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    Jammu : अपने ही दोस्त के फर्जी दस्तावेज तैयार कर ऋण लेने वाले राजेंद्र को आठ साल की सजा

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Fri, 24 Sep 2021 09:18 AM (IST)

    पड़ताल की तो पता चला कि यह वाहन उसके नाम पर पंजीकृत है और रूट परमिट ट्रांसफर करने के नाम पर जो फार्म भरवाए गए थे उनके आधार पर आरोपित ने कारपोरेशन से ऋण लिया जिसमें तरसेम लाल नामक व्यक्ति गारंटर था जिसे वह नहीं जानता।

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    आरोपित ने बिना उसकी जानकारी से धोखाधड़ी करके उसके नाम पर वाहन खरीदा और ऋण लिया।

    जम्मू, जेएनएफ : धोखाधड़ी करके व किसी और के नाम पर दस्तावेज तैयार करके स्टेट फाइनेंशियल कारपोरेशन से ऋण लेने के आरोप में भ्रष्टाचार निरोधक विशेष न्यायालय ने राजेंद्र सिंह को आठ साल के कारावास व एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। कोर्ट ने इस मामले में कारपोरेशन के तत्कालीन चीफ मैनेजर तरसेम लाल व सुभाष चंद्र चोपड़ा, तत्कालीन असिस्टेंट मैनेजर ट्रांसपोर्ट सुदर्शन कुमार बाली व तत्कालीन सीनियर असिस्टेंट मूल राज को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया है।

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    केस के मुताबिक मंगत राम ने शिकायत दर्ज करवाई थी जिसमें उसने कहा कि वह पूर्व सैनिक है और वर्ष 1988 में काका राम से पार्टनरशिप करके एक बस खरीदी लेकिन मुनाफा न होने पर उन्होंने 1989 में बस उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति को बेच दी। बस बेचने के बाद उसने रूट परमिट आरटीओ कार्यालय में जमा करवा दिया। वर्ष 1991 में राजेंद्र सिंह राजा दलाल के साथ उसके पास आया और रूट परमिट खरीदने की बात की। दोनों में सौदा हो गया।

    रूट परमिट ट्रांसफर करवाने के नाम पर राजेंद्र सिंह ने उससे कई फार्म पर दस्तावेज करवाए और फोटो भी ली। मंगत राम ने कहा कि 13 साल बाद उसे स्टेट फाइनेंशियल कारपोरेशन की ओर से एक पत्र आया जिसमें कहा गया कि उन्होंने जेके02बी-2172 की जो गाड़ी खरीदने के लिए ऋण लिया था, उसका 15,49,495 रुपये का भुगतान बकाया है।

    मंगत राम के मुताबिक उसने कभी यह वाहन नहीं खरीदा था और न ही कारपोरेशन से कोई ऋण लिया। जब उसने पड़ताल की तो पता चला कि यह वाहन उसके नाम पर पंजीकृत है और रूट परमिट ट्रांसफर करने के नाम पर जो फार्म भरवाए गए थे, उनके आधार पर आरोपित ने कारपोरेशन से ऋण लिया जिसमें तरसेम लाल नामक व्यक्ति गारंटर था जिसे वह नहीं जानता। मंगत राम ने कहा कि आरोपित ने बिना उसकी जानकारी से धोखाधड़ी करके उसके नाम पर वाहन खरीदा और ऋण लिया।

    कोर्ट ने राजेंद्र सिंह को दोषी करार देते हुए उक्त सजा सुनाई और कारपोरेशन के अधिकारियों पर लगे आरोप खारिज करते हुए कहा कि लापरवाही व आपराधिक व्यवहार में अंतर है। इस मामले में अधिकारियों ने लापरवाही अवश्य बरती है लेकिन साजिश नहीं क्योंकि उन्हें जो दस्तावेज दिए गए, उनके आधार पर ऋण मंजूर हुआ।