खाना देने से मना किया तो आतंकियों ने खून से लथपथ कर दिया परिवार, लोगों ने उपराज्यपाल को सुनाया 26 साल पहले का दर्द
बारामूला में गुलाम हसन के परिवार ने 1999 में आतंकियों को खाना देने से इनकार कर दिया जिसके कारण आतंकियों ने गुलाम हसन और उनके तीन बच्चों की हत्या कर दी। गुलाम हसन की पत्नी राजा बेगम ने उपराज्यपाल को आपबीती सुनाई और न्याय की गुहार लगाई। फहमीदा नामक एक अन्य महिला ने भी अपने बेटे की हत्या की कहानी सुनाई और मदद मांगी।

संवाद सहयोगी, बारामूला। बात वर्ष 1999 की है जब आतंकी किसी भी घर में घुसकर बंदूक की नोक पर खाना खा लेते थे और बहू-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते थे। लेकिन बहुत से परिवार आतंकियों का तब भी विरोध करते थे। ऐसा ही एक परिवार गुलाम हसन का था। उसने जब आतंकियों को खाना और पनाह देने से मना कर दिया तो आतंकियों ने उसे और उसके तीन बच्चों को गोली मार कर लहुलुहान कर दिया।
उपराज्यपाल को सुनाई आपबीती
रविवार को गुलाम हसन की पत्नी राजा बेगम उपराज्यपाल को आपबीती सुना रही थी तो उसकी आंखें भी आंसुओं से छलक उठी। उसने बताया कि वह कुपवाड़ा के लीलम गांव में रहते हैं। उस रात आतंकियों ने उनके दरवाजे को खटखटाया और कहा कि उन्हें खाना बनाकर दो।
गुलाम हसन मजदूरी करता था। उसने आतंकियों को खाना देने से मना कर दिया। इससे आतंकी गुस्सा गए और उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दी। इसमें राजा बेगम के पति गुलाम हसन लोन, उनके दो बेटों जावेद अहमद लोन और इरशाद अहमद लोन तथा बेटी दिलशादा की मौके पर ही मौत हो गई। यह वे दौर था जब आतंकवाद चरम पर था। आतंकियों की इस गोलाबारी में उनकी एक बेटी पाकिजा और बेटा मोहम्मद अब्बास बच गया।
किसी ने भी उनकी कोई सहायता नहीं की। खेतीबाड़ी करके अपने बचे हुए दो बच्चों का पालन-पोषण किया। बेटा आठवीं तक ही पढ़ा। कोई रोजगार नहीं है। अब बेटा मजदूरी करके ही परिवार चला रहा है। उनका कहना है कि 26 वर्ष से उसे कोई न्याय नहीं मिला। उन्होंने उपराज्यपाल से मदद की गुहार लगाई।
फहमीदा ने भी बताया अपना दर्द
कार्यक्रम में मौजूद फहमीदा ने भी अपना दर्द उपराज्यपाल को सुनाया। उसने कहा कहा कि वह विधवा औरत है। उसका एक बेटा मोहम्मद असगर शेख था। वर्ष 2007 में आतंकियों ने उसे अन्य दो दोस्तों के साथ ककरहमा बारामूला में मार दिया था। उसके दो बच्चे थे।
बहू और उसके दो बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर आ गई। किसी ने भी उसकी कोई सहायता नहीं की। वे मजदूरी करके ही अपने बच्चों को पालती रही। किसी ने कभी भी उसकी मदद नहीं की। उसने कहा कि उसके परिवार के किसी सदस्य को भी रोजगार दिया जाए। अन्य कई आतंकवाद प्रभावितों ने भी आपबीती सुनाते हुए उपराज्यपाल से सहायता करने को कहा।
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