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    ग्रामीण सुरक्षा समितियों के सदस्यों से हथियार वापसी पर शुरू हुआ विवाद

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 24 Dec 2018 12:30 PM (IST)

    गैर राजनीतिक संगठन इकजुट जम्मू ने ग्रामीण सुरक्षा समितियों के सदस्यों को अपने हथियार प्रशासन को वापस न देने की अपील की है। यह सुरक्षा के लिहाज से प्रशासन का गलत कदम है।

    ग्रामीण सुरक्षा समितियों के सदस्यों से हथियार वापसी पर शुरू हुआ विवाद

    जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्य में आतंकवाद को खत्म करने के लिए नब्बे के दशक में बनाई गई ग्रामीण सुरक्षा समितियों के कुछ सदस्यों से पुलिस-प्रशासन अब हथियार वापस ले रहा है। इसे लेकर विवाद बनता जा रहा है। गैर राजनीतिक संगठन इकजुट जम्मू ने ग्रामीण सुरक्षा समितियों के सदस्यों को अपने हथियार प्रशासन को वापस न देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह सुरक्षा के लिहाज से प्रशासन का गलत कदम है।

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    राज्य में ग्रामीण सुरक्षा समितियों को गठन हुए करीब दो दशक हो चुके हैं। इन समितियों से जम्मू संभाग के डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जिलों में आतंकवाद को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी। समितियों के सदस्यों को प्रशासन की ओर से हथियार मुहैया करवाए गए हैं। समितियों के गठन के खुले आम इन क्षेत्रों में घूमने वाले आतंकवादियों को बहादुरी के साथ सदस्यों ने मुकाबला किया। अब समिति के कुछ सदस्यों को पुलिस-प्रशासन ने हथियार जमा करवाने को कहा है। जम्मू के इंस्पेक्टर जनरल आफ पुलिस एसडी सिंह जम्वाल का कहना है कि सिर्फ साठ साल की उम्र से अधिक सदस्यों को ही हथियार जमा करवाने के लिए कहा गया है। उनकी जगह युवाओं को मौका दिया जाएगा। कोई भी ग्रामीण सुरक्षा समिति खत्म नहीं की जा रही है। परंतु जम्मू के संगठनों ने इस आदेश का विरोध करना शुरू कर दिया है।

    इकजुट संगठन के पदाधिकारी प्रो. हरि ओम ने कहा कि यह एक साजिश है। इन समितियों ने जम्मू संभाग के कई जिलों में आतंकवाद को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि हाल ही में किश्तवाड़ में भाजपा नेता और उनके भाई की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। इससे साफ है कि अभी हालात सामान्य नहीं है। प्रशासन को इन समितियों के सदस्यों से हथियार वापस लेने के स्थान पर इनकी संख्या को बढ़ाना चाहिए। उन्हें आधुनिक हथियार देने चाहिए। इन्हीं सदस्यों के कारण आज किश्तवाड़, डोडा, रामबन जैसे जिलों में हिंदू सुरक्षित रह रहे हैं। अगर प्रशासन ने अपने आदेश को वापस नहीं लिया तो इकजुट संगठन डोडा-किश्तवाड़ चलो मार्च का आह्वान करेगा। उन्होंने इसे जम्मू के जनसांख्यिक स्वरूप को बदलने की साजिश भी करार दिया। 

    1995 में बनाई गई थी ग्राम सुरक्षा समितियां
    जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ने के लिए सरकार ने वर्ष 1995 में ग्राम सुरक्षा समितियों (वीडीसी) का गठन किया था। उस दौरान जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन हुआ करता था। 2600 से अधिक लोगों को इसमें शामिल करते हुए हथियार भी प्रदान किए गए थे। जम्मू संभाग के 10 जिलों और लद्दाख के लेह जिले में 26567 व्यक्ति वीडीसी के साथ काम कर रहे हैं। सबसे अधिक वीडीसी स्वयंसेवकों की संख्या 5818 राजौरी जिले में है। इसके बाद रियासी में 5730, डोडा में 4822 है जबकि लेह में सबसे कम 37 वीडीसी लगे हुए हैं। पुलिस बिल-2013 के तहत सरकार ने वीडीसी को कानूनी कवर प्रदान करने का प्रस्ताव भी बनाया था।