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    Doda Encounter: नवंबर 2021 से अब तक 48 जवान बलिदान... नए नहीं जम्मू में आतंकी हमले, पिछले चार साल से एक्टिव हैं टेररिस्ट

    Updated: Tue, 16 Jul 2024 08:30 PM (IST)

    जम्मू में आतंकी हमले नए नहीं है। साल 2021 से लेकर अब तक 48 जवान बलिदान हो गए हैं। आतंकियों का यह कृत्य कोई नया नहीं था। इससे पहले भी आतंकी हमले होते रहे हैं। बीते कुछ दिनों में आतंकी घटनाएं चरम पर पहुंच गई हैं। यहां आतंकियों और उनके समर्थकों के सक्रिय होने की सूचनाएं भी लगातार आती रही हैं।

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    जम्मू में तलाशी अभियान के लिए तैयार होते जवान (जागरण फाइल फोटो)

    नवीन नवाज,जम्मू। डोडा के देस्सा में सोमवार की रात को एक आतंकी हमले में एक कैप्टन समेत चार सैन्यकर्मी वीरगित को प्राप्त हुए हैं। यह कोई अप्रत्याशित हमला नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बीते चार वर्ष से इस क्षेत्र में आतंकियों और उनके समर्थकों के सक्रिय होने की सूचनाएं लगातार आ रही है।

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    इस तथ्य को अगर नकार भी दिया जाए तो बीते मई में जिला डोडा और जिला उधमपुर की सीमा पर सयोजधार के पास आतंकियों के साथ मुठभेड़ में एक वीडीसी सदस्य की बलिदान ने स्पष्ट कर दिया था कि स्थिति हाथ से निकल रही है।

    पहले राजौरी-पुंछ, फिर रियासी व कठुआ और अब डोडा, में आतंकी हमलों ने स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू प्रांत अब दूसरा कश्मीर बनने की दिशा में अग्रसर है। जम्मू प्रांत अब आतंकियों के निशाने पर कहना सही नही होगा, बल्कि यह कहना सही होगा कि जम्मू अब निशाना बन चुका है।

    नवंबर से बलिदानी जवानों की संख्या 48 हो गई है

    गत अप्रैल से लेकर बीती रात हुए डोडा देस्सा में हुए हमले के आधार पर कहा जा सकता है कि जम्मू प्रांत में सिर्फ जम्मू और रामबन को छोड़ दिया जाए तो अन्य सात जिलों में आतंकियों ने अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया है।

    जम्मू प्रांत में नवंबर 2021 से लेकर अब विभिन्न आतंकी हमलों में अपना सर्वस्व न्यौछावार करने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या 48 हो चुकी है।

    राजौरी-पुंछ में वर्ष 2020 के बाद से जिस तरह से आतंकियों ने समय समय पर हमले किए, सुरक्षा एजेंसियों ने यह कहकर बचने का प्रयास किया कि कश्मीर में लगातार बढ़ते दबाव से हताश आतंकी सुरक्षाबलों का ध्यान बंटाने के लिए राजौरी-पुंछ में हमले कर रहे हैं।

    इसके साथ ही यह भी कह दिया जाता कि यह दोनों जिले एलओसी के करीब हैं, इसलिए गुलाम जम्मू कश्मीर से आतंकियों के लिए इस क्षेत्र में घुसपैठ करना आसान है।

    डोडा के मामले में ऐसा कहना सही नहींं होगा और जिस तरह से डोडा-उधमपुर-कठुआ में हमले हुए हैं, वह दूसरी ही कहानी है।

    डोडा में जिस जगह सोमवार को हमला हुआ है, वहां से करीब सात किलोमीटर दूर गोलघोड़ी इलाके में लगभग एक सप्ताह पहले ही सुरक्षाबलों और आतंकियो के बीच मुठभेड़ हुई थी।

    26 जून को डोडा के भलेसा में हुए आतंकी हमले

    इससे पूर्व 26 जून को डोडा के भलेसा इलाके में तीन आतंकी मारे गए थे जबकि 11-14 जून के बीच छत्तरगला इलाके में आतंकियों ने दो बार सुरक्षाबलों पर हमले किए जिनमें सात सुरक्षाकर्मी जख्मी हुए। इससे पूर्व मई के अंतिम सप्ताह में डोडा और जिला उधमपुर की सीमा पर सयोजधार इलाके में आतकियों के साथ मुठभेड़ में ग्राम सुरक्षा समूह का एक सदस्य बलिदानी हुआ था।

    आतंकी एक दिन में इस इलाके में सक्रिय नहीं हुए हैं। डोडा जो अब रामबन-किश्तवाड़ समेत तीन जिलों में पुनर्गठित हो चुका है, शुरू से ही आतंकियों का गढ़ रहा है।

    जम्मू कश्मीर में आतंकी हिंसा के इतिहास पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलेगा कि इसी क्षेत्र में 1990 से लेकर 2002 तक एक दर्जन नरसंहार आतंकी अंजाम दे चुके हैं।

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    आतंकी हिंसा के शुरुआती दिनों में एक बार डोडा कस्बे पर पूरा दिन आतंकियों का कब्जा रहा था। हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, मुस्लिम जांबाज फोर्स, लश्कर और हिज्ब के आतंकियों का एक बडा कैडर इस क्षेत्र से रहा है। सीमा पार से आने वाले आतंकियों के लिए विशेषकर जो अफगानी थे या फिर अफगानिस्तान में लड़ चुके थे।

    वह कश्मीर घाटी के बजाय डोडा-किश्तवाड़ और पीर पंजाल की पहाड़ियों के साथ सटे इलाकों में ही सक्रिय रहना पसंद करते थे, क्योंकि इस पूरे क्षेत्र की भाैगोलिक परिस्थितियां और स्थानीय सामाजिक परिवेश उन्हें घाटी से ज्यादा सुविधाजनक महसूस होता था।

    साल 2005 के दौरान इलाका रहा था शांत

    डोडा-रामबन-किश्तवाड और उधमपुर के ऊपरी हिस्सों के कई आतंकी आज भी गुलाम कश्मीर में हैं और वहां से वह इन इलाकों में आतंकी नेटवर्क को फिर से जिंदा करने का प्रयास कर रहे हैं।

    वर्ष 2005 के बाद कुछ समय तक यह इलाका शांत रहा और आतंकियों की संख्या भी सरकारी आंकड़ों में दहाई से नीचे आ गई थी।

    वर्ष 2008 के बाद इस इलाके में फिर से आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों ने जोर पकड़ना शुरू किया था, जिसने 2013 में किश्तवाड़ में ईद के दिन हुई सांप्रदायिक हिंसा के जरिए बता दिया कि सब कुछ ठीक नहीं है।

    उसके बाद रामबन डोडा-किश्तवाड़ में कई बार आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई, आतंकियों के मददगार पकड़े गए।

    वर्ष 2018 में किश्तवाड़ में भाजपा नेता अनिल परिहार की उनके भाई समेत हत्या,फिर अप्रैल 2019 मे आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या, बटोत के पास मुठभेड़ में तीन आतंकियों का मारा जाना, असम के कमरुदीन का इसी इलाके में आकर जिहादी बनना बता रहा था कि डोडा-किश्तवाड़ आतंक का एक नया केंद्र बनने जा रहा है जो अब सही साबित हो रहा है।

    आतंकियों ने बीते चार वर्षों में ध्यान नहीं बंटाया

    सुरक्षा तंत्र से जुढ़े लोग भी दबे मुंह कहने लगे हैं कि आतंकियों ने बीते चार वर्ष के दौरान सिर्फ ध्यान नहीं बंटाया है, बल्कि उन्होंने जम्मू प्रांत के आतंकमुक्त हो चुके इलाकों धीरे-धीरे अपना नेटवर्क मजबूत बनाया है। उन्होंने इन इलाकों में अपने लिए ओवरग्राउंड वर्करों का एक नया नेटवर्क तैयार किया है।

    उनके मुताबिक, इस वर्ष की शुरुआत में जब डोडा-किश्तवाड़-उधमपुर के ऊपरी इलाकों में आतंकियों की मौजूदगी की सूचनाएं आती थी,लेकिन आतंकी नहीं मिलते थे तो यह मान लिया जाता था कि वह कश्मीर की तरफ गए हैं।

    अब जिस तरह से उन्होंने हमलों को अंजाम दिया है, उससे स्पष्ट हो गया है कि इस क्षेत्र में सक्रिय आतंकी कश्मीर मिशन पर नहीं हैं बल्कि वह जम्मू को लाल करने के मिशन पर हैं।

    इससे उनके दो मकसद हल होते हैं, एक पूरा जम्मू कश्मीर में वह आतंकग्रस्त साबित कर रहे हैं और दूसरा कश्मीर में अपने बचे खुचे कैडर का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते हुए सुरक्षा एजेंसियों का ध्यान पूरी तरह से जम्मू में लगाना चाहते हैं।

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