करते थे। अब ऐसा वातावरण नहीं है, लेकिन कश्मीरी पंडितों की दिल से तमन्ना है कि घाटी वापसी हो और हम सब लोग अपने रीति रिवाज से जुड़ सकें।
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