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    GI Tags in J&K: पश्मीना शॉल से लेकर जम्मू के स्पेशल राजमा तक इन चीजों ने हासिल किया जीआई टैग, देश-विदेश में रहती काफी डिमांड

    By Deepak SaxenaEdited By: Deepak Saxena
    Updated: Wed, 17 Jan 2024 07:05 PM (IST)

    भारत में जीआई टैग इन दिनों चर्चाओं का विषय बना हुआ है। हर राज्य अपने क्षेत्र की खास चीजों को जीआई टैग में शामिल करने में जुटी हुई है। वहीं जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में खूबसूरत वादियों के साथ अपनी इन चीजों के लिए भी देश विदेश में काफी मशहूर है। तो आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर की उन खास चीजों के बारे में जिन्हें जीआई टैग (GI Tag) मिला हुआ है।

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    पश्मीना शॉल से लेकर जम्मू के स्पेशल राजमा तक इन चीजों ने हासिल किया जीआई टैग।

    डिजिटल डेस्क, जम्मू। ओडिशा की लाल चीटियों वाली चटनी को जीआई टैग मिलने के बाद ये काफी चर्चाओं में आ गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में किस उत्पाद को जीआई टैग मिला है और ये जीआई टैग क्या होता है तो आइए जानते हैं इस आर्टिकल में...

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    जम्मू-कश्मीर अपनी खूबसूरत वादियों के साथ ही कुछ अपनी विशिष्ट चीजों के लिए भी देश-विदेश में काफी पॉपुलर हैं। आखिर ऐसी कौन सी चीजें है जिनको लेकर जम्मू-कश्मीर को जीआई टैग मिला हुआ है।

    जम्मू-कश्मीर में किसे मिला है GI टैग

    जम्मू-कश्मीर में कुछ विशेष जगहों के विशिष्ट उत्पादों को जीआई टैग मिला हुआ है। जोकि कुछ इस प्रकार हैं।

    डोडा जिले के प्रसिद्ध भद्रवाह राजमा

    भद्रवाह राजमा को लाल सेम भी कहा जाता है। ये राजमा विशेष स्वाद के साथ ही वहां का मुख्य खाद्य पदार्थ भी है, साथ ही इस क्षेत्र का एक सांस्कृतिक प्रतीक भी है।

    रामबन सुलाई शहद

    दूसरा जीआई टैग रामबन जिले में सुलाई के शहर को मिला है। इस शहर का स्वाद और जैविक गुणवत्ता इसे यूनीक बनाती है। साथ ही इस शहर को साल 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ को अपनी यात्रा के दौरान भेंट किया था।

    कश्मीरी पश्मीना शॉल

    कश्मीर के पश्मीना शॉल को भी जीआई टैग मिल चुका है। इस शॉल की देश-विदेश में काफी मांग है। इस शॉल की कीमत एक हजार रुपये से शुरू होती है। ये शॉल हाथों से तैयार किया जाता है, वहीं इसे बनाने में एक से दो साल का वक्त लग जाता है।

    कश्मीरी केसर

    जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी केसर को जीआई टैग प्रदान किया गया है। ये कश्मीरी केसर का उपयोग पारंपरिक व्यंजनों में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के लिए भी किया जाता है।

    क्या होता है जीआई टैग (GI Tag)

    GI Tag की फुल फॉर्म Geographical Indication होता है, जिसका मतलब होता है भौगोलिक संकेत के आधार पर उस विशिष्ट जगह या उत्पाद की पहचान करना। इन उत्पादों में उस भौगोलिक स्थिति का परिदृश्य झलकता है। भारत में वर्तमान में 400 से अधिक वस्तुएं GI Tag वाली मौजूद हैं।

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    पहला GI Tag कब और किसे मिला था?

    भारत में सबसे पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को साल 2004 में मिला था। यहां की चाय अपनी खूबसूरत पत्तियों और स्वाद के लिए जानी जाती हैं। भारत में सबसे पहले दार्जिलिंग की चाय को जीआई टैग मिला था।

    1999 में बना अधिनियम

    संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया गया था। जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया। इसको 2003 में लागू किया गया। इसके बाद भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट को जीआई टैग देने का सिलसिला शुरू हो गया था।

    कैसे मिलता है GI Tag

    किसी प्रॉडक्ट के लिए GI Tag हासिल करने के लिए आवेदन करना पड़ता है। इसके लिए वहां उस उत्पाद को बनाने वाली जो एसोसिएशन होती है वो अप्लाई कर सकती है। इसके अलावा कोई कलेक्टिव बॉडी अप्लाई कर सकती है। सरकारी स्तर पर भी आवेदन किया जा सकता है।

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