Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    35 किमी की ट्रैकिंग, बर्फ से ढके पहाड़... किश्तवाड़ की सफेद चादर में छुपा है मचैल मंदिर, बैसाखी पर खुलेंगे कपाट

    Updated: Fri, 11 Apr 2025 05:58 PM (IST)

    माचैल माता मंदिर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित यह मंदिर देवी रणचंडी को समर्पित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए एक खूबसूरत ट्रेकिंग रूट है। मंदिर के अंदर मां रणचंडी की पिंडी के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के बाहर लकड़ी की पट्टिकाओं पर पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हैं।

    Hero Image
    बैसाखी पर खुलेंगे मां रणचंडी मंदिर के दरबार (फोटो- जागरण)

    बलबीर सिंह जम्वाल, किश्तवाड़। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बर्फ से लदे पहाड़ों के बीच सजा है मां रणचंडी का दरबार। खूबसूरत पगडंडियों से आगे बढ़ते हुए मचैल मां के दरबार पहुंचेंगे तो ऐसा लगेगा, मानो प्रकृति ने आपको अपनी गोद में समा लिया हो। खूबसूरत वादियां आपका मन मोह लेंगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किश्तवाड़ से 95 किलोमीटर दूर मचैल गांव के मध्य में मंदिर में मां पिंडी रूप में विराजित हैं। सेना नायकों और योद्धाओं की इष्टदेवी होने के कारण ही इनका नाम रणचंडी पड़ा। डोगरा वीर युद्ध पर जाने से पूर्व यहां मां के दरबार में हाजिरी लगाने आते थे। जनरल जोरावर सिंह ने तिब्बत विजय का अभियान मां के दर्शन के बाद ही आरंभ किया था।

    दुर्गम पहाड़ियों के बीच प्रकृति की गोद में बसे इस गांव में काठ से बना प्रसिद्ध मचैल मां का मंदिर है। इस मंदिर के मुख्य भाग में समुद्र मंथन का आकर्षक और कलात्मक दृश्य अंकित है। मंदिर के बाहरी भाग में पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियां लकड़ी की पट्टिकाओं पर बनी हैं।

    मंदिर के भीतर मां रणचंडी पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इसके साथ ही चांदी की दो प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। पुरातन मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के साथ ही मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और मां को पाडर गांव में पहलवान सिंह के घर पर काठ के मंदिर में स्थापित किया जाता है। तीन माह बाद वैशाखी उत्सव पर मंदिर के कपाट फिर से खुल जाते हैं और मां की प्रतिमा मंदिर में स्थापित हो जाती है।

    ऐसे पहुंचे मचैल मंदिर

    मचैल गांव किश्तवाड़ के पाडर क्षेत्र में जिला मुख्यालय से 95 किलोमीटर की दूरी पर है। जम्मू से किश्तवाड़ और उसके आगे गुलाबगढ़ तक सड़क मार्ग से बस, टैक्सी या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है। गुलाबबढ़ से आगे पहले 35 किलोमीटर तक का ट्रेकिंग रूट रहता था।

    अब गुलाबगढ़ से चशोती तक करीब 26 किलोमीटर वहां से छोटे वाहन से जाया जा सकता है। वहां से करीब सात किलोमीटर मचैल मंदिर तक ट्रेकिंग करके ही जाना होगा। इस दौरान आपको कई खूबसूरत नजारों को देखने का अवसर भी मिलेगा। अगस्त में मचैल यात्रा के दौरान गुलाबगढ़ से हेलीकाप्टर सेवा भी उपलब्ध रहती है। मचैल में मंदिर के साथ सराय है और उसमें श्रद्धालु ठहर सकते हैं। इसके अलावा किश्तवाड़ और गुलाबगढ़ में ठहरने के लिए होटल उपलब्ध हैं।

    तता पानी में गर्म पानी की बावलियां

    गुलाबगढ़ से तीन किलोमीटर की दूरी पर तता पानी नाम की जगह है और यहां गर्म पानी की बावलियां हैं। मान्यता है कि इनके पानी में नहाने से त्वचा संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। आसपास के पहाड़ सदाबहार बर्फ से लदे रहते हैं। ऐसे में यहां का दृश्य काफी मनमोहक हो जाता है। इसके साथ ही गुलाबगढ़ में साहसिक खेलो के शौकीन पर्यटक वाटर राफ्टिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं।

    जंस्कार विजय से पूर्व कर्नल हुकुम सिंह ने की थी पूजा

    वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद जंस्कार क्षेत्र पर पाकिस्तान ने छल से कब्जा कर लिया था। बाद में जम्मू-कश्मीर के भारत विलय के बाद भारतीय सेना ने जंस्कार को आक्रमणकारियों से मुक्त करने का अभियान चलाया। अभियान पर जाने से पूर्व भारतीय सेना में कर्नल हुकूम सिंह ने मां के दर्शन किए और विजय की मन्नत मांगी।

    जीत के बाद उन्होंने मंदिर परिसर में भव्य यज्ञ का आयोजन किया और एक धातु की मूर्ति स्थापित की। यही वजह है कि यहां मंदिर में मां रणचंडी की दो मूर्तियां स्थापित हैं।

    श्राइन बोर्ड करता है देखरेख 

    पूर्व में मां की यात्रा अगस्त माह में छोटे से समूह तक ही सीमित थी। श्राइन बोर्ड के गठन के बाद इसे विकास पर फोकस हुआ और किश्तवाड़ से गुलाबगढ़ तक सड़क का निर्माण और उसके बाद गुलाबगढ़ से चशोती तक सड़क बनने से यह यात्रा काफी सुगम हो गई और पड़ोसी हिमाचल के साथ अन्य राज्य से भी श्रद्धालु मां के दरबार पहुंचने लगे हैं।