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जम्मू नगर निगम के शपथ ग्रहण समारोह में बड़ी चूक, कारपोरेटरों को दिलाई गलत शपथ

कॉरपोरेटरों को नगर निगम की शपथ दिलवानी थी लेकिन उन्हें निगम के बजाय परिषद के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिला दी गई। घंटों चले इस समारोह में किसी का ध्यान इस आेर नहीं गया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 11:42 AM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 11:42 AM (IST)
जम्मू नगर निगम के शपथ ग्रहण समारोह में बड़ी चूक, कारपोरेटरों को दिलाई गलत शपथ

जम्मू, अंचल सिंह। बड़े तामजाम के साथ आयोजित किए गए कॉरपोरेटरों के शपथ समारोह में एक बड़ी चूक सामने आई। इन कॉरपोरेटरों को नगर निगम की शपथ दिलवानी थी लेकिन उन्हें निगम के बजाय परिषद के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिला दी गई। पूरा शपथ समारोह घंटों चला लेकिन न तो किसी काॅरपोरेटर और न ही किसी अधिकारी अथवा नेता इस चूक को पकड़ सका।

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किसी भी संवैधानिक पद के लिए उसकी गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। जब तक उस पद की शपथ न ली हो, तब तक उस पद को हासिल करने वाले को संवैधानिक दर्जा ही प्राप्त नहीं होता। ऐसे में काउंसिल यानि परिषद की शपथ लेने वाले कॉरपोरेटर निगम के लिए संवैधानिक होंगे?

मंगलवार को जम्मू यूनिविर्सटी के जनरल जोरावर सिंह आडीटोरियम में शहर के 75 वार्ड से जीते प्रत्याशियों को कॉरपोरेटर बनने पर शपथ दिलाई गई। इनमें से 39 काॅरपोरेटर ऐसे थे जिन्होंने हिंदी में शपथ ग्रहण की। इसके अलावा अंग्रेजी, डोगरी, संस्कृत और पंजाबी में भी शपथ दिलाई गई। 27 वर्ष बाद 2005 में जम्मू नगरपालिका से नगर निगम बन गया था।

जम्मू-कश्मीर में दो नगर निगम हैं जबकि सात काउंसिल हैं। इनमें कठुआ, ऊधमपुर, पुंछ, अनंतनाग, बारामूला और सोपोर म्यूनिसिपल काउंसिल शामिल हैं। इसके अलावा 70 म्यूनिसिपल कमेटियां हैं। काउंसिल के लिए अलग से शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हो रहे हैं। कॉरपोरेटरों को परिषद के बजाय नगर निगम की शपथ दिलाई जानी थी। 2005 के बाद कॉरपोरेटरों संबंधी सारे कार्यक्रमों की देखरेख निगम के सचिव करते रहे। इस बार ऐसा नहीं देखने को मिला। शायद यही नतीजा रहा कि निगम से इतनी बड़ी चूक हुई।

पूर्व मेयर नरेंद्र सिंह जम्वाल से इस संबंध में बात की गई तो उनका कहना था कि नगर निगम के कॉरपोरेटर चुने गए हैं तो उन्हें शपथ भी इन्हीं की दिलानी चाहिए थी। यह दुखद है कि किसी ने इस चूक को देखा ही नहीं। नगर निगम परिषद नहीं होता। परिषद अलग हैं और नगर निगम अलग।

वहीं पूर्व मेयर मनमोहन चौधरी ने कहा कि नगर निगम और नगर परिषद में अंतर होता है। अधिकारियों को यह ध्यान रखना चाहिए। भविष्य में जनरल हाउस में विभिन्न फैसले होंगे। ऐसी लापरवाही से कामकाज चल पाना मुश्किल हो सकता है।

सचिव को निहारते रहे कर्मी

कॉरपोरेटरों से जुड़े सभी कार्यक्रम निगम के सचिव देखते आए हैं। इस बार ऐसा नहीं हुआ। कार्यक्रम शुरू होने से लेकर अंत तक स्टेज पर निगम की सचिव नजर नहीं आई। निगम में तैनात कर्मचारी भी बार-बार सचिव की ओर देख रहे थे कि वे आगे आएंगी और कामकाज संभालेंगी। खैर कार्यक्रम समाप्त हो गया। लगभग हर कर्मी सचिव के इस कार्यक्रम में आगे नहीं आने पर चर्चा करता नजर आया। अलबत्ता सचिव कार्यक्रम में सुबह से मौजूद थीं। अधिकारियों के साथ इंतजाम भी देख रही थीं।


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