जम्मू से 26 KM दूर ऐसा गांव जहां गूंजते हैं देशभक्ति के तराने, बॉर्डर टूरिज्म से लेकर श्रीराम के दर्शन; पर्यटकों के लिए हर सुविधाएं उपलब्ध
जम्मू के सुचेतगढ़ के निकट घराना वेटलैंड प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा स्थल है। सर्दियों में साइबेरिया से लगभग 20 हजार पक्षी यहां आते हैं, जिनमें सरपट्टी ...और पढ़ें
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जम्मू से 26 KM दूर ऐसा गांव जहा गूंजते हैं देशभक्ति के तराने। फोटो जागरण
ललित कुमार, जम्मू। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा छोटा सा गांव सुचेतगढ़। सीमा पर खेतों के साथ हुई तारबंदी, हर तरफ सीमा प्रहरियों की चौकस निगाहें और गूंजते देशभक्ति के तराने बताते हैं कि सच में यह गांव कुछ खास है।
जीरो लाइन पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के थिरकते कदम और बुलंद हौसले को दर्शाती रिट्रीट सेरेमनी ने इस सीमावर्ती क्षेत्र को बार्डर टूरिज्म के रूप में आकर्षण का एक नया केंद्र बना दिया है।
अब जब देश-विदेश से पर्यटक सीमा तक पहुंच रहे हैं तो आधारभूत ढांचे का विकास भी हुआ है और सुविधाएं भी बढ़ी हैं। जम्मू से करीब 26 किलोमीटर दूर सुचेतगढ़ गांव आज जम्मू के मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।
अमृतसर के वाघा बार्डर की तर्ज पर बीएसएफ की रिट्रीट सेरेमनी आरंभ होते ही इस गांव का माहौल और जीवंत हो गया है। भारत माता के जयघोष, पर्यटकों का भांगड़ा और देशभक्ति के गीतों की गूंज सीमा पार पाकिस्तानी रेंजर्स की चौकियों तक सुनाई देती है।
माता वैष्णो देवी की यात्रा और जम्मू में आने वाले पर्यटक अब सीमा पर इस अनोखे अनुभव का लाभ उठाने पहुंचने लगे हैं। यह जम्मू का एक ऐसा स्थल है, जहां दो देशों की सीमा का रोमांच, भगवान श्री राम के दर्शनों के साथ दुनिया भर से आने वाले पक्षियों को निहारने का एकसाथ अवसर मिलता है।
यहां पर्यटकों के लिए रेस्त्रां से लेकर सभी प्रबंध हैं। पर्यटन विभाग की ओर से सैलानियों के लिए जम्मू से सुचेतगढ़ के लिए बस सेवा भी शुरू की गई है, जो मात्र 35 रुपये प्रति यात्री को सुचेतगढ़ ले जाती है।
एक पेड़ ऐसा... जो आधा भारत में, आधा पाकिस्तान में
सुचेतगढ़ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक पेड़ ऐसा है, जो आधा पाकिस्तान और आधा भारत में है। पीपल का यह पेड़ सीमा सुरक्षा बल की आक्ट्राय पोस्ट पर है। पेड़ के मोटे तने के बीच वाले हिस्से में चूने से किया गया सफेद और गेरुआ रंग तो एक जैसा है, लेकिन पाकिस्तान की तरफ वाले हिस्से में रंग हल्का है जबकि भारत वाले हिस्से में दिखाई देने वाला रंग गहरा है।
यह पेड़ भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा को चिह्नित करने वाले एक प्राकृतिक स्तंभ के रूप में भी कार्य करता है। मूल रूप से यहां सीमा स्तंभ संख्या 918 हुआ करता था। समय के साथ, पीपल का एक छोटा पौधा स्तंभ के अंदर से उग आया और धीरे-धीरे पूरे कंक्रीट के खंभे को उसने अपने तने में समाहित कर लिया।
बीएसएफ और पाकिस्तान रेंजर्स ने पेड़ को काटने के बजाय, उसके तने पर ही स्तंभ संख्या 918 को रंग से चिह्नित कर दिया। इस प्रकार, पेड़ का आधा हिस्सा भारत में और आधा पाकिस्तान में है। यह अनूठा पेड़ भी पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर को कभी छू नहीं पाए पाकिस्तानी गोले
सुचेतगढ़ में ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर भी है, जो जम्मू शहर में स्थित रघुनाथ मंदिर का पहला रूप है, जिसे 1837 में महाराजा गुलाब सिंह ने बनवाया था। यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित है और भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले सीमा पार से भी लोग यहां आते थे।
बाद में जम्मू शहर में स्थित भव्य रघुनाथ मंदिर का निर्माण भी महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू कराया था। अयोध्या में राम मंदिर के भूमिपूजन के लिए जम्मू-कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यहां की मिट्टी भी भेजी गई थी। मंदिर में भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं।
इसी मंदिर के सामने भगवान हनुमान का मंदिर भी है। आपरेशन सिंदूर और इससे पहले भी कई बार पाकिस्तानी रेंजर्स की ओर दागे गोले इस मंदिर को छू भी नहीं पाए। स्थानीय लोगों की इस मंदिर को लेकर अटूट आस्था है।
सर्दियों में जुटते हैं साइबेरिया से आने वाले 20 हजार प्रवासी पक्षी
सुचेतगढ़ के निकट स्थित घराना वेटलैंड प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा जगह है। जम्मू से यह करीब 30 किलोमीटर दूर है। करीब 44 एकड़ (350 कनाल) संरक्षित भूमि पर फैले वेटलैंड में प्रवासी पक्षियों को बेहद नजदीक से देखा जा सकता है।
हर वर्ष सर्दियों में यहां पर साइबेरिया से आने वाले 20 हजार प्रवासी पक्षियों का मेला सा लगता है, जिसने पर्यटकों का आकर्षण अपनी ओर किया है। इसमें सरपट्टी सवन सबसे ज्यादा प्रमुख है, जो करीब छह हजार की संख्या में यहां आते हैं।
इसके अलावा ग्रे लाग गूज, पिंटेल, कामन टील, हेरान, कई तरह के क्रेन, वूली स्टाक, जल कौवे आते हैं। घराना वेटलैंड में घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए खास सुविधाएं भी जुटाई गई है।
यहां पर इको घराना स्टाप नाम से एक भवन बनाया गया है, जहां पर पर्यटकों को परिंदों की भरपूर जानकारी मिलती है, वही लोगों के विश्राम के लिए भी यहां व्यवस्था है।

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