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    जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की परम्परा चार साल बाद फिर शुरू, CM उमर ने किया बड़ा एलान, जाने पूरी जानकारी?

    By Rahul SharmaEdited By: Rahul Sharma
    Updated: Thu, 16 Oct 2025 06:17 PM (IST)

    जम्मू कश्मीर में चार साल बाद दरबार मूव की परम्परा फिर शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, जिससे राज्य में उत्साह का माहौल है। यह जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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    नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में भी दरबार मूव बहाली का यकीन दिलाया था।

    नवीन नवाज, जागरण, जम्मू। केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश में दरबार मूव की परम्परा लगभग चार वर्ष के अंतराल के बाद फिर बहाल होने जा रही है। अपनी सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर गुरूवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसका एलान करते हुए बताया कि दरबार मूव की बहाली के लिए केबिनेट द्वारा पारित प्रस्ताव को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मंजूरी प्रदान कर दी है। 

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    मैंने भी संबंधित फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं,अब जल्द ही औपचारिक आदेश जारी किया जाएगा। हालांकि मख्यमंत्री ने दरबार मूव की बहाली से सरकारी खजाने पर होने वाले असर का जिक्र नहीं किया है,लेकिन एक अनुमान के आधार पर मौजूदा परिस्थितियों में इससे सरकारी खजाने पर दो सौ करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। दरबार मूव की परम्परा की बहाली का यकीन नेशनल कान्फ्रेंस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में दिलाया था। 

    जिन्होंने यहां की विरासत को नुकसान पहुंचाया, उन्हें लोगों ने शाबाशी दी

    मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दरबार मूव की बहाली का एलान करते हुए भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम पर कश्मीर केंद्रित होने का आरोप लगाया जाता रहा है,लेकिन जो खुद को जम्मू का हितैषी बताते हैं, वह उस समय क्यों चुप रहे जब जम्मू कश्मीर की एक एक विरासत, जम्मू कश्मीर वह परम्परा जिसे डोगरा शासकों ने शुरु किया था, जिससे जम्मू के लोगों की भावनाएं जुड़ी हें, भंग किया गया। जम्मू के लोगों ने तो उन्हें चुनाव में 28 सीटें देकर, उन्हें शाबाशी दी। उन्होंने जम्मू को नुक्सान पहुंचाया,लेकिन अब हम इस परम्परा को फिर से बहाल कर रहे हैं। हम कश्मीर केंद्रित नहीं बल्कि हम जम्मू कश्मीर के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र का पतिनिधित्व करते हैं।

    क्या है दरबार मूव

    दरबार मूव की परम्परा को 1872 में तत्कालीन डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने शुरु किया था। सर्दियों के छह माह नंवबर के पहले सप्ताह से अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक वह अपने पूरे दरबार के साथ कश्मीर से जम्मू आ जाते थे और गर्मियों के दौरान मई के पहले सप्ताह में वह कश्मीर में अपना दरबारलगाते थे औरअक्टूबर के अंत तक वहीं से पूरे राज्य का राजकाज चलाते थे।

    उन्होंने यह परम्परा कश्मीर की भीषण ठंड और जम्मू की भीषण गर्मी से बचने के लिए शुरु की थी।उनके निधन के बाद भी उनके उत्तराधिकारियों ने इस परम्परा को कायम रखा। आजादी के बाद भी जम्मू कश्मीर में इस परम्परा को बहाल रखा गया और इस परम्परा के तहत नागरिक सचिवालय के सभी कार्यालय और कम्रचारी, राजभवन, पुलिस मुख्यालय साल में दो बार जम्मू से श्रीनगर, श्रीनगर से जम्मू स्थानांतरित होते रहे।

    इसलिए सर्दियों के छह माह जम्मू कश्मीर की राजधानी जम्मू और गर्मियों के छह माह जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर रहता है। विशुद्ध मौसमी कारणों से शुरु हुई यह परम्परा बाद में एक प्रशासनिक जरुरत भी बन गई और कश्मीर व जम्मू प्रांत के बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाने, व्यापार को बढ़ावा देने का भी जरिया बन गई।

    इसे लेकर सियासत भी खूब होती रही है। जम्मू संभाग मे कई राजनीतिक दल जिनमे भाजपा भी शामिल है,दरबार मूव की परम्परा को समाप्त कर, जम्मू को स्थायी तौर पर राजधानी बनाने की पक्षधर रही है।

    कब बंद हुई यह परम्परा

    जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू कश्मीर राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख के रूप में पुनर्गठितहो गया। इसके बाद जून 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दरबार मूव की परम्परा को समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया।

    इसके साथ ही जम्मू और श्रीनगर ,दाेनों सचिवालयों केा पूरा वर्ष क्रियाशील बनाए रखने के लिए कई विभागों के मुख्यालय सारा साल जम्मू में और कई विभागो के मुख्यालय सारा साल श्रीनगर में ही बनाए रखने के लिए कहा।

    अलबत्ता, सभी वरिष्ठ नौकरशाह, प्रशसनिक सचिव, पुलिस मुख्यालय, नागरिक सचिवालय के कई प्रमुख विभाग, राजभवन और जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पहले की तरह श्रीनगर से जम्मू और जम्मू से श्रीनगर की आवाजाही जारी रही। इस दौरान, जम्मू में सर्दियों के आगमन पर दरबार मूव के शुरु होने पर सचिवालय में होने वाली परेड की परम्परा भी समाप्त कर दी गई थी।

    दरबार मूव बंद होने पर जम्मू में रही थी चुप्पी

    दरबार मूव की प्रथा को जब समाप्त किया गया था तो जम्मू मेंं कुछ अपवादों को छोड़ लगभग सभी राजनीतिक दल, व्यापारिक और सामाजिक संगठन चुप रहे थे। हालांकि कुछ ने विरोध जताया,लेकिन वह भी दबे हुए स्वर में।

    दरबार मूव के बंद होने से आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक नुकसान

    दरबार मूव की परम्परा के बंद होने से जम्मू शहर और उसके साथ सटे इलाकों में कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हुई। इससे स्थानीय होटल उद्योग, परिवहन क्षेत्र से जुड़े लोग ही नहीं अन्य कारोबारी भी पूरी तरह प्रभावित हुए। दरबार मूव के कारण कश्मीर से हर वर्ष लगभग तीन हजार कर्मचारी जम्मू में आते थे। इनमें से कईयों के लिए सरकार स्थानीय होटलों में आवासीय सुविधा जटाती थी।

    इसके अलावा इन कमि्रयों के रिश्तेदार, परिजन भी जम्मू घूमने आते थे और वह अपने जम्मू प्रवास के दौरान यहां विभिन्नवस्तुओं की जो सदि्रयों में ही नहीं गर्मियों में भी कश्मीर में उनके काम आती थी, खरीदते थे। दरबार मूव की परम्परा बंद होने से जम्मू और कश्मीर प्रांत के लोगों के आर्थिक सहयोग ही प्रभावित नहं हआ बल्कि दोनों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक जढ़ाव भी प्रभावित हुआ।

    स्थानीय संगठन चाहते थे दरबार मूव की बहाली

    नेशनल कान्फ्रेंस ने जम्मू प्रांत विशेषकर जम्मू स्थिति व्यापारिक,सामाजिक व अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के आधार पर दरबार मूव की बहाली को अपने चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा बनाया था। बीते वर्ष जब उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण करने के बाद जम्मू प्रांत के प्रमुख व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ पहली बैठक की थी,उसमें इन संगठनों ने दरबार मूव की बहाली केा सुनिश्चित बनाने का आग्रह किया था। इस पर उमर अब्दुल्ला ने सवाल किया था कि जब इसे बंदकिया गया तो आप चुप रहे? जवाब मिला था- जनाब हालात ऐसे थे कि बोल नहीं सकते थे।

    2011 से 2020 तक खर्च हुए 1588 करोड़

    महाप्रशासनिक विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई एक जानकारी के अनुसार,जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2011 से 2020 तक 10 वर्षों की अवधि के दौरान इस प्रथा पर 1588 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 2011 में दरबार मूव पर 72.5 करोड़ रुपये, 2012 में 82.22 करोड़ रुपये, 2013 में 192.39 करोड़ रुपये, 2014 में 181.72 करोड़ रुपये, 2015 में 165.06 करोड़ रुपये, 2016 में 179.7 करोड़ रुपये, 2017 में 160 करोड़ रुपये, 2018 में 191.19 करोड़ रुपये, 2019 में 215.19 करोड़ रुपये और 2020 में 146.64 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

    आप सरकारी खजाने पर बोझ नहीं, लाभ देखें

    कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि दरबार मूव की परम्परा को आप सिर्फ सरकारी खजाने और फिजूलखर्ची के नरेटिव से न जाेड़ें। बेशक यह खर्चीला है,लेकिनअब ई-आफिस की व्यवस्था बहाल होने आपको अनावश्यक फाइलों को एक जगह से दूसरी जगह पहुचाने के लिए ट्रकों के काफिले की जरुरत नहीं है।

    आपको पहले से कम कर्मचारी चाहिए। इसके अलावा सरकार अब कर्मचारियों के लिए स्थायी व अपनी आवासीय सुविधा जटा रही है। इसलिए पहले कीअपेक्षा कम खर्च होगा। लेकिन इसका फायदा देखें- बीते चार वर्ष के दौरान हमने देखा कि जम्मू में सर्दियों के दौरान कश्मीरियों और गर्मियों में कश्मीर में जम्मू वासियों की आमद घट गई है।

    अगर रही तो सिर्फ होटलों तक सीमित रही। लोगों के बीच एक दूसरे प्रति अविश्वास की भावना पैदा होती नजर आयी,दोनों प्रांतों में सामाजिक-सांस्कृतिक जुढ़ाव घट रहा था,जिसकी भरपाई बहुत महंगी है। इसके अलावा स्थानीय अर्थव्यवस्था भी कहीं न कहीं प्रभावित हो रही थी।