कश्मीर से अधिक जम्मू में हैं मधुमेह के मामले, जीवनशैली में बदलाव से बच्चे अब टाइप-दो से होने लगे पीड़ित
जम्मू में कश्मीर से ज़्यादा मधुमेह के मामले सामने आ रहे हैं। जीवनशैली में बदलाव के कारण बच्चे भी टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित हो रहे हैं, जो पहले वयस्कों में ही देखा जाता था। विशेषज्ञ इसका मुख्य कारण बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतें बताते हैं।

स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और नियमित व्यायाम करने की सलाह दी जाती है।
राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। बीते दो दशकों में लोगों की जीवनशैली में आए बदलाव का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।जम्मू-कश्मीर में मधुमेह के मामले तेजी के साथ बढ़े हैं। विशेषकर जम्मू संभाग में जहां हर सौ में से 19 लोग मधुमेह से पीड़ित है। यही नहीं अब बच्चे भी टाइप-वन के साथ-साथ टाइप-टू मधुमेह से भी पीड़ित हो रहे हैं।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) के सहयोग से करवाए अध्ययन में बताया था कि जम्मू में मधुमेह का कुल प्रसार 18.9 प्रतिशत है, जिसमें शहरी क्षेत्रों में 26.5 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 14.5 प्रतिशत है।
यही नहीं जम्मू में 10.8 प्रतिशत आबादी प्रीडायबिटीज से प्रभावित है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा क्रमशः 13.4 प्रतिशत और 9.3 प्रतिशत है।इसी तरह कश्मीर और लद्दाख में 7.8 प्रतिशत लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। 10.5 प्रतिशत प्रीडायबिटीक हैं।
जीएमसी जम्मू में एंडोक्रेनालोजी विभाग के एचओडी डा. सुमन कोतवाल का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में मधुमेह के मामले तेजी के साथ बढ़े हैं।जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय औसत से भी मधुमेह के मामले अधिक हैं। इसके लिए यहां का खाना-पीना और बदली जीवनशैली भी जिम्मेदार है।
हजारों लोग को पता ही नहीं, वे मधुमेह से पीड़ित हैं
हमारे यहां के लोग चावल, घी, गेंहू अधिक लेते हैं। इनसे भी मधुमेह की आशंका रहती है। लोग व्यायाम नहीं करते। अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा कि हजारों लोग ऐसे हैं जिन्हें जानकारी ही नहीं है कि वे मधुमेह से पीड़ित हैं। जब हम अस्पताल में किसी और बीमारी का इलाज करवाने जाते हैं तो पता चलता है कि मधुमेह भी है।
डा. सुमन कोतवाल ने कहा कि अगर आपको बार-बर पेशाब आता है। वजन कम हो रहा है, मोटापा है, मधुमेह का पारिवारििक इतिहास भी है तो जांच करवानी चाहिए और इसे गंभीरता से लेना चाहिए।उन्होंने कहा कि पहले बच्चों में टाइप टू डायबिटीज नहीं होती थी।लेकिन अब उनकी जीवनशैली भी बदली है।
टाइप-टू डायबिटीज को जन्म दिया
मोबाइल देखते हुए खाना खाते हैं। शहरीकरण से फास्ट फूड हर समय उपलब्ध है। इसने बच्चों में पंद्रह वर्ष से अधिक आयु वालों में टाइप-टू डायबिटीज को जन्म दिया है। हालांकि अभी इसके मामले कम हैं।यहां पर बच्चों में टाइप-वन के मामले अधिक हैं।
जम्मू संभाग में टाइप-वन के करीब 200 और कश्मीर में करीब 400 बच्चे हैं।उन्होंने लोगों से पारंपरिक जीवनशैली अपनाने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि 35 वर्ष की आयु के बाद वर्ष में एक बार मधुमेह की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए।

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